पेइचिंग चीन और अमेरिका के बीच मंगलवार को शंघाई में व्यापार मुद्दों के समाधान के लिए बातचीत फिर शुरू हुई। दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के इस बार थोड़ा नरम रुख दिखाते हुए किसी समझौते पर पहुंचने की उम्मीद है। दोनों देशों के बीच इसी साल मई में पहले दौर की बातचीत तब विफल हो गई थी, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीन पर अपनी प्रतिबद्धताओं पर पुनर्विचार करने का आरोप लगाया था।
उसके बाद यह दोनों देशों के बीच होने वाली पहली आमने-सामने की बैठक है। अमेरिका और चीन दोनों ने ही एक-दूसरे के खिलाफ कड़े शुल्क लगाने का रुख अख्तियार किया हुआ है। इसकी जद में दोनों पक्षों का कुल 360 अरब डॉलर से अधिक का कारोबार है। साथ ही अमेरिका की मांग है कि चीन उसके यहां अमेरिकी टेक्नॉलजी की कथित चोरी पर रोक लगाए और उसकी कंपनियों को अपने यहां समान मौके उपलब्ध कराए।
मंगलवार-बुधवार को होने वाली इस बैठक में अमेरिका की ओर से व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइथाईजर और वित्त मंत्री स्टीवन म्नूचिन शामिल होने पहुंचे हैं। यह बातचीत ऐसे दौर में हो रही है जब चीन हॉन्ग-कॉन्ग में नागरिक संघर्ष के भारी दबाव से गुजर रहा है। शंघाई में होने वाली बैठक से कुछ दिन पहले ही ट्रंप ने विश्व व्यापार संगठन में चीन से विकासशील दर्जा छीनने की धमकी दी थी।
इसे चीन ने अमेरिका का अहंकार और स्वार्थ बताया था। साथ ही स्थानीय मीडिया ने कहा था कि अमेरिका व्यापार बातचीत से पहले दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। ट्रंप ने शुक्रवार को कहा था कि उन्हें लगता है कि चीन के वार्ताकार किसी समझौते तक पहुंचने में देर करेंगे और अमेरिका में अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव का इंतजार करेंगे। यदि वह जीत गए, तो फिर चीन समझौतों पर हस्ताक्षर कर लेगा। लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता की फिर शुरुआत को सकारात्मक दृष्टि से देखा जा रहा है, भले ही इसके बहुत सीमित परिणाम आने की उम्मीद क्यों ना हो?
मई में वार्ता विफल होने के बाद जून में जी-20 देशों की बैठक में ट्रंप और उनके चीनी समकक्ष शी चिनफिंग के बीच बातचीत फिर शुरू करने को लेकर सहमति बनी थी।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।