अगस्त महीने में ऑटोमोबाइल उद्योग की बिक्री बीते 22 सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी बड़े पैमाने पर देखने को मिल रहा है। उद्योग जगत के आंतरिक सूत्रों और जानकारों का कहना है कि सरकार ने फिलहाल जिन कदमों का ऐलान किया है, महज उनके जरिए ही मांग में कमी को दूर नहीं किया जा सकता है। इससे निपटने के लिए कुछ और कदमों और कुछ अधिक वक्त की जरूरत है।
सरकार ने अब तक जिन उपायों का ऐलान किया है, उनके जरिए मंदी दूर होने की संभावना कम ही है। आने वाली कुछ और तिमाहियों में भी ऑटो सेक्टर में मंदी की स्थिति देखने को मिल सकती है।
सलाहकार प्रतिष्ठान ग्रांट थॉर्नटन इंडिया के श्रीधर वी. ने बताया, 'लिक्विडिटी की प्रॉब्लम दूर करने के लिए सरकार ने प्रयास किए हैं। लेकिन अब भी टैक्स और स्क्रैपेज पॉलिसी जैसे मसले बचे हैं, जिन पर किसी समाधान की जरूरत है। इस बात के संकेत हैं कि सरकार इनकी ओर गंभीरता से विचार कर रही है।'
पिछले महीने ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने ऑटो सेक्टर को बचाने के लिए कई ऐलान किए थे। इनमें से एक है सरकारी विभागों की ओर से नई कारों की खरीद पर लगी रोक को हटाना। इसके अलावा मार्च 2020 तक खरीदे जाने वाहनों के लिए 15 फीसदी मूल्यह्रास (डेप्रिसिएशन) को भी मंजूरी दी गई है।
हालांकि अब भी इंडस्ट्री की कई ऐसी मांगे हैं, जो लंबित हैं। इनमें जीएसटी को 28 प्रतिशत से 18 प्रतिशत किया जाना और वीइकल स्क्रैपेज पॉलिसी शामिल है। एक सलाहकार फर्म के मुताबिक यदि सरकार छोटी कारों पर जीएसटी कम करती है करती है तो निश्चित अवधि के लिए मांग में इजाफा हो सकता है।
बीते कुछ दिनों में कई मंत्रियों ने जीएसटी काउंसिल में टैक्स कटौती की मांग को रखे जाने और राहत देने की कोशिश करने की बात कही है। फिलहाल ऑटो सेक्टर उपभोग में कमी से जूझ रहा है। इसके लिए ज्यादा जीएसटी रेट, खेती में संकट और सैलरी में कमी और तरलता के संकट जैसे कारण जिम्मेदार हैं।
इस साल अगस्त महीने में कारों की बिक्री में 41 फीसदी की गिरावट आई और 115,957 कारें बिकीं, जबकि बीते साल अगस्त में ही यह आंकड़ा 1,96,847 यूनिट्स का था।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी आईएएनएस द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।