दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी को दिल्ली उच्च न्यायालय की तरफ से झटका लगा है जिसने ऑटो रिक्शा किराए को बढ़ाने के उसके पिछले साल जून के फैसले के अमल पर रोक लगा दी है।
अदालत एनजीओ 'एडिंग हैंड्स फाउंडेशन' की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ऑटो किराए में सुधार संबंधी दिल्ली सरकार की अधिसूचना को निरस्त करने का अनुरोध किया गया था। याचिका में कहा गया कि अधिसूचना सक्षम अधिकारी यानि उपराज्यपाल की अनुमति के बिना जारी की गई और यह लोगों को बुरी तरह प्रभावित करेगी।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा, "हम अगली सुनवाई यानि 21 मई तक तक दिल्ली सरकार की 12 जून की अधिसूचना के अमल पर रोक लगाते हैं।"
पीठ ने कहा कि पहली नजर में उसकी राय है कि याचिकाकर्ता की बात तार्किक है और दिल्ली सरकार का परिवहन विभाग अधिसूचना नहीं जारी कर सकता क्योंकि सक्षम अधिकारी उपराज्यपाल थे।
पीठ ने कहा, "हमारा आप दोनों (दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल) के बीच के विवाद से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन अगर आप कोई चीज नहीं कर सकते मतलब आप नहीं कर सकते।"
एनजीओ का पक्ष रख रहे वकील डी पी सिंह ने अदालत को बताया कि यह अधिसूचना उपराज्यपाल की अनुमति के बिना जारी की गई और कानूनी रूप से गलत होने के कारण इसे निरस्त किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार के स्थायी वकील जसमीत सिंह ने भी याचिका को समर्थन दिया और कहा कि अधिसूचना को दिल्ली सरकार नहीं जारी कर सकती और इसे निरस्त किया जाना चाहिए।
हालांकि दिल्ली सरकार के वकील शादान फरासत ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया कि ऑटो किराए परिवहन विभाग के तहत आते हैं और इसके पास दरों में बदलाव करने की अधिसूचना जारी करने की शक्ति है।
पिछले साल आठ जुलाई को उच्च न्यायालय ने ऑटो किराया बढ़ाने के आप सरकार के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। याचिका में अधिसूचना को यह कहते हुए चुनौती दी गई थी कि अधिकारियों ने दिल्ली में मनमाने तरीके से ऑटो किराये में बढ़ोतरी की, जिससे निवासियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, जो पहले ही ऑटो चालकों के बुरे व्यवहार और बहुत ज्यादा किराया वसूलने से परेशान हैं।
अधिवक्ता अनुराग टंडन और अश्विनी मनोहरन के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया गया कि अधिसूचना कानूनी अधिकरण की अनुमति के बिना जारी की गई और यह संवैधानिक प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है।
इसमें कहा गया कि ऑटो चालक मीटर से चलने के लिए मुश्किल से राजी होते हैं और बहुत अधिक कीमत वसूलते हैं और किराये में बढ़ोतरी उन्हें सामान्य से ज्यादा कीमत वसूलने का अधिकार देगी।
याचिका में दलील दी गई, "ऑटो किराए में बढ़ोतरी की वजह से कुछ जरूरी सामान की कीमत में भी वृद्धि हो सकती है क्योंकि शहर में सामान एक-जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए ऑटो का नियमित तौर पर इस्तेमाल होता है।"
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.