एक मुस्लिम व्यक्ति ने एक मरते हुए बच्चे की जान बचाने के लिये मानवता को धर्म से ऊपर रखते हुए रक्तदान करने का फैसला किया. बिहार के गोपालगंज जिले के रहने वाले जावेद आलम ने मंगलवार, 22 मई को थैलेसीमिया की जानलेवा बीमारी से जूझ रहे एक हिंदू बच्चे की जान बचाने को खून देने के क्रम में अपना रोजा तोड़ा और कुछ खाया.
आईएएनएस की खबर के मुताबिक, एक छोटे लड़के, राजेश कुुमार को कमजोरी और बेचैनी के बाद तुरंत रक्त संक्रामण (खून चढ़ाना) की तत्काल आवश्यकता थी. उसके सतर्क पिता उसे तुरंत सदर अस्पताल लेकर गए. अस्पताल पहुंचने पर ब्लड बैंक की ओर से सूचित किया गया उनके पास बच्चे को बचाने के लिये आवश्यक ब्लड ग्रुप का खून मौजूद नहीं है और उसकी व्यवस्था करने में कम से कम दो से तीन दिन का समय लगेगा.
हर गुजरते पल के साथ राजेश की हालत और अधिक बिगड़ती जा रही थी, तभी इस अस्पताल के सफाईकर्मी ने जिला रक्त दाता समूह (डीबीडीटी) के एक सदस्य जावेद आलम से मदद मांगी.
आईएएनएस ने जावेद आलम के हवाले से लिखाः
जब मेरे मित्र अनवर ने मुझसे एक गंभीर रूप से बीमार थैलेसीमिया के रोगी के लिये रक्तदान करने का अनुरोध किया तो मैंने उन्हें बड़ी विनम्रता से सूचित किया कि मैं रमजान के उपवास से चल रहा हूं. लेकिन उन्होंने मुझे अस्पताल पहुंचने और डाॅक्टर से मिलने के लिये मना लिया. पहले तो डाॅक्टरों ने भी मेरे प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि मेरे रोजे चल रहे थे. हालांकि मेरे उनकी सलाह लेने के बाद वे राजी हुए और मैंने फलों के रस और कुछ ठोस खाते हुए अपने रोजे को तोड़ दिया.
आलम के इस कृत्य ने मानवता से उठ रहे विश्वास को दोबारा बहाल किया और उन्होंने कहा कि उनका धर्म उन्हें पहले एक इंसान की मदद करने का पाठ पढ़ाता है. इसीलिये उन्होंने अपना रोजा तोड़ा और अपना खून देकर छोटे बच्चे की जान बचाई. उन्होंने समाचार एजेंसी को बताया, ''इस्लाम सिखाता है कि मानवता से बड़ा कुछ भी नहीं है.''