राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन करने से लेकर राकांपा प्रमुख शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारने और वैचारिक रूप से विपरीत छोर वाली पार्टी मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन करने तक, शिवसेना का ''दुश्मनों के साथ दोस्ती'' का एक इतिहास रहा है। इसलिए जो लोग शिवसेना के अतीत से परिचित हैं, उन्हें शिवसेना द्वारा सोमवार को राजग से अलग होने और कांग्रेस तथा राकांपा से समर्थन मांगने पर जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ।
शिवसेना को उग्र हिंदुत्ववादी रुख के लिए जाना जाता है। पिछले महीने हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को 105 सीटें मिलीं, इसके बाद शिवसेना को 56, राकांपा को 54 और कांग्रेस को 48 सीटें मिलीं।
बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की स्थापना की थी और पार्टी के शुरुआती पांच दशकों के दौरान कांग्रेस ने उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन किया।
धवल कुलकर्णी ने अपनी किताब 'द कजिन्स ठाकरे-उद्धव एंड राज एंड इन द शैडो ऑफ देयर सेना' में लिखा है कि 1960 और 70 के दशक में कांग्रेस ने वामपंथी मजदूर संगठनों के खिलाफ शिवसेना का इस्तेमाल किया।
पार्टी ने 1971 में कांग्रेस(ओ) के साथ गठबंधन किया और मुंबई और कोंकण क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के लिये तीन उम्मीदवार उतारे लेकिन किसी को भी जीत नहीं मिली।
पार्टी ने 1977 में आपातकाल का समर्थन किया। जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलशिकर ने बताया कि 1977 में पार्टी ने कांग्रेस के मुरली देवड़ा का महापौर चुनाव में समर्थन किया। पार्टी का तब 'वसंतसेना' कहकर मजाक उड़ाया गया था। 'वसंतसेना' से आशय तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक की सेना, जो 1963 से 1974 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे।
उन्होंने लिखा है कि जनता पार्टी के साथ गठबंधन का प्रयास विफल होने के बाद 1978 में शिवसेना ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) के साथ गठबंधन किया। विधानसभा चुनाव में उसने 33 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से सभी को हार का सामना करना पड़ा।
वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने अपनी किताब 'जय महाराष्ट्र' में लिखा है कि 1970 में मुंबई महापौर का चुनाव जीतने के लिए शिवसेना ने मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन किया। इसके लिए शिवसेना सुप्रीमो ने मुस्लिम लीग के नेता जी एस बनातवाला के साथ मंच भी साझा किया।
शिवसेना ने 1968 में मधु दंडवते की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ गठजोड़ किया। शिवसेना और कांग्रेस के बीच संबंध 80 के दशक में इंदिरा गांधी के निधन के बाद खत्म हो गए। राजीव गांधी, सोनिया गांधी और इंदिरा गांधी के समय ये संबंध खराब ही हुए। इस दौरान शिवसेना ने उग्र हिंदुत्ववादी पार्टी की पहचान बनाई और भाजपा के करीब आई।
हालांकि, शिवसेना ने राष्ट्रपति चुनावों में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया। ठाकरे परिवार और पवार के बीच संबंध भी पांच दशक पुराने हैं। दोनों राजनीतिक रूप से तगड़े प्रतिद्वंदी रहे हैं लेकिन निजी जीवन में पक्के दोस्त भी रहे हैं।
शरद पवार ने इस बारे में अपनी आत्मकथा 'ऑन माई टर्म्स' में लिखा है कि किस तरह वह और उनकी पत्नी मतोश्री गपशप और रात्रिभोज के लिए जाते थे।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.