अर्थव्यवस्था के लगभग हर मोर्चे पर कड़ी चुनौतियों का सामना कर रही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के सामने अब एक नयी परेशानी आती दिखाई दे रही है। केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) और पूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना (ईसीएचएस) द्वारा हजारों करोड़ रुपये का भुगतान नहीं करने के चलते देश के शीर्ष निजी अस्पताल पतन के कगार पर हैं।
इसके अलावा, द हिंदू द्वारा रिपोर्ट के कुतबिक, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (इंडिया) ने इन दो योजनाओं के तहत इलाज करवाने वाले मरीजों का ईलाज बंद करने की चेतावनी भी दी है।
निजी अस्पतालों के सामने नकदी का संकट
द प्रिंट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा मौजूदा समय तक भुगतान की जाने वाली राशि लगभग 1,700 करोड़ रुपये है। अस्पतालों का कहना है कि सरकार द्वारा भुगतान नहीं किए जाने के चलते उनका रोजमर्रा का काम प्रभावित हो रहा है। वर्तमान में, 37 लाख से अधिक लोग सरकार की इन दो योजनाओं के तहत कैशलेस उपचार प्राप्त करने के हकदार हैं। यह दोनों योजनाएं स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधान लाने के लिए हैं।
आम तौर पर, इन योजनाओं के माध्यम से रोगियों का ईलाज निजी अस्पतालों में किया जाता है और फिर बिल की प्रतिपूर्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। लेकिन अगर निजी अस्पताल कैशलेस इलाज की सुविधा प्रदान करने फैसले से पीछे हटते हैं, तो मरीजों को अस्पतालों में स्वयं भुगतान करने के बाद केंद्र सरकार से इसका पुनर्भुगतान लेना होगा।
अगला कदम हो सकता है नौकरियों में कटौती
सरकार की तरफ से अस्पतालों को बकाया राशि न मिलने के चलते आईएमए ने तर्क दिया है कि अगर ऐसी स्थिति ज्यादा दिन जारी रही है, तो उनके पास अपने कर्मचारियों को नौकरी से हटाने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा। इसके चलते स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में काम करने वाले लाखों कर्मचारी अपनी नौकरी से हाथ धो सकते हैं। एसोसिएशन ने एक बयान में कहा, "ऐसे बकाया [रकम] पर कोई ब्याज नहीं दिया जाता है। सरकार द्वारा वैध बकाया का भुगतान न होने के चलते अस्पतालों का रोजमर्रा का संचालन प्रभावित हो रहा है। अस्पताल अपने कर्मचारियों को वेतन का भुगतान करने में असमर्थ हैं। । कई अस्पतालों के कुछ वार्डों / बिस्तरों का संचालन बंद करके परिचालन में कटौती करनी शुरू कर दी है।"
अगर अपनी आबादी को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने की बात की जाए तो भारत भारत की गिनती सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक के रूप में होती है। वर्ष 1990 से 2016 के बीच की अवधि दौरान दौरान देश सिर्फ 8 रैंक का सुधार कर 153वीं पायदान से 145 तक में सफल हुआ है जो इसकी स्वास्थ्य सेवा की खेदजनक स्थिति को दर्शाता है। इसके अलावा, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा न्यूनतम आवश्यकता मानदंड के अनुसार, भारत में वर्तमान समय में जरूरत से आधे से भी कम अस्पताल के बिस्तर हैं।