स्त्री और पुरुष के बीच विवाहेतर संबंध से जुड़े 158 साल पुराने कानून आईपीसी 497 (व्यभिचार) की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया. कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 (अडल्टरी) को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा कि जो भी सिस्टम महिला को उसकी गरिमा से विपरीत या भेदभाव करता है वो संविधान के कोप को इनवाइट करता है.
आगे कहा कि जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है वो असंवैंधानिक है. सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने 9 अगस्त को व्यभिचार की धारा आईपीसी 497 पर फैसला यह कहते हुए सुरक्षित रखा था कि पीठ तय करेगी कि यह धारा अंसवैधानिक है या नहीं, क्योंकि इसमें सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है, महिलाओं को नहीं.
Five-judge bench of Supreme Court decriminalises adultery in a unanimous judgement pic.twitter.com/EzbAUL3dER
— ANI (@ANI) September 27, 2018
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली इस बेंच ने कहा कि किसी भी तरह से महिला के साथ असम्मान व्यवहार नहीं किया जा सकता है. हमारे लोकतंत्र की खूबी ही मैं, तुम और हम की है. जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपना और जस्टिस एम खानविलकर का फैसला सुनाया. जिसके बाद अन्य तीन जजों जस्टिस नरीमन, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने भी इस फैसले पर सहमति जताई.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आईपीसी की धारा सेक्शन 497 महिला के सम्मान के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि महिलाओं को हमेशा समान अधिकार मिलना चाहिए. महिला को समाज की इच्छा के हिसाब से सोचने को नहीं कहा जा सकता. संसद ने भी महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा पर कानून बनाया हुआ है. चीफ जस्टिस ने कहा कि पति कभी भी पत्नी का मालिक नहीं हो सकता है.
चीफ जस्टिस और जस्टिस खानविलकर ने कहा कि एडल्टरी किसी तरह का अपराध नहीं है, लेकिन अगर इस वजह से आपका पार्टनर खुदकुशी कर लेता है, तो फिर उसे खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला माना जा सकता है. इसके बाद सभी पांच जजों ने एक मत से इस धारा को असंवैधानिक करार दिया.
Mere adultery can't be a crime, unless it attracts the scope of Section 306 (abetment to suicide) of the IPC: CJI Dipak Misra reading verdict on the validity of Section 497 (Adultery) of the Indian Penal Code (IPC) pic.twitter.com/FNFyhQqNto
— ANI (@ANI) September 27, 2018
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस ए एम खानविलकर शामिल थे.
केरल के एक अनिवासी भारतीय जोसेफ साइन ने इस संबंध में याचिका दाखिल करते हुए आईपीसी की धारा-497 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था और जनवरी में इसे संविधान पीठ को भेजा गया था.
158 साल पुरानी आईपीसी की धारा-497 के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी अन्य शादीशुदा महिला के साथ आपसी रजामंदी से शारीरिक संबंध बनाता है तो उक्त महिला का पति एडल्टरी (व्यभिचार) के नाम पर उस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता है. हालांकि, ऐसा व्यक्ति अपनी पत्नी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता है और न ही विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष की पत्नी इस दूसरी महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकती है.
इस धारा के तहत ये भी प्रावधान है कि विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है. किसी दूसरे रिश्तेदार अथवा करीबी की शिकायत पर ऐसे पुरुष के खिलाफ कोई शिकायत नहीं स्वीकार होगी. इस धारा के तहत ये भी प्रावधान है कि विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है. किसी दूसरे रिश्तेदार अथवा करीबी की शिकायत पर ऐसे पुरुष के खिलाफ कोई शिकायत नहीं स्वीकार होगी.
स्त्री-पुरुष के विवाहेतर संबंधों से जुड़ी इस धारा का पक्ष लेते हुए केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया था कि व्यभिचार विवाह संस्थान के लिए खतरा है. सरकार ने यह भी कहा कि परिवारों पर इसका असर पड़ता है. केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आंनद ने साफ कहा कि हमें अपने समाज में हो रहे विकास और बदलाव के हिसाब से कानून को देखने की जरूरत है न कि पश्चिमी देशों के नजरिए से ऐसे कानून पर राय देनी चाहिए.