कोरोना वायरस की भीषण चुनौती के बीच केंद्र सरकार ने लॉकडाउन समाप्त होने के बाद की संभावित स्थिति पर विचार करना शुरू कर दिया है. इसके अंतर्गत कोरोना वायरस के असर को कम करने के लिये सरकार एक और राहत पैकेज का बूस्टर देने पर विचार कर रही है ताकि अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार की दिशा में आगे बढ़ा जा सके. हालांकि इस दिशा में अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने रविवार को यह जानकारी दी.
एक अधिकारी के अनुसार, फिलहाल उन मुद्दों पर ध्यान दिया जा रहा है जो 15 अप्रैल को लॉकडाउन का समाप्त किए जाने के बाद सामने आ सकते हैं. एक पैकेज पर विचार किया गया है लेकिन इस बारे में अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है. इस योजना के पीछे विचार यह है कि खपत को फिर से तेज किया जाए इसलिये इस दिशा में कुछ उपाय करने की जरूरत होगी.
गौरतलब है कि भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के शिकार लोगों की संख्या अब तक 3500 के पार पहुंच चुकी है और इस खतरनाक वायरसस की चपेट में आकर अब तक 80 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
यदि सरकार की तरफ से किसी पैकेज की घोषणा होती है तो कोरोना वायरस को असर को रोकने की दिशा में यह उसकी तीसरी अहम पहल होगी. पीएम नरेन्द्र मोदी के 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा करने से कुछ घंटे पहले ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने करदाताओं और व्यावसायियों के लिये कुछ राहत उपायों की घोषणा की थी. इसके दो दिन बाद ही गरीबों और वंचितों को सहारा देने के लिये वित्त मंत्री ने 1.7 लाख करोड़ रुपये के प्रधानमंत्री गरीब कल्याण राहत पैकेज की घोषणा की.
अधिकारियों ने रविवार को कहा कि वह कुछ कल्याणकारी और अन्य सरकारी योजनाओं को लॉकडाउन बाद की स्थिति के मुताबिक बेहतर बनाने की संभावनाओं पर गौर कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि कई तरह के विकल्प सामने हैं. विभिन्न मंत्रालयों द्वारा दी जाने वाली छात्रवृति और अधिछात्रवृति, रबी मौसम की फसलों की कटाई जैसे कई मुद्दे उसके समक्ष हैं और सरकार उन्हें एक-एक कर देख रही है.
प्रधानमंत्री ने विभिन्न पहलों पर विचार के लिये 10 उच्चाधिकार अधिकारप्राप्त समूहों का गठन किया था. इनमें से एक समूह को आर्थिक उपायों के बारे में सुझाव देने का काम दिया गया था. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में गठित एक अनौपचारिक मंत्री समूह भी लॉकडाउन के विभिन्न पहलुओं पर विचार कर रहा है.
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.