लगभग 6 दशकों तक दक्षिणी राज्य तमिलनाडु की राजनीति का केंद्र रहे करुणानिधि ने आखिरकार मंगलवार, 7 अगस्त की शाम 6.10 मिनट पर दुनिया को अलविदा कह दिया. 5 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि बीमारी के चलते बीते कुछ समय से अस्पताल में भर्ती थे. जयललिता की ही तरह तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख मुथुवेल करुणानिधि का पार्थिव शरीर जलाया नहीं, बल्कि दफनाया जाएगा.
Construction of burial at Chennai's Marina beach for #Karunanidhi, underway. #TamilNadu pic.twitter.com/fQLnkyNpFs
— ANI (@ANI) August 8, 2018
दो वर्ष पूर्व तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के समय पर भी यह बात अधिकतर लोगों के दिलोदिमाग में आई थी कि आखिर जयललिता का दाह संस्कार क्यों नहीं किया गया और उन्हें दफनाया क्यों गया? बाद में स्पष्ट हुआ कि इसकी वजह जयललिता का द्रविड़ मूवमेंट से जुड़ा होना था. जयललिता एक ऐसी द्रविड़ पार्टी की प्रमुख थीं, जिसकी नींव ब्राह्मणवाद के विरोध के लिए पड़ी थी. द्रविड़ आंदोलन हिंदू धर्म के किसी ब्राह्मणवादी परंपरा और रस्म में यक़ीन नहीं रखता है.
दरअसल तमिलनाडु में अन्नादुरै की प्रतिनिधित्व में बनी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम(डीएमके) भी राज्य की राजनीति में द्रविड़ सामज के प्रति वैचारिक महत्व रखती है. पार्टी के मुखिया रहे अन्नादुरै का द्रविड़ आंदोलन में बड़ा नाम रहा और अन्ना वैचारिक तौर पर हमेशा ब्राह्मणवादी परंपरा के विरोधी रहे. यही कारण था कि हिन्दू होने के बावजूद उनके निधन के बाद अन्ना के पार्थिव शरीर को जलाने के बाजाए चेन्नई के मरीना बीच पर दफनाया गया.
इसके बाद से ही द्रविड़ों के प्रति संवेदना रखने वाली किसी राजनीतिक शख्सियत के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को ब्राह्मणवादी परंपरा के विरुद्ध, जलाए जाने के बजाए दफनाने की परंपरा चली आ रही है और इसी वजह से एम करुणानिधि के पार्थिव शरीर को भी दफनाया जाएगा.
जयललिता से पहले एमजी रामचंद्रन को भी दफ़नाया गया था. उनकी क़ब्र के पास ही द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता और डीएमके के संस्थापक और तमिलनाडु के पहले द्रविड़ मुख्यमंत्री अन्नादुरै की भी क़ब्र है.