उच्चतम न्यायालय ने बुधवार, 18 दिसंबर को दिल्ली के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में अपने 2017 के फैसले पर पुनर्विचार के लिये चौथे मुजरिम अक्षय कुमार सिंह की याचिका बुधवार को खारिज कर दी। इस मामले में तीन अन्य मुजरिमों की पुनर्विचार याचिका न्यायालय पहले ही खारिज कर चुका है।
न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुये कहा कि 2017 के निर्णय पर फिर से विचार का कोई आधार नहीं है। पीठ ने कहा कि इस याचिका में दी गयी दलीलों पर न्यायालय पहले ही अपने मुख्य फैसले में विचार कर चुका है। पीठ ने कहा कि पुनर्विचार याचिका किसी अपील पर बार-बार सुनवाई के लिए नहीं होती और शीर्ष अदालत मौत की सजा बरकरार रखते समय पहले ही सारे पहलुओं पर विचार कर चुकी है।
पीठ ने कहा कि उसे मुख्य फैसले में ऐसी कोई त्रुटि नहीं मिली जिसके लिये इस पर पुनर्विचार किया जाये। न्यायालय ने कहा, ''हमें 2017 में सुनाई गई मौत की सजा के फैसले पर पुनर्विचार का कोई आधार नहीं मिला।''
पीठ द्वारा पुनर्विचार याचिका खारिज करने का फैसला सुनाते ही मुजरिम अक्षय के वकील वकील ए. पी सिंह ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा। दिल्ली सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि कानून में दया याचिका दायर करने के लिये एक सप्ताह के समय का प्रावधान है। पीठ ने कहा, ''हम इस सबंध में कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं। यदि कानून के अनुसार याचिकाकर्ता को कोई समय उपलब्ध है तो यह याचिकाकर्ता पर निर्भर है कि वह इस समय सीमा के भीतर दया याचिका दायर करने के अवसर का इस्तेमाल करे। ''
पीठ ने अपना निर्णय सुनाते हुये कहा कि दोषी ने एक बार फिर अभियोजन के मामले और अदालतों के निष्कर्षों को उठाया है लेकिन इसकी अनुमति नहीं जा सकती। पीठ ने कहा कि अक्षय ने भी पुनर्विचार याचिका में ठीक वैसे ही आधार बताये हैं जो अन्य तीन दोषियों ने अपनी याचिकाओं में उठाये थे। दोषी के वकील ने जांच में खामियों का मुद्दा उठाया तो पीठ ने कहा कि इन सब पर निचली अदालत, उच्च न्यायालय और शीर्ष अदालत पहले ही विचार कर चुकी है।
पीठ ने सवाल किया कि सारी सुनवाई पूरी हो जाने के बाद क्या आप जांच को चुनौती दे सकते हैं। सिंह ने आरोपियों को गिरफ्तार करने और उनकी शिनाख्त परेड की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाये और कहा कि मीडिया का दबाव अभी भी है। इस संबंध में उन्होंने हाल ही में तेलंगाना में सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोपियों की मुठभेड़ का भी जिक्र किया।
अक्षय की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान निर्भया के माता-पिता भी न्यायालय में मौजूद थे। इससे पहले, दिल्ली सरकार की ओर से अदालत में याचिका का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिनमें ''मानवता रोती'' है और यह मामला उन्हीं में से एक है।
मेहता ने कहा था, ''कई ऐसे अपराध होते हैं जहां भगवान बच्ची (पीड़िता) को ना बचाने और ऐसे दरिंदे को बनाने के लिए शर्मसार होते होंगे। ऐसे अपराधों में मौत की सजा को कम नहीं करना चाहिए।'' उन्होंने यह भी कहा कि जो होना तय है उससे बचने के लिए निर्भया मामले के दोषी कई प्रयास कर रहे हैं और कानून को जल्द अपना काम करना चाहिए।
वहीं, दोषी की ओर से पेश हुए वकील ए. पी सिंह ने कहा था कि दिल्ली-एनसीआर में वायु और जल प्रदूषण की वजह से पहले ही लोगों की उम्र कम हो रही है और इसलिए दोषियों को मौत की सजा देने की कोई जरूरत नहीं है। इस मामले में न्यायालय ने पिछले साल नौ जुलाई को तीन अन्य दोषियों मुकेश, पवन गुप्ता और विनय शर्मा की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी।
दक्षिण दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 की रात में चलती बस में छह व्यक्तियों ने 23 वर्षीय छात्रा से सामूहिक बलात्कार के बाद उसे बुरी तरह जख्मी करके सड़क पर फेंक दिया था। निर्भया की बाद में 29 दिसंबर, 2012 को सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी।
इस सनसनीखेज अपराध के सिलसिले में पुलिस ने छह आरोपियों को गिरफ्तार किया था। इनमें से एक आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी जबकि एक अन्य आरोपी नाबालिग था। इस नाबालिग आरोपी पर किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष मुकदमा चला था और उसे तीन साल तक सुधार गृह में रखा गया था।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.