जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के कांग्रेस और एनसी के साथ मिलकर सरकार बनाने के मंसूबों पर पानी फिर गया है. राज्यपाल सत्यपाल मालिक ने नाटकीय घटनाक्रम के बीच जम्मू कश्मीर विधानसभा भंग कर दी है जिसके बाद सरकार बनने की सारी संभावनाएं खत्म हो गई हैं. इससे पहले पीडीपी की मुखिया महबूबा मुफ्ती ने सरकार बनाने का दावा पेश किया था.
राज्य के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने धारा 53 के तहत विधानसभा भंग करने का आदेश दिया. इससे पहले पीडीपी ने एनसी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने का दावा पेश किया था. इसके साथ ही पीडीपी में बगावत की खबरें आने लगीं. कुछ विधायकों ने गठबंधन सरकार बनाने का विरोध किया.
Jammu and Kashmir Governor Satya Pal Malik has passed an order dissolving the state Legislative Assembly. pic.twitter.com/TirFfZfTCs
— ANI (@ANI) November 21, 2018
बुधवार को जम्मू-कश्मीर में पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा करने वाला पत्र फैक्स से राज्यपाल को भेजा. हालांकि राजभवन ने ऐसा कोई फैक्स मिलने से इन्कार कर दिया. जिसके बाद महबूबा ने राज्यपाल को संबोधित पत्र ट्वीट किया और कहा कि वह फोन या फैक्स के जरिए राज्यपाल से संपर्क करने में विफल हैं, इस नाते ट्वीट का सहारा ले रहीं हैं.
महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक को संबोधित पत्र में लिखा, 'आपको मीडिया की खबरों में पता चला होगा कि कांग्रेस और नेशनल कान्फ्रेंस ने भी राज्य में सरकार बनाने के लिए हमारी पार्टी को समर्थन देने का फैसला किया है. नेशनल कान्फ्रेंस के सदस्यों की संख्या 15 है और कांग्रेस के 12 विधायक हैं. अत: हमारी सामूहिक संख्या 56 हो जाती है.'
महबूबा के इस कदम के बाद पीपुल्स कांफ्रेंस के लीडर सज्जाद लोन ने भी बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. सज्जाद का दावा था कि उन्हें बीजेपी के 26 विधायकों के अलावा 18 अन्य विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है और यह आंकड़ा बहुमत का है. सज्जाद लोन ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक को लिखे पत्र में कहा कि उनके पास सरकार गठन के लिए जरूरी आंकड़ें से अधिक विधायकों का समर्थन है.
दोनों ओर से दावेदारी की खबरें आने के बाद राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग कर दी. राज्यपाल ने भंग करने के पीछे सबसे प्रमुख वजह सरकार बनाने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त की आशंका जताई है. दूसरा प्रमुख कारण परस्पर विरोधी राजनीतिक विचारधारा वाले दलों के गठबंधन से स्थाई सरकार बनने में आशंका रही.
विधानसभा भंग करने के लिए अन्य कारणों के बाबत राज्यपाल ने कहा कि बहुमत के लिए सभी पक्षों की ओर से अलग अलग दावें हैं वहां ऐसी व्यवस्था की उम्र कितनी लंबी होगी इस पर भी संदेह है.'' राज्यपाल ने पत्र में कहा, ''जम्मू कश्मीर में इस वक्त नाजुक हालात में सुरक्षा बलों के लिए स्थाई और सहयोगात्मक माहौल की जरूरत है. ये बल आतंकवाद विरोधी अभियानों में लगे हुए हैं और अंतत: सुरक्षा स्थिति पर नियंत्रण पा रहे हैं.'
इस बीच खबर यह भी आई कि चुनाव आयोग इस पर विचार कर रहा है कि विधानसभा भंग होने के बाद प्रदेश में आचार संहिता लागू हो सकती है या नहीं. आयोग में इसपर विचार तेज हो गया है.
Election Commission to examine if the model code of conduct can be imposed in Jammu and Kashmir or not, after Governor dissolves Legislative Assembly.
— ANI (@ANI) November 21, 2018
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 89 सीटे हैं, जिनमें से दो सदस्य मनोनीत किए जाते हैं. ऐसी स्थिति में सरकार बनाने के लिए 44 विधायकों की जरूरत होती है. मौजूदा स्थिति में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के पास 28, बीजेपी के 25 और नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास 15 और कांग्रेस के पास 12 सीटे हैं. यानी अगर पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस एक साथ आते हैं तो आंकड़ा 55 तक पहुंच रहा है और आसानी से सरकार का गठन किया जा सकता है.
राज्यपाल द्वारा विधानसभा भंग करने का उठाया गया कदम राज्य में छह महीने के भीतर विधानसभा चुनाव का मार्ग प्रशस्त करता है. बीजेपी के समर्थन वापसी से महबूबा मुफ्ती सरकार गिरने के बाद से राज्य में लगे राज्यपाल शासन की अवधि अगले महीने 19 तारिख को खत्म हो रही है.