सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात सरकार को 2002 दंगों के वक्त गैंगरेप का शिकार हुई बिल्किस बानो को मुआवजा, घर और नौकरी देने का आदेश दिया। दरअसल कोर्ट ने अप्रैल में ही गुजरात सरकार को आदेश दिया था कि वह बानो को 50 लाख रुपये मुआवजा के साथ-साथ उनके लिए नौकरी और घर दे लेकिन अबतक आदेश पर अमल नहीं होने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अब इसके लिए 2 हफ्ते की समयसीमा तय कर दी है।
2002 Gujarat riots case: Supreme Court today directed the Gujarat government to pay a compensation of Rs 50 lakh as well as a job and accommodation to gangarape survivour Bilkis Bano within two weeks. pic.twitter.com/WseclTSb9l
— ANI (@ANI) 30 September 2019
बिलकिस बानो गैंगरेप मामला गुजरात दंगों का सबसे भयावह मामला था। गुजरात में अहमदाबाद से करीब 250 किलोमीटर दूर रणधीकपुर गांव में दंगाइयों की भीड़ ने 3 मार्च 2002 को बिलकिस बानो के परिवार पर हमला किया था। बिलकिस उस समय 21 साल की थीं और गर्भवती थीं। दंगाइयों ने उनके साथ गैंगरेप किया और उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया। दंगाइयों ने बिल्किस की 3 साल की बेटी को भी नहीं बख्शा और उसे मौत के घाट उतार दिया। इस हमले में बिल्किस के परिवार के 7 लोगों समेत 14 लोगों की हत्या हुई। गैंगरेप के वक्त बिल्किस बानो गर्भवती थीं और बाद में उन्होंने एक एक बेटी को जन्म दिया।
बिल्किस बानो ने इससे पहले शीर्ष अदालत के समक्ष एक याचिका पर उन्हें पांच लाख रुपए मुआवजा देने की राज्य सरकार की पेशकश ठुकराते हुये ऐसा मुआवजा मांगा था जो दूसरों के लिये नजीर बने। शीर्ष अदालत ने इससे पहले 29 मार्च को गुजरात सरकार से कहा था कि बंबई उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये गये आईपीएस अधिकारी सहित सभी दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ दो सप्ताह के भीतर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाये।
इस साल अप्रैल महीने में इस मामले की सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ को सूचित किया था कि इस मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी है। पीठ को यह भी बताया गया था कि पुलिस अधिकारियों के पेंशन लाभ रोक दिये गये हैं और बंबई उच्च न्यायालय द्वारा दोषी आईपीएस अधिकारी की दो रैंक पदावनति कर दी गयी है।
बानो की वकील शोभा गुप्ता ने इससे पहले न्यायालय से कहा था कि राज्य सरकार ने दोषी ठहराये गये पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। उन्होने यह भी कहा था कि गुजरात में सेवारत एक आईपीएस अधिकारी इस साल सेवानिवृत्त होने वाला है जबकि चार अन्य पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं और उनकी पेंशन तथा सेवानिवृत्ति संबंधी लाभ रोकने जैसी कार्रवाई भी नही की गयी है।
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता तुषार मेहता ने कहा था कि इन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही की जा रही है। बिल्किस बानो को मुआवजे के बारे में मेहता ने कहा था कि इस तरह की घटनाओं में पांच लाख रुपए मुआवजा देने की राज्य सरकार की नीति है।
अभियोजन के अनुसार अहमदाबाद के पास रणधीकपुर गांव में उग्र भीड़ ने तीन मार्च 2002 को बिल्किस बानो के परिवार पर हमला बोला था। इस हमले के समय बिल्किस बानो पांच महीने की गर्भवती थी और उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गयी थी। इस मामले में विशेष अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी, जबकि पुलिसकर्मियों और चिकित्सकों सहित सात आरोपियों को बरी कर दिया था।
उच्च न्यायालय ने चार मई, 2017 को पांच पुलिसकर्मियों और दो डॉक्टरों को ठीक से अपनी ड्यूटी का निर्वहन नहीं करने और साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने के अपराध में भारतीय दंड संहिता की धारा 218 और धारा 201 के तहत दोषी ठहराया था। शीर्ष अदालत ने 10 जुलाई, 2017 को दोनों डाक्टरों और आईपीएस अधिकारी आर एस भगोड़ा सहित चार पुलिसकर्मियों की अपील खारिज कर दी थी। इन सभी ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी।