सूत्रों ने गुरुवार को कहा कि कानून का पूरी तरह से पालन करते हुए और उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में देश के विभिन्न हिस्सों में निरोध केंद्र (डिटेंशन सेंटर) स्थापित किए गए। निरोध केंद्र या शिविर ऐसे केंद्र होते हैं जहां विदेशी नागरिकों को उनकी राष्ट्रीयता के सत्यापन होने तक और संबंधित सरकारों द्वारा यात्रा दस्तावेज जारी किए जाने तथा ऐसे लोगों को अपने मूल देश भेजने तक रोका जाता है।
सूत्रों ने बताया कि इस तरह के निरोध केंद्र विभिन्न राज्यों में पिछले कुछ दशकों से अस्तित्व में थे और ऐसे केंद्रों की स्थापना का राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) से कोई संबंध नहीं है।
विदेशी नागरिक कानून, 1946 के तहत केंद्र को किसी विदेशी नागरिकों की आवाजाही पर रोक लगाने और व्यक्ति को किसी खास स्थान पर निवास की आवश्यकता का आदेश जारी का अधिकार है। इसके अलावा, पासपोर्ट कानून, 1920 के तहत, केंद्र किसी भी ऐसे व्यक्ति को भारत से हटने का निर्देश दे सकता है, जिसने बिना वैध पासपोर्ट या अन्य यात्रा दस्तावेजों के यहां प्रवेश किया हो।
निरोध केंद्रों में अपने मूल देश भेजे जाने की प्रतीक्षा करने वाले ऐसे विदेशी नागरिकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश गृह मंत्रालय द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जुलाई, 1998 से जारी किए गए हैं। इसका मकसद उस व्यक्ति के यात्रा दस्तावेज तैयार होने की स्थिति में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित की जा सके ताकि उचित समय पर निर्वासन हो सके।
ऐसे निर्देश 23 नवंबर 2009, सात मार्च, 2012, 29 अप्रैल 2014, 10 सितंबर 2014 और सात सितंबर 2018 को फिर जारी किए गए। सात मार्च 2012 को जारी किए गए निर्देश उच्चतम न्यायालय के 28 फरवरी 2012 के एक आदेश के अनुपालन में थे। उच्चतम न्यायालय ने गौर किया था कि जिन विदेशी नागरिकों ने अपनी सजा पूरी कर ली है, उन्हें तुरंत जेल से रिहा कर दिया जाना चाहिए और उनके निर्वासन या वापस भेजे जाने तक सीमित आवाजाही के साथ एक उचित स्थान पर रखा जाना चाहिए। जिन स्थानों पर उन्हें रखा जाए वहां बिजली, पानी और स्वच्छता की बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए।
न्यायालय ने 12 सितंबर 2018 के अपने आदेश में गृह मंत्रालय द्वारा 10 सितंबर 2014 को जारी उन निर्देशों पर गौर किया जिनमें सभी राज्य सरकारों को अवैध प्रवासियों या ऐसे विदेशी नागरिकों को रोकने के लिए निरोध केंद्र या या शिविर स्थापित करने की सलाह दी गयी थी जो राष्ट्रीयता की पुष्टि नहीं होने के कारण सजा पूरी करने के बाद निर्वासन का इंतजार कर रहे हैं। न्यायालय ने गौर किया कि एक भी राज्य ने निरोध केंद्र स्थापित नहीं किए थे।
अदालत ने असम में मटिया, गोलपारा में निरोध केंद्रों के निर्माण की प्रगति पर भी गौर किया और उम्मीद जतायी कि असम राज्य सुनिश्चित करेगा कि उन्हें जल्द से जल्द पूरा किया जाए। सूत्रों ने कहा कि यात्रा दस्तावेजों के तैयार होने के साथ ही जल्दी निर्वासन के लिए विदेशी नागरिकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने की खातिर निरोध केंद्रों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे केंद्रों में रखे गए लोगों पर जेलों के नियम लागू नहीं होते जो विचाराधीन कैदियों और सजायाफ्ता कैदियों पर लागू होते हैं।
असम सरकार पिछले कुछ दशकों से आवश्यकताओं के अनुसार जेलों के हिस्से को निरोध केंद्रों के रूप में चिन्हित कर रही है। ऐसे निरोध केंद्र असम (गोलपारा, कोकराझार, तेजपुर, जोरहाट, डिब्रूगढ़ और सिलचर की जिला जेलों में), राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (सेवा सदन - लामपुर), महिला सदन - - महिलाओं के लिए), पंजाब (केंद्रीय जेल, अमृतसर में), राजस्थान (अलवर में जेल परिसर में), पश्चिम बंगाल (सुधार गृह), गुजरात (भुज) और तमिलनाडु में हैं।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीएआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.