बैंकों में धोखाधड़ी के सूचित मामले चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही के अंत तक 1.13 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गए। इसमें बैंकों को कुछ मामलों का पता देरी से लगा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार 1 लाख रुपये और उससे ऊपर के 4,412 धोखाधड़ी मामले में कुल 1.13 लाख करोड़ रुपये राशि जुड़ी है।
यह रकम वित्त वर्ष 2014-15 में बैंकों में हुए 19,455 करोड़ रुपये के फ्रॉड के मुकाबले करीब चार गुना है। इसमें भी 90.2 फीसद हिस्सा सरकारी बैंकों का है।
वित्त वर्ष 2018-19 में बैंकों ने कुल 71,543 करोड़ रुपये के 6,801 धोखाधड़ी के मामलों की सूचना दी थी। आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, 'वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 की पहली छमाही में धोखाधड़ी के बारे में दी गई जानकारी के विश्लेषण से पता चलता है कि धोखाधड़ी की तारीख और उसके पता चलने में काफी समय लगा।'
वित्त वर्ष 2018-19 में जितनी राशि की धोखाधड़ी की सूचना दी गई, उसमें करीब 90.6 प्रतिशत राशि के मामले वित्त वर्ष 2000-01 और 2017-18 के दौरान हुए। इसी प्रकार, 2019-20 की पहली छमाही में धोखाधड़ी की जो सूचनाएं दी गई हैं, उसमें 97.3 प्रतिशत पुराने हैं।
वित्त वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में बैंकों ने बड़ी राशि की धोखाधड़ी (50 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य वाले) के 398 मामलों की सूचना दी। इसमें कुल 1.05 लाख करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई। बैंकों ने 1,000 करोड़ रुपये से ऊपर के 21 मामलों की सूचना दी है। इसमें कुल 44,951 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार कर्ज से जुड़ी धोखाधड़ी सर्वाधिक रहीं और कुल मामलों में मूल्य के हिसाब से इनकी हिस्सेदारी 90 प्रतिशत रही। वहीं कुल धोखाधड़ी संख्या के हिसाब से 97 प्रतिशत रही। रिजर्व बैंक अपने केंद्रीय कोष रजिस्ट्री में एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों) और शहरी सहकारी बैंकों की धोखाधड़ी के बारे में सूचना देने के मामले को एकीकृत कर रहा है। इस प्रकार की व्यवस्था से समय पर धोखाधड़ी का पता चल सकेगा। इसके अलावा संचालन व्यवस्था में सुधार पर भी जोर है।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.