भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बृहस्पतिवार को कहा कि वैश्विक स्तर पर जोखिम बढ़ा है लेकिन इसके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में है। उन्होंने कहा कि वैश्विक जोखिम बढ़ने के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में है क्योंकि कुल कर्ज में विदेशी ऋण केवल 19.7 प्रतिशत ही है। उन्होंने कहा कि अगले 12 महीने तक महंगाई दर 4 प्रतिशत से नीचे रहेगी। बता दें कि अगस्त में महंगाई दर 7.67 प्रतिशत पर पहुंच गई।
उन्होंने यह भी कहा कि सब्सिडी और मुद्रास्फीति का स्तर कम होने से सऊदी अरब के वर्तमान तेल संकट का भी भारत के राजकोषीय घाटे पर असर सीमित रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक स्तर पर अभी कोई मंदी की स्थिति नहीं है।
ब्लूमबर्ग के एक कार्यक्रम में दास ने कहा, ''वैश्विक जोखिम बढ़ने के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में है क्योंकि इसकी एक प्रमुख वजह कुल कर्ज में विदेशी ऋण का हिस्सा केवल 19.7 प्रतिशत है। उन्होंने नरमी से निपटने के लिये सरकार को बजट में निर्धारित खर्च को शुरू में ही करने का सुझाव दिया। दास ने कहा कि आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये नरमी के चक्र से निपटने के उपायों को राजकोषीय गुंजाइश कम है।
दास ने कहा कि वैश्विक स्तर पर कई तरह की चुनौतियां हैं इनमें व्यापार को लेकर बढ़ता तनाव शामिल है। उन्होंने कहा कि बड़े देशों के बीच व्यापार को लेकर तनाव होने से बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। दास ने कहा, वैश्विक माहौल में चुनौतियां हैं। वैश्विक स्तर पर विकास दर में कमी आ रही है और केंद्रीय बैंक अपनी मॉनिटरी पॉलिसी को आसान कर रहे हैं लेकिन अभी मंदी की स्थिति नहीं है। उन्होंने कहा, 'वैश्विक चुनौतियों के आघात से अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए और संरचनात्मक सुधारों के लिए काम करना जरूरी है।'
मुद्रास्फीति के बारे में उन्होंने कहा कि अगले एक साल में मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत के नीचे बनी रहने की उम्मीद है। गवर्नर ने बढ़ती वैश्विक चुनौतियों के आघात से अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये और संरचनात्मक सुधारों का भी आह्वान किया।
उन्होंने निर्यात-आयात व्यापार में गिरावट को लेकर कहा कि यह चिंता का विषय है। दास ने उम्मीद जतायी कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत दर में कटौती से देश में कोष प्रवाह को गति मिलेगी लेकिन ऐसे पूंजी प्रवाह को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि सब्सिडी की कम मात्रा को देखते हुए सऊदी संकट का मुद्रास्फीति और राजकोषीय घाटे पर केवल सीमित प्रभाव होगा। उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब में दो तेल प्रतिष्ठानों पर ड्रोन के हमलों से कच्चे तेल के दाम में अच्छी-खासी वृद्धि देखी गयी है। भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरत का 83 प्रतिशत आयात करता है। इराक के बाद भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता सऊदी अरब है।
वित्त वर्ष 2018-19 में सऊदी अरब ने भारत को 4.03 करोड़ टन कच्चा तेल बेचा। वित्त वर्ष के दौरान भारत का कच्चे तेल का आयात 20.73 करोड़ टन रहा। कच्चे तेल के दाम में सोमवार को भारी उछाल आया। ब्रेंट कच्चा तेल 19.5 प्रतिशत बढ़कर 71.95 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया था। उसके बाद बाजार कुछ शांत हुआ है।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।