उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि सरकार से बड़ी मात्रा में रकम पाने वाले गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत लोगों को सूचना मुहैया करने के लिए बाध्य हैं। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि सरकार से प्रत्यक्ष या रियायती दर पर जमीन के रूप में अप्रत्यक्ष रूप से पर्याप्त सहायता पाने वाले स्कूल, कॉलेज और अस्पताल जैसे संस्थान भी आरटीआई कानून के तहत नागरिकों को सूचना उपलब्ध कराने के लिए बाध्य हैं।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने कहा, ''यदि एनजीओ या अन्य संस्थाओं को सरकार से बड़ी वित्तीय मदद प्राप्त होती है, तो हम इसके लिए कोई कारण नहीं पाते हैं कि क्यों कोई नागरिक यह जानने के लिए सूचना नहीं मांग सकता कि किसी एनजीओ या अन्य संस्था/संस्थान को दिया गया उसके पैसे का आवश्यक उद्देश्य में उपयोग हुआ या नहीं।''
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि आरटीआई कानून सार्वजनिक (सरकारी) लेन-देन में पारदर्शिता लाने और सार्वजनिक जीवन में शुचिता लाने के लिए लाया गया था।
पीठ ने कहा, ''हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि उपयुक्त सरकार द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी मात्रा में कोष प्राप्त करने वाला एनजीओ एक सार्वजनिक प्राधिकार होगा, जो इस कानून के प्रावधानों के अधीन होगा।''
न्यायालय ने एक मुद्दे का निपटारा करने के दौरान यह कहा। दरअसल, न्यायालय के समक्ष यह मुद्दा आया था कि क्या सरकार से भारी रकम प्राप्त करने वाले एनजीओ सूचना का अधिकार कानून,2005 के तहत सार्वजनिक प्राधिकार के दायरे में आते हैं।
गौरतलब है कि इन शैक्षणिक संस्थानों को संचालित करने वाले कई स्कूल एवं कॉलेजों और एसोसिएशनों ने शीर्ष न्यायालय का रुख कर दावा किया था कि एनजीओ आरटीआई एक्ट के दायरे में नहीं आते हैं।
डीएवी कॉलेज ट्रस्ट एंड मैनेजमेंट सोसाइटी, नयी दिल्ली ने यह मामला दायर किया था। पीठ ने कहा कि यह सोसाइटी विभिन्न स्कूलों/कॉलेजों को संचालित करती है जिन्हें सरकार से मोटी रकम प्राप्त होती है और इसलिए ये आरटीआई कानून के तहत सार्वजनिक प्राधिकार है।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।