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सांकेतिक तस्वीरReuters

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए मंगलवार को क्रमिक कार्रवाई कार्ययोजना (जीआरएपी) प्रभाव में आ जाएगी और स्थिति के हिसाब से निजी वाहनों को निरुत्साहित करने, डीजल जेनरेटरों के इस्तेमाल पर रोक, ईंट के भट्टे और स्टोन क्रशर बंद करने जैसे कठोर कदम तत्परता से उठाये जाएंगे.

दिल्ली की वायु गुणवत्ता सर्दियों से पहले बिगड़ने लगी है. रविवार को यह वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 अंक के पार जाने के साथ 'बहुत खराब' हो गयी थी. हालांकि सोमवार को उसमें 50 अंक का सुधार आया लेकिन स्थिति पिछले 24 घंटे के अंदर ''खराब'' और ''बहुत खराब'' के बीच बनी हुई है.

केंद्र संचालित वायु गुणवत्ता तथा मौसम पूर्वानुमान एवं अनुसंधान प्रणाली (सफर) का कहना है कि दिल्ली में 15 अक्टूबर को पीएम 2.5 सांद्रता में बायोमास जलाये जाने का नौ फीसद योगदान रहने की संभावना है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जीआरएपी तैयार की थी और उसे 2017 में पहली बार लागू किया गया था. उसमें वायु प्रदूषण कम करने के लिए स्थिति के हिसाब से कई उपायों का उल्लेख है.

इस साल जीआरएपी के तहत चार नवंबर से दिल्ली सरकार की वाहनों की सम-विषम योजना शुरू होगी तथा एनसीआर के गुड़गांव, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद, सोनीपत, पानीपत, बहादुरगढ़ शहरों में डीजल जेनरेटों पर पाबंदी लगेगी.

वहीं, दिल्ली में वायु की गुणवत्त 'बहुत खराब' की श्रेणी में आने के बीच उच्चतम न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उप्र में पराली जलाने पर अंकुश लगाने के लिये उच्च कार्यबल की सिफारिशों के बारे में सोमवार को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.

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न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ के समक्ष राजधानी में वायु गुणवत्ता का मुद्दा उस समय उठा जब प्रदूषण के मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहीं अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से इस बारे में स्थिति रिपोर्ट मांगी जानी चाहिए.

उन्होंने कहा कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उप्र में पराली जलाने पर रोकथाम के लिये उच्चस्तरीय कार्य बल की उप समिति की रिपोर्ट स्वीकार किये जाने संबंधी केन्द्र के कथन के बाद शीर्ष अदालत ने पिछले साल 29 जनवरी को इस मामले में आदेश पारित किया था.

अपराजिता सिंह ने कहा कि शीर्ष अदालत के पिछले साल के आदेश के बाद काफी समय बीत चुका है और अब पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को इन निर्देशों पर अमल के बारे में स्थिति रिपोर्ट पेश करनी चाहिए.

पीठ ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को इस संबंध में दो सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया. पराली जलाने के मामले में उप समिति की रिपोर्ट पर अमल के लिये पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ही नोडल मंत्रालय है.

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.