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दुनिया को आतंकियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का दिखावा करने के लिए पाकिस्तान ने नया तरीका ढूंढ निकाला है। दरअसल, पाकिस्तान को आतंकी फंडिंग रोकने और आतंकियों के खिलाफ ठोस कदम उठाने को कहा गया था। अब तक हीलाहवाली करते आ रहे पड़ोसी मुल्क ने दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए नई चाल चली है।

फाइनैंशल ऐक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की बैंकॉक में अहम बैठक से पहले पाकिस्तान अपनी सरजमीं से संचालित आतंकी संगठनों और आतंकियों के खिलाफ फर्जी और कमजोर मामले दर्ज करवा रहा है। इससे वह आतंकियों को नाराज भी नहीं करेगा और एफएटीएफ को भी बता सकेगा कि वह कदम उठा रहा है।

सूत्रों ने पुख्ता सबूतों को सामने रखते हुए जानकारी दी है कि कैसे पाकिस्तान वैश्विक समुदाय को अंधेरे में रखने की कोशिश कर रहा है। 1 जुलाई को ऐसी ही एक एफआईआर गुजरांवाला पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई। एक सूत्र द्वारा दी गई सूचना के आधार पर प्रतिबंधित दावत-वल-इरशाद द्वारा की गई एक लैंड डील के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। यह संगठन हाफिज सईद के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का ही सहायक संगठन है।

गौर करने वाली बात यह है कि इस एफआईआर को इस तरह से ड्राफ्ट किया गया है कि आगे इसकी जांच भी नहीं की जाएगी। गौरतलब है कि लश्कर-ए-तैयबा और दावत-उल-इरशाद आतंकी गतिविधियों में लिप्त हैं और इस तरह की प्रॉप्रर्टी का इस्तेमाल कर ये प्रतिबंधित संगठन आतंकियों की फंडिंग के लिए पैसा इकट्ठा करते हैं।

लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद और चार अन्य अब्दुल गफ्फार, हाफिज मसूद, आमिर हमजा और मलिक जफर इकबाल के खिलाफ एफआईआर में इस बात का जिक्र नहीं है कि इन आतंकियों के पास जमीन कब थी। एफआईआर में कहा गया है, 'प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य, इन लोगों ने आतंकी गतिविधियों के लिए इस संपत्ति का इस्तेमाल किया। इन लोगों ने आतंकी वारदात के लिए फंड जुटाने और आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए प्रॉपर्टी का इस्तेमाल किया।'

एफआईआर में जमात-उद-दावा या फलाह-ए-इंसानियत का कोई जिक्र नहीं है। एफआईआर में दावत-उल-इरशाद के नाम का जिक्र है जो जमात-उद-दावा का पुराना नाम है। कानूनी जानकार कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका और टाइमलाइन का भी जिक्र नहीं है। एक कानूनी विशेषज्ञ ने कहा कि आतंकवाद के मामले में FIR में काफी सामान्य शब्दों का इस्तेमाल हुआ है जबकि कानून से जुड़े विशेष ऐक्ट्स का जिक्र किया जा सकता था। एक सूत्र ने कहा कि एफआईआर में इस बात का भी जिक्र नहीं है कि कैसे आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया गया। ऐसे में साफ है कि यह पूरी एक्सर्साइज़ एफएटीएफ की आंखों में धूल झोंकने के लिए है।

आपको बता दें कि एफएटीएफ की फाइनल मीटिंग अक्टूबर के पहले हफ्ते में हो सकती है और इस दौरान पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से निकालने, रखने या देश को ब्लैकलिस्ट करने पर फैसला होगा। एजेंसी ने 27 पॉइंट्स का ऐक्शन प्लान दिया है, जिसमें से सात पॉइंट्स में प्रतिबंधित संगठनों के आतंकी फंडिंग में शामिल होने की बात है। एफएटीएफ द्वारा प्रतिबंध से बचने के लिए पाकिस्तान आतंकी संगठनों के खिलाफ कमजोर और फर्जी केस दर्ज करा रहा है, जिनका कोई कानूनी आधार नहीं है।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी एएनआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।