देश के कई राज्यों में भारी बारिश से मची तबाही को लेकर पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि कहीं ज्यादा बाढ़ और कहीं सूखे के हालात बनने की वजह जलवायु परिवर्तन तथा बढ़ता वैश्विक तापमान है। गौरतलब है कि भारी बारिश के कारण अब तक 100 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।
कुछ विशेषज्ञ कार्बन उत्सर्जन को कम करने पर जोर देते हैं तो कुछ का मानना है कि इस अप्राकृतिक घटना की वजह अनियोजित निर्माण है।
भारत के कई हिस्सों में मानसून की असामान्य रूप से भारी बारिश के कारण बाढ़ के हालात बने हैं, इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित उत्तर प्रदेश और बिहार हैं। बाढ़ के कारण बीते पांच दिन में 110 लोगों की मौत हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में 79 जबकि बिहार में 28 लोगों की मौत हुई है।
विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र में जलवायु नीति अनुसंधानकर्ता तरुण गोपालकृष्णन ने कहा कि कहीं कम कहीं ज्यादा बारिश की वजह जलवायु परिवर्तन है, ऐसे में कार्बन उत्सर्जन को घटाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ''जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश के पैटर्न में गड़बड़ी आई है। मौसम के दौरान होने वाली बारिश का बड़ा हिस्सा केवल कुछ दिनों पर केंद्रित हो गया जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ आ रही है। इससे होने वाले नुकसान से बचने के लिए दुनियाभर में कार्बन उत्सर्जन में विशेष रूप से कटौती करनी होगी।''
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल के वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल का मानना है कि बरसात में अनियमितता की वजह वैश्विक एवं स्थानीय तापमान में वृद्धि होना है। कोल आईपीसीसी की सागर एवं हिम मंडलों पर विशेष रिपोर्ट के सह लेखक हैं।
रिपोर्ट के एक अन्य सह लेखक अंजल प्रकाश ने बताया कि बहुत बड़े पैमाने पर आने वाली बाढ़ की वजह सागरों का तापमान बढ़ना है। मौसम विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि इस संकट की वजह अनियोजित विकास गतिविधियां हैं।
मौसम विभाग में मौसम विज्ञान के उप निदेशक आनंद कुमार शर्मा ने देश में आ रही भयावह बाढ की वजह जलवायु परितर्वन को मानने से इनकार करते हुए कहा, ''असल मुद्दा भूमि प्रयोग में परितर्वन तथा अतिक्रमण है।''
उन्होंने कहा, ''इसे जलवायु परिवर्तन से जोड़ना बड़ा आसान है लेकिन आपको असल मुद्दों को देखना होगा। असल मुद्दा है कि इन क्षेत्रों में भूमि प्रयोग में परितर्वन, भू आवरण तथा अनियोजित विकास हो रहा है। जब नदी की राह में अतिक्रमण किया जाएगा, अनियोजित विकास होगा तो इस तरह की आपदाएं आएंगी ही। अब तो लोग नदी के मार्ग पर भी घर बनाने लगे हैं।''
विश्व बैंक के मुताबिक तापमान में वृद्धि से भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून के बारे में अनुमान लगाना और भी कठिन हो जाएगा।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।