देश में ऑनलाइन शॉपिंग का कारोबार बदलने जा रहा है. सरकार ने ई-कॉमर्स कंपनियों पर जो नए नियम लागू किए हैं उसके बाद एक्सक्लूसिव डील, कैशबैक और बंपर डिस्काउंट जैसी चीजें खत्म हो जाएंगी. सरकार ने ई-कॉमर्स सेक्टर के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति बदल दी है, जिससे ऐमजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को जहां बड़ा झटका लगा है तो घरेलू कारोबारियों का गुस्सा शांत करने की कोशिश की गई है, जो इन कंपनियों के काम करने के तरीके से नाराज हैं.
पॉलिसी में एक नया नियम जोड़ा गया है, जिसके मुताबिक ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म से जुड़ी कोई भी इकाई सामान की बिक्री नहीं कर सकती. इसके साथ किसी ई-कॉमर्स साइट पर कोई एक वेंडर कितना सामान बेच सकता है, इसकी भी सीमा तय की गई है.
इससे ई-कॉमर्स सेक्टर की कंपनियों को अपने बिजनस मॉडल में बदलाव करना पड़ेगा. सरकार के नए रूल्स के मुताबिक, कोई ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म किसी सप्लायर को खास रियायत नहीं दे सकता है. इस संशोधन के बाद कैशबैक, एक्सक्लूसिव सेल या किसी पोर्टल पर एक ब्रैंड के लॉन्च, ऐमजॉन प्राइम और फ्लिपकार्ट एश्योर्ड जैसी डील्स या किसी तरह की खास सेवा देने में दिक्कत हो सकती है. नए रूल्स का मकसद इन प्लैटफॉर्म्स को किसी भी तरह के पक्षपात से मुक्त करना है.
नीति में बदलाव पर एक बड़े सरकारी अधिकारी ने कहा, 'साल 2016 के प्रेस नोट 3 में जो बातें कही गई थीं, उसे अच्छी तरह से लागू करने के लिए यह कदम उठाया गया है.'
इसमें कहा गया था कि ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म्स कीमतों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष तरीके से असर नहीं डाल सकते. अधिकारी ने बताया कि ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म्स की सहयोगी इकाइयों की तरफ से डिस्काउंट को लेकर काफी शिकायतें मिल रही थीं. उन्होंने बताया कि वे लॉजिस्टिक्स और होलसेल एंटिटी के जरिए ये छूट दे रहे थे.
इसका मतलब यह भी है कि अब ग्राहकों को पहले की तरह ई-कॉमर्स साइट्स पर बड़ा डिस्काउंट नहीं मिलेगा. इससे फिजिकल स्टोर्स को फायदा हो सकता है, जिनके बिजनस में ई-कॉमर्स कंपनियों ने बड़ी सेंध लगाई है. व्यापारी समुदाय लगातार यह शिकायत कर रहा था कि ई-कॉमर्स कंपनियां अपने प्लैटफॉर्म पर सामान की बिक्री करके मार्केट को प्रभावित कर रही हैं. उनके मुताबिक, यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों के खिलाफ भी था, जिसमें बिजनस-टु-कंज्यूमर ई-कॉमर्स में ऐसे निवेश पर रोक है.
हालांकि, बिजनस-टु-बिजनस ई-कॉमर्स में सरकार ने 100 पर्सेंट एफडीआई की इजाजत दी है. ई-कॉमर्स नीति में बदलाव की जानकारी डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी ऐंड प्रमोशन (डीआईपीपी) ने एक प्रेसनोट में दी है. उसने बताया कि नए नियम 1 फरवरी 2019 से लागू होंगे. सरकार एक अलग ई-कॉमर्स पॉलिसी पर भी काम कर रही है, जिसके लिए मंत्रालयों के बीच विमर्श शुरू हो चुका है.
नए बदलावों के बारे में निवेश मामलों की समझ रखने वाले एक सूत्र ने कहा, 'अब क्लाउडटेल, ऐमजॉन पर सामान नहीं बेच पाएगी. उसे वेयरहाउस या लॉजिस्टिक्स मामलों में भी तरजीह नहीं दी जा सकती.' ऐमजॉन इंडिया पर अभी सबसे अधिक सामान क्लाउडटेल बेचती है, जो इन्फोसिस के सह-संस्थापक एन आर नारायण मूर्ति की कैटामारन वेंचर और ऐमजॉन का जॉइंट वेंचर है.
एक और बदलाव से इनवेंटरी संबंधी शर्तों को सख्त बनाया गया है. इसमें कहा गया है कि अगर कोई वेंडर मार्केटप्लेस एंटिटी या उसकी ग्रुप कंपनियों से 25 पर्सेंट से अधिक सामान खरीदता है तो माना जाएगा कि उसकी इनवेंटरी पर मार्केटप्लेस का कंट्रोल है. इसका मतलब यह है कि कोई ब्रैंड या सप्लायर किसी एक मार्केटप्लेस के साथ खास संबंध नहीं बना पाएगा.
अभी मोबाइल फोन या वाइट गुड्स के मामलों में ऐसा देखा जा रहा है. नई नीति के मुताबिक, मार्केटप्लेस या उसके सीधे या परोक्ष रूप से इक्विटी या कॉमन कंट्रोल वाली एंटिटी को बिना पक्षपात के प्लैटफॉर्म के वेंडरों को सर्विस देनी होगी. इससे कैशबैक या फास्टर डिलीवरी जैसी प्रमोशनल स्कीम्स प्रभावित हो सकती हैं. नई नीति में इन्हें भेदभाव वाला माना गया है.
इन बदलाव के बारे में पीडब्ल्यूसी के पार्टनर आकाश गुप्त ने कहा कि इनसे सबको बराबरी का मौका मिलेगा. इससे बाजार में नए वेंडर्स को भी उभरने का मौका मिल सकता है. गुप्त ने कहा, 'कुछ ऐसे बदलाव भी किए गए हैं, जिनकी निगरानी में मुश्किलें आ सकती हैं.'
व्यापारियों के संगठन कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा उत्पादों की बिक्री से संबंधित नियमों को कड़ा करने के सरकार के फैसले का स्वागत किया है. हालांकि, कैट ने इसके साथ ही ई-कॉमर्स नीति लाने और क्षेत्र की निगरानी के लिए नियामक बनाने की भी मांग की है.
कैट के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, 'हमारे लंबे समय से चल रहे संघर्ष के बाद यह एक बड़ी उपलब्धि है. यदि इसे उचित तरीके से क्रियान्वित किया गया तो ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा गड़बड़ी, बाजार बिगाड़ने वाले मूल्य और भारी छूट आदि पर लगाम लग सकेगी.'
देश में खुदरा बाजार बहुत बड़ा है। एक अनुमान के मुताबिक देश में लगभग चार करोड़ खुदरा की दुकानें हैं. इनके माध्यम से लगभग चौदह करोड़ लोगों का रोजी-रोटी जुड़ी हुई है. जीएसटी के कारण पहले ही सरकार से नाराज चल रहे व्यापारी ऑनलाइन कंपनियों पर कोई लगाम न लगाए जाने से भी नाराज चल रहे थे. सरकार ने जीएसटी की दर घटाकर व्यापारियों को मनाने का काम किया था.
इस नए कानून के द्वारा भी उसने इसी वर्ग को रिझाने की कोशिश की है. दूसरी तरफ आरएसएस और स्वदेशी जागरण मंच भी सरकार पर देशी कंपनियों, खुदरा व्यापारियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार पर दबाव डाल रही थी. इससे भी सरकार पर दबाव काम आया और इसका अंत इस कानून के साथ हुआ.