आंध्र प्रदेश की बदले की राजनीति का एक सबसे बड़ा उदाहरण आज उस समय सामने आया जब राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू के अमरावती स्थित घर से सटी इमारत प्रजा वेदिका को सत्तारूढ़ वाईएसआरसीपी के आदेश के बाद बुधवार तड़के तोड़ दिया गया। कृष्णा नदी के किनारे बनी इस इमारत को गिराने का आदेश राज्य के नए मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने कुछ दिन पहले दिए थे। उन्होंने कहा था कि यह इमारत गैर-कानूनी है और ऐसी सभी इमारतों को गिराने के लिए चलाए गए अभियान के तहत सबसे पहले इसको तोड़ जाएगा।
विदेश यात्रा से लौटने के बाद चंद्रबाबू नायडू 'प्रजा वेदिका' के बगल में स्थित अपने आवास में मौजूद हैं। मौके पर टीडीपी के सैकड़ों कार्यकर्ता भी मौजूद हैं। विरोध के बीच एक जेसीबी, 6 ट्रक और 30 मजदूर बिल्डिंग को तोड़ रहे हैं।
#WATCH: Demolition of 'Praja Vedike' building underway in Amaravati. The building was constructed by the previous government led by N. Chandrababu Naidu. #AndhraPradesh pic.twitter.com/qRCWjfVTJZ
— ANI (@ANI) June 25, 2019
पिछले दिनों नायडू ने जगनमोहन को पत्र लिखकर 'प्रजा वेदिका' को नेता प्रतिपक्ष का सरकारी आवास घोषित करने की मांग की थी, लेकिन उनकी मांग ठुकरा दी गई। इसे वो अपने मुख्यमंत्री काल में कार्यालय की तरह इस्तेमाल करते थे और जनता के साथ-साथ अधिकारियों से रूबरू होते थे। इसे अमरावती कैपटल डेवलपमेंट ऑथोरिटी ने बनवाया था और अब जगनमोहन रेड्डी सरकार ने इसे तोड़ने का फैसला किया क्योंकि इसका निर्माण नदी तट पर 'ग्रीन' नियमों के खिलाफ हुआ है।
यह इमारत नायडू सरकार के कार्यकाल के दौरान करीब 8 करोड़ रुपये की कीमत से बनी थी। नायडू के बंगले से सटे इस कॉन्फ्रेंस हॉल में अधिकारियों के साथ बैठकें की जाती थीं। यहीं पर पूर्व सीएम लोगों से मिलते थे। यह हॉल काफी बड़ा था और जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर से लैस था। अमरावती में कृष्णा नदी के किनारे बने नायडू के बंगले और इस इमारत का दरवाजा भी एक ही था।
सरकार बदलने के बाद इसे लेकर चर्चा था कि अगर नई सरकार प्रजा वेदिका का इस्तेमाल करती है तो आखिर नायडू उस बंगले में कब तक रहेंगे। हालांकि, जगन ने उसके अंदर बैठक कर उस इमारत को ही तोड़ने का ऐलान कर सबको दंग कर दिया था। जगन का दावा है कि इमारत गैर-कानूनी थी और इसके निर्माण की इजाजत नहीं थी।
जगन ने कहा था सिंचाई विभाग के एग्जिक्युटिव इंजिनियर ने इमारत के लिए इजाजत नहीं थी थी लेकिन नदी से जुड़े नियमों का उल्लंघन कर फिर भी इसका निर्माण किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि इमारत के निर्माण के लिए टेंडर भी नहीं दिया गया। साथ ही, शुरुआत में इसकी कीमत करीब 5 करोड़ रुपये लगाई गई थी लेकिन बनते-बनते इसमें 8 करोड़ से भी ज्यादा रुपये लग गए।
वहीं, इस फैसले प्रतिक्रिया पर देते हुए नायडू ने कहा, 'इस खूबसूरत इमारत को तोड़ना एक बेवकूफाना फैसला है। हमने सरकार से आग्रह किया था कि इसे छोड़ दें क्योंकि इसका इस्तेमालविपक्ष के नेता के तौर पर हम कर सकेंगे। अगर वे हमें नहीं देना चाहते थे तो खुद इसका इस्तेमाल कर सकते थे।'
आंध्र प्रदेश की सत्ता से विदाई के बाद चंद्रबाबू नायडू को मिल रही सहूलियतें कम होती जा रही हैं। नायडू के परिवार के सदस्यों की सुरक्षा में भी कटौती की गई है। बेटे नारा लोकेश को मिली जेड श्रेणी की सुरक्षा को हटा लिया गया है। पूर्व मंत्री नारा लोकेश की सुरक्षा को 5+5 से घटाकर 2+2 कर दिया गया है।