बीते नौ जनवरी को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के शीर्ष अर्थशास्त्रियों के साथ देश की अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के लिए सुझाव ले रहे थे, तब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय में पार्टी पदाधिकारियों के साथ मीटिंग कर रहीं थीं। ठीक तीन दिन पहले जब प्रधानमंत्री देश के दिग्गज उद्योगपतियों रतन टाटा, मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, आनंद महिंद्रा आदि के साथ बैठक कर 2020-21 के लिए प्रस्तावित बजट पर मंथन कर रहे थे तब भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण नजर नहीं आईं।
एक फरवरी को आने वाले बजट से पहले चल रहीं वित्त मामलों से जुड़ी अहम बैठकों से ही वित्त मंत्री के मौजूद न रहने को लेकर उस वक्त तमाम सवाल उठे थे। हर कोई इस सवाल का जवाब जानना चाहता है। वजह कि वित्त मंत्री रहते अरुण जेटली प्रधानमंत्री मोदी के साथ ऐसी बैठकों में भाग लेते थे।
मिसाल के तौर पर देखें तो सरकार के पहले कार्यकाल के अंतिम बजट से पहले 10 जनवरी 2019 को अर्थशास्त्रियों के साथ हुई बैठक में वित्त मंत्री जेटली भी पीएम मोदी के साथ मौजूद रहे थे। आईएएनएस ने जब संघ, भाजपा और सरकार से जुड़े सूत्रों को खंगाला तो अब जाकर इन बैठकों से वित्त मंत्री निर्मला की गैरमौजूदगी का राज खुलने लगा है।
संगठन और सरकार से जुड़े सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि छह और नौ जनवरी की बैठकों से वित्त मंत्री निर्मला को दूर रखने के पीछे पीएम मोदी की खास रणनीति रही। दरअसल, संकट में फंसी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को लगा कि उद्योगपतियों और अर्थशास्त्रियों से खुलकर बातें कर कड़वी बातें भी सुनीं जाएं।
प्रधानमंत्री मोदी इस बैठक में वित्त मंत्रालय के कामकाज और प्रदर्शन का फीडबैक लेना चाहते थे। उन्हें महसूस हुआ कि वित्त मंत्री की मौजूदगी में शायद उद्योगपति और अर्थशास्त्री खुलकर अपनी पीड़ा जाहिर न कर पाएं। क्योंकि वित्त मंत्री के सामने ही वित्त मंत्रालय की नीतियों पर सवाल उठाने में वे असहज हो सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि यही वजह है कि पीएमओ ने इन दो बैठकों में निर्मला सीतारमण को आमंत्रित नहीं किया।
आरएसएस पर 40 से अधिक किताबें लिख चुके और नागपुर के संघ विचारक दिलीप देवधर भी कुछ ऐसी ही बात कहते हैं। उन्होंने 'संघ परिवार' में उठी चर्चाओं के हवाले से आईएएनएस से कहा, "पीएम मोदी ने बैठक में उद्योगपतियों और अर्थशास्त्रियों से साफ कह दिया था कि वे यहां तारीफ नहीं सुनेंगे बल्कि उन्हें सुझाव चाहिए। सरकार के लिए कड़वी बातें भी वे सुनेंगे। उन्हें वित्त मंत्रालय की नीतियों का भी फीडबैक चाहिए। वित्तमंत्री को इस बैठक से दूर रखने के पीछे वजह रही कि लोग वित्त मंत्रालय को लेकर खुलकर शिकवा-शिकायत कर सकें। इस बैठक में 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी वाले लक्ष्य के लिए रोडमैप बनाने पर चर्चा हुई थी।"
आर्थिक मामलों की बैठकों से निर्मला सीतारमण के अनुपस्थित होने पर उन्हें विपक्ष की आलोचनाएं झेलनी पड़ी थी। कांग्रेस के शशि थरूर, पृथ्वीराज चव्हाण आदि नेताओं के हमलों पर बीते 19 जनवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सफाई भी दी थी। निर्मला ने कहा था कि प्रधानमंत्री से मंजूरी लेकर ही उन्होंने नौ जनवरी को मीटिंग के दिन दूसरे कार्यक्रमों में हिस्सा लिया था।
उन्होंने चेन्नई के दौरे के दौरान दिए अपने बयान में कहा था, "प्रधानमंत्री से मंजूरी लेकर मैंने दूसरे कार्यक्रम में हिस्सा लिया। लेकिन तथ्यों की पूरी जानकारी के बगैर कुछ लोग टिप्पणियां कर रहे हैं। मुझे अपने काम की जानकारी है और केंद्रीय बजट पर काम जारी है।"
सरकारी सूत्रों का कहना है कि हर साल बजट से पहले प्रधानमंत्री अर्थशास्त्रियों और देश के प्रतिष्ठित उद्योगपतियों के साथ इस तरह की बैठकें कर उनसे सुझाव लेते हैं। ताकि अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए उनके अहम सुझावों को बजट में शामिल किया जा सके।
प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरी बार सत्ता में आने के बाद फिलहाल बजट से पहले होने वाली इन बैठकों में अपने साथ भाग लेने से निर्मला को दूर रखा है। मिसाल के तौर पर पिछले साल पांच जुलाई को बजट पेश होने से पहले जून में बुलाई बैठक में भी निर्मला सीतारमण पीएम मोदी के साथ मौजूद नहीं थीं। जबकि 2017 और 2018 में प्रधानमंत्री की ओर से बुलाई ऐसी बैठकों में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली जरूर शामिल हुए थे।
हालांकि वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अलग से अपने स्तर से अर्थशास्त्रियों और उद्योगपतियों से चर्चा में शामिल रहीं हैं। पीएम मोदी की अर्थशास्त्रियों के साथ बैठकों में वित्तमंत्री की मौजूदगी की कोई अनिवार्यता नहीं है।
बता दें कि इस साल नौ जनवरी को अर्थशास्त्रियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के साथ गृहमंत्री अमित शाह, केंद्रीय सड़क एवं परिवहन तथा एमएसएमई मंत्री नितिन गडकरी, रेल मंत्री पीयूष गोयल और कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने भी हिस्सा लिया था। इस बैठक में नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार और सीईओ अमिताभ कांत भी मौजूद थे।
इससे पहले छह जनवरी को उद्योगपतियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने उद्योगों के तमाम सेक्टर के हालात का उनसे फीडबैक लेते हुए आर्थिक विकास दर को बढ़ाने के संबंध में सुझाव लिए थे।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी आईएएनएस द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.