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पाकिस्तान की तमाम राजनयिक कोशिशों बेकार गईं और आतंकवादियों की आर्थिक मदद को रोक पाने में नाकाम रहने के चलते उसे एक बार फिर एफएटीएफ (फायनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) की निगरानी सूची यानी 'ग्रे लिस्ट' में डाल दिया गया है. पाकिस्तान को इससे पूर्व भी 2012 से 2015 के बीच इस सूची में रखा जा चूका है.

गौरतलब है कि एफएटीएफ एक वैश्विक संगठन है जो दुनिया में आतंक की फंडिंग पर नज़र रखते हुए उसे रोकने की कोशिश करता है और काले धन को सफेद करने की कोशिशों पर लगाम लगाता है. एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में उन देशों को रखा जाता है कि जो आतंक की फंडिंग और काले धन को सफेद करने की क़वायद पर लगाम लगाने में नाकाम रहते हैं.

हालांकि, ब्लैक लिस्ट से बचने के लिए पाकिस्तान ने पिछले 15 महीनों के अंदर 26 सूत्रीय एक्शन प्लान भी तैयार किया था लेकिन बावजूद उसके खिलाफ ये कदम उठाया गया.

इस एक्शन प्लान में स्पष्ट किया गया कि आतंकियों को दी जाने वाली आर्थिक मदद को किस प्रकार रोका जाएगा और इसके लिए क्या कदम उठाए जाएंगे. इसके अलावा इसमें मुंबई के 26/11 आतंकी हमले के मास्टर माइंड हाफिज सईद को दी जा रही आर्थिक मदद पर भी रोक की बात कही गई है.

गौरतलब है कि एफएटीएफ में 37 देश सदस्य हैं और पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डालने का प्रस्ताव अमरीका ने इसी वर्ष फरवरी में दिया था. तब चीन, तुर्की और सऊदी अरब ने इस कदम का विरोध किया था. नियम के मुताबिक कम से कम तीन सदस्य अगर किसी प्रस्ताव का विरोध कर दें तो वह अटक जाता है जिसके चलते उस समय तो अमरीका का प्रस्ताव भी अटक गया. लेकिन इसी बीच अमरीका ने सऊदी अरब को संगठन की पूर्ण सदस्यता देने की पेशकश कर अपने पक्ष में कर लिया और दूसरी बार प्रस्ताव पेश कर दिया. इस बार चीन भी यह कहकर पीछे हट गया कि वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहता जिसका असफल होना तय है. इस तरह पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया और उसका एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में डाला जाना पूरी तरह से तय हो गया.