भारत में दो वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंध बनाना अब अपराध नहीं है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 को खत्म कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को मनमाना करार देते हुए व्यक्तिगत चुनाव को सम्मान देने की बात कही है.
In a landmark judgement, after months of deliberations, the Supreme Court struck down the Section 377 of the IPC which criminalised homosexuality
— ANI Digital (@ani_digital) September 6, 2018
Read @ANI Story | https://t.co/PXljUL6fLY pic.twitter.com/RFxciI1dGl
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं सहित विभिन्न पक्षों को सुनने के बाद 17 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
इस संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा भी शामिल हैं. पहले याचिकाओं पर अपना जवाब देने के लिए कुछ और समय का अनुरोध करने वाली केन्द्र सरकार ने बाद में इस दंडात्मक प्रावधान की वैधता का मुद्दा अदालत के विवेक पर छोड़ दिया था.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में नवतेज सिंह जौहर, सुनील मेहरा, अमन नाथ, रितू डालमिया और आयशा कपूर आदि ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को समलैंगिकों के संबंध बनाने पर धारा 377 के कार्रवाई के अपने फैसले पर विचार करने की मांग की है. उनका कहना है कि इसकी वजह से वो डर में जी रहे हैं और ये उनके अधिकारों का हनन करता है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज फाउंडेशन मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध माना था. 2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 को अंसवैधानिक करार दिया था. इस मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी और पांच जजों के सामने क्यूरेटिव बेंच में मामला लंबित था.
#WATCH People in Mumbai celebrate after Supreme Court decriminalises #Section377 and legalises homosexuality pic.twitter.com/ztI67QwfsT
— ANI (@ANI) September 6, 2018
जानिए क्या है आईपीसी की धारा 377
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समलैंगिकता को अपराध बताया गया है. आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ सेक्स करता है तो इस अपराध के लिए उसे 10 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा. उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा। यह अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है और यह गैर जमानती है.
भारत में कैसे संज्ञान में आई धारा-377
सबसे पहले साल 1290 में इंग्लैंड के फ्लेटा में अप्राकृतिक संबंध बनाने का मामला सामने आया, जिसके बाद पहली बार कानून बनाकर इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया. बाद में ब्रिटेन और इंग्लैंड में 1533 में बगरी (अप्राकृतिक संबंध) एक्ट बनाया गया और इसके तहत फांसी का प्रावधान किया गया. 1563 में क्वीन एलिजाबेथ-1 ने इसे फिर से लागू कराया. 1817 में बगरी एक्ट से ओरल सेक्स को हटा दिया गया और 1861 में डेथ पेनाल्टी का प्रावधान भी हटा दिया गया. 1861 में ही लॉर्ड मेकाले ने इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) ड्राफ्ट किया और उसी के तहत धारा-377 का प्रावधान किया गया.
क्या है LGBTQ समुदाय?
LGBTQ समुदाय के तहत लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंटर और क्वीयर आते हैं. एक अर्से से इस समुदाय की मांग है कि उन्हें उनका हक दिया जाए और धारा 377 को अवैध ठहराया जाए. निजता का अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस समुदाय ने अपनी मांगों को फिर से तेज कर दिया था.