पीएम नरेंद्र मोदी की फाइल फोटो.
पीएम नरेंद्र मोदी की फाइल फोटो.REUTERS/Mike Hutchings

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को एससी-एसटी एक्ट के मूल प्रावधानों को बहाल करने के लिए संसद में विधेयक पेश करने पर सहमति व्यक्त की है. सामचार एजेन्सी एएनआई ने एक उच्च अधिकारी के हवाले से बताया कि सरकार यह विधेयक इसी सत्र में पेश करेगी. गौरतलब है कि बीते मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि एससी-एक्ट के तहत किसी को फौरन गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. अदालत का कहना था कि इसके लिए पहले जांच जरूरी होगी.

कई दलित संगठनों ने यह कहते हुए इस फैसले का विरोध किया था कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से एससी-एसटी एक्ट कमजोर हुआ है. उन्होंने सरकार से इसे इसके मूल स्वरूप में बहाल करने की मांग भी की थी. इसके बाद मोदी सरकार की सहयोगी और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने भी इस मांग का समर्थन किया था. बीती 27 अप्रैल को उसने कहा था कि यदि सरकार इस संबंध में विधेयक नहीं लाती तो वह नौ अगस्त को दलित संगठनों द्वारा बुलाए गए बंद का समर्थन करेगी.

इस कानून के व्यापक दुरुपयोग का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नई व्यवस्था में कहा था कि इस कानून के तहत एफआईआर के बाद भी गिरफ्तारी जरूरी नहीं है. एफआईआर दर्ज करने से पहले एक हफ्ते के अंदर आरोपों की जांच होगी. इसके बाद संबंधित जिले के एसएसपी या डीएसपी की अनुमति से ही एफआईआर दर्ज की जा सकेगी.

इस फैसले में यह भी कहा गया था कि अगर आरोपी सरकारी कर्मचारी है तो उसे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को पहले उसे नियुक्त करने वाली अथॉरिटी से इजाजत लेनी होगी.

इस मुद्दे पर सरकार चौतरफा दबाव में थी क्योंकि दलित संगठनों की नारजागी के कारण सरकार को इस वर्ग में अपनी छवि खराब होने का भय था. इसी बीच सरकार के तीन सहयोगी दलों लोजपा, आरपीआई और रालोसपा ने भी मोर्चा खोले, और बीजेपी सांसदों की ओर से मुखर विरोध जताने के बाद के बाद सरकार रक्षात्मक मुद्दे पर आ गई. दो दिन पूर्व इन तीनों दलों के 9 अगस्त को प्रदर्शन में शामिल होने की घोषणा के बाद विदेश से लौटते ही खुद पीएम ने मोर्चा संभाला और अंतत: मंगलवार को सहयोगी दलों की मांगों के अनुरूप एससी-एसटी एक्ट मामले में संशोधन बिल लाने पर सहमति हुई.