ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी के अमेरिकी हवाई हमले में मारे जाने के बाद ईरान द्वारा इराक स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डों को निशाना बनाकर किये गए जवाबी मिसाइल हमले के बाद दोनों देशों के बीच बढ़े तनाव के चलते भारतीय नौसेना ने एहतियातन खाड़ी में अपने युद्धपोत तैनात कर दिए हैं। ऐसा समुद्री रास्ते से हो रहे व्यापार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।
अगर फारस की खाड़ी से भारतीय तेलवाहक या दूसरे मालवाहक जहाजों को निकालने की जरूरत पड़ी तो भारतीय युद्धपोत उन्हें सुरक्षित एस्कॉर्ट कर वहां से निकालने का काम करेंगे। नौसेना का कहना है कि उन्होंने मौजूदा स्थिति पर नजर बना रखी है।
बता दें ईरान के सरकारी टीवी चैनल ने बुधवार को कहा कि इराक में अमेरिका के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर दागी गईं 15 मिसाइलों के हमले में 80 'अमेरिकी आतंकी' मारे गए, जबकि अमेरिका ने इन दावों का खंडन किया है। अमेरिका रक्षा सूत्रों के मुताबिक, सैनिकों को पेंटागन ने संभावित हमले को लेकर पहले ही अलर्ट कर दिया था और उनके पास बंकर में छुपने के लिए पर्याप्त समय था।
उधर, भारतीय नौसेना ने कहा कि युद्धपोत और विमान इलाके में तैनात कर दिए गए हैं। इसका मकसद भारतीय व्यापारियों को सुरक्षा का भरोसा देना है। हम मौजूदा हालात पर नजर रखे हैं और किसी भी तरह के संकट का जवाब देने को तैयार हैं।
आपको बता दें कि इन दिनों भारत के 8-10 मर्चेंट वैसेल यानि जहाज मौजूद हैं। अगर अमेरिका और ईरान के बीच युद्ध हुआ तो इन सभी जहाजों को सुरक्षित वहां से निकालने की जिम्मेदारी भारतीय नौसेना की ही होगी। जैसाकि पिछले साल जून के महीने में भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन संकल्प के दौरान किया था।
जून 2019 में जब ओमान की खाड़ी में दो ऑयल-टैंकर्स पर हमला हुआ था और स्थिति बिगड़ने की आशंका थी, तब भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन संकल्प के जरिए भारत के कॉमर्शियल-जहाजों को सुरक्षित वहां से बाहर निकाला था। इसके लिए भारतीय नौसेना ने अपने युद्धपोतों को फारस की खाड़ी में तैनात किया था ताकि किसी भी तरह से समुद्री-रास्ते पर कोई रूकावट ना आए।
नौसेना ने कहा, 'भारतीय नौसेना खाड़ी में स्थिति पर नजर रखे हुए है और हमारे समुद्री मार्ग से होने वाले व्यापार और इंडियन फ्लैग मर्चेंट वेसल्स की सुरक्षा सुनिश्चित के लिए इलाके में मौजूद हैं। भारतीय नौसेना देश के समुद्री हितों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।'
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.