महिला अधिकार कार्यकर्ता गुलालाई इस्माइल न्यूयॉर्क में पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शनों का वह चेहरा बनकर सामने आई हैं और वे पाकिस्तान के अत्याचारों से पीड़ितों की उम्मीद का एक नया चेहरा बनकर उभरी हैं। शुक्रवार की सबुह वह न्यूयॉर्क की व्यस्त सड़कों पर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाती दिखीं। गुलालाई इस्माइल अगस्त महीने में किसी तरह अपनी जान बचाकर पाकिस्तान से भागी थीं और अमेरिका पहुंची है। उन्होंने अमेरिका से राजनीतिक शरण मांगी है।
न्यूयॉर्क में सिर्फ एक महीने पहले आईं गुलालाई पाकिस्तान में दशकों से मुसीबतों और अत्याचारों को झेल रहे अल्पसंख्यकों के बुरे हाल को पुरजोर तरीके से बयां कर रही हैं। शुक्रवार को जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान युद्धोन्मादी भाषण दे रहे थे उस वक्त यूएन मुख्यालय के बाहर गुलालाई मुहाजिरों, पश्तुनों, बलूचियों, सिंधियों और कई अन्य दूसरे अल्पसंख्यकों के साथ विरोध प्रदर्शन कर रही थीं। कई प्रदर्शनकारियों के हाथों में तख्तियां थीं और वे 'नो मोर ब्लैंक चेक्स फॉर पाकिस्तान' (पाकिस्तान के लिए अब कोई मुंहमांगी मदद नहीं) और 'पाकिस्तान आर्मी स्टॉप मेडलिंग इन पॉलिटिक्स' (पाकिस्तानी सेना सियासत में नाक घुसेड़ना रोके) का नारा लगा रहे थे।
न्यूयॉर्क में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ एक प्रदर्शन में गुलालाई ने कहा, 'पाकिस्तान में आतंकवाद के खात्मे के नाम पर बेगुनाह पश्तुनों को मारा जा रहा है। नजरबंदी केंद्रों में हजारों लोगों को कैद करके रखा गया है। पाकिस्तानी सेना के यातना गृहों में लोगों को यातनाएं दी जा रही हैं।'
देशद्रोह के आरोप लगने के बाद पाकिस्तान से भागने को मजबूर हुईं मानवाधिकार कार्यकर्ता गुलालाई ने कहा, 'हम पाकिस्तानी सेना द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन पर तुरंत रोक चाहते हैं। उनके यातना गृहों में कैद लोगों की रिहाई होनी चाहिए। लेकिन अगर हम इसके खिलाफ उठाते हैं तो हमें आतंकवाद का आरोपी ठहरा दिया जाएगा। पाकिस्तान की सेना खैबर पख्तूनख्वां प्रांत में तानाशाही चला रही है।' उन्होंने कहा कि वह अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।
गुलालाई ने एएनआई से कहा, 'मुझे अपने मां-बाप की चिंता है जो घर पर हैं। इसके अलावा मुझे उस भूमिगत नेटवर्क की भी चिंता है जिन्होंने मुझे पाकिस्तान से चुपके से बाहर निकलने में मदद की थी।'
गुलालाई ने कहा, 'पाकिस्तानी सरकार ने अपनी सभी मशीनरियों के मेरे खिलाफ लगा दिया है ताकि वे मेरी आवाज दबा सकें और मुझे यातना दे सकें। उन्होंने मेरे परिवार पर दबाव डाला ताकि वे मेरे खिलाफ हो जाएं। मुझे यातना देने के लिए उन्होंने मेरे मां-बाप पर फर्जी आरोप लगा दिए हैं।'
कुछ दिन पहले मशाल रेडियो के अफगानी पत्रकार बशीर अहमद गवाक को दिए इंटरव्यू में गुलालाई ने कहा था कि वह पाकिस्तान में करीब 6 महीने तक छिपकर रही थीं और अमेरिका आने से पहले अपनी दोस्तों की मदद से किसी तरह श्रीलंका पहुंची थीं।
गुलालाई ने पाकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा बलात्कार की घटनाओं के खिलाफ मोर्चा खोला था। महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ अभियान छेड़ने की वजह से उनके ऊपर देशद्रोह का आरोप लगा दिया गया।
32 साल की यह मानवाधिकार कार्यकर्ता पिछले महीने किसी तरह से पाकिस्तान से भागने में कामयाब हुईं। फिलहाल वह न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन में अपनी बहन के साथ रही रही हैं। उन्होंने अमेरिका में राजनीतिक शरण के लिए भी आवेदन दिया है।
उन्हें अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता सता रही है। मशाल रेडियो को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान को लगता है कि अमेरिका का विदेश विभाग मुझे वापस भेज देगा। लेकिन मैं अमेरिका में अपना संघर्ष जारी रखूंगी।'
पाकिस्तान जैसे देश में जहां सेना की आलोचना गुनाह है, वहां इस्माइल ने महिला अधिकारों के लिए पूरी शिद्दत और मजबूती से अभियान चलाया। उन्होंने पाकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा महिलाओं के बलात्कार, लोगों को गायब करने और तमाम दूसरे तरह के अत्याचारों का प्रमुखता से विरोध किया।
इस साल मई में गुलालाई ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ आरोप लगाते हुए पोस्ट लिखा था, जिसके बाद वह अपने ही देश में शरणार्थी जैसी हो गईं। फेसबुक और ट्विटर पर लिखे अपने पोस्ट में उन्होंने सैनिकों पर पाकिस्तानी महिलाओं का बलात्कार करने और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। इस महिला अधिकार कार्यकर्ता ने पश्तुन आंदोलन में भी हिस्सा लिया।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी एएनआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।