गधों की संख्या में तेजी से गिरावट आने के कारण पिछले सात साल में देश में गधों की संख्या 3.20 लाख से घटकर आधे से भी कम, 1.20 लाख रह गयी है। मत्स्य, पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा करायी गयी 20वीं पशुधन गणना के आंकड़ों के मुताबिक, 2012 में की गयी 19वीं गणना की तुलना में 2019 तक गधों की संख्या में 61 प्रतिशत की भारी गिरावट आयी है।
पशुधन की गणना में एक तरफ गाय की संख्या बढ़ी है वहीं सुअरों की संख्या में भी गिरावट दर्ज की गयी है। पशुधन गणना के लिये राज्यों से मिले आंकड़ों से स्पष्ट है कि गैर दुधारू पालतू पशुओं की श्रेणी में शुमार गधों की संख्या, सभी राज्यों में तेजी से घटी है।
आलम यह है कि माल ढुलाई के लिहाज से बेहत उपयोगी समझा जाने वाला यह पालतू पशु कश्मीर के लेह लद्दाख क्षेत्र में अब विलुप्त प्राय हो गया है। इस क्षेत्र में अब सौ से भी कम गधे बचे हैं। गधों की अधिकता के मामले में राजस्थान अव्वल है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात और बिहार, गधों की संख्या के लिहाज शीर्ष पांच राज्यों में शुमार हैं।
सूत्रों के अनुसार, पशुपालन विभाग ने गधों की संख्या में तेजी से आ रही गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से इस समस्या के समाधान संबंधी उपाय और सुझाव मांगे हैं। आंकड़े बताते हैं कि गधों की सर्वाधिक संख्या वाले शीर्ष पांच राज्यों में भी इनकी संख्या कम हुयी है।
राजस्थान में सात साल में गधे 81 हजार से घटकर 23 हजार रह गये हैं। जबकि महाराष्ट्र में इनकी संख्या पिछली गणना की तुलना में 29 हजार से घटकर 19 हजार, उत्तर प्रदेश में 57 हजार से घटकर 16 हजार, गुजरात में 39 हजार से घटकर 11 हजार और बिहार में भी 21 से घटकर 11 हजार रह गयी है।
महाराष्ट्र में इस स्थिति से निपटने के लिये राज्य के पशुपालन विभाग ने बाघ संरक्षण अभियान (सेव टाइगर) की तर्ज पर 'सेव डंकी' अभियान शुरु किया है।
पशुधन गणना के परिणाम के मुताबिक, देश में पालतू पशुओं की संख्या 2012 की तुलना में 4.6 प्रतिशत वृद्धि के साथ बढ़कर 53.5 करोड़ हो गयी है। हालांकि, तीन प्रमुख राज्यों में पशुधन की संख्या में गिरावट दर्ज की गयी है। इनमें उत्तर प्रदेश में 1.35 प्रतिशत, राजस्थान में 1.66 प्रतिशत और गुजरात में 0.95 प्रतिशत की गिरावट आयी है।
आंकड़ों के अनुसार भैंस, मिथुन या गयाल और याक सहित गोवंश की आबादी एक प्रतिशत वृद्धि के साथ 30.2 करोड़ हो गयी है। इनमें गाय की संख्या 18 प्रतिशत वृद्धि के साथ 14.5 करोड़ हो गयी है।
इसी प्रकार अन्य पालतू पशुओं में भेड़ और बकरी की संख्या में 10 से 14 प्रतिशत तक का इजाफा दर्ज किया गया है। वहीं, सुअर की संख्या 12.3 प्रतिशत गिरावट के साथ 98.6 लाख पर आ गयी है।
संख्या में कमी आने वाले पालतू पशुओं में ऊंट, घोड़ा, खच्चर और टट्टू भी शामिल हैं। इनकी संख्या में 51 से 45 प्रतिशत तक गिरावट आयी है।
उल्लेखनीय है कि पशुधन गणना में देश के सभी राज्यों के लगभग 6.6 लाख गांवों, 89 हजार शहरी क्षेत्रों को शामिल करते हुये पालतू पशुओं वाले 27 करोड़ परिवारों से आंकड़े एकत्र किये गये।
देश में पशुगणना हर पांच साल पर होती है। भारत में पहली बार 1919-20 में पशुगणना हुई थी। इसके बाद 1924-25 में दूसरी बार।आजादी के बाद प्रथम पशुधन गणना 1951 में आयोजित की गई तथा उत्तरोत्तर हर पांचवें वर्ष यह गणना आयोजित की जाती है।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।