देश की आर्थिक वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष में सुधरकर 6 से 6.5 प्रतिशत रह सकती है। चालू वित्त वर्ष में इसके 5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा है कि मजबूत जनादेश के साथ सत्ता में आयी सरकार के पास सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाने की क्षमता है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश 2019-20 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विनिर्माण गतिविधियों और वैश्विक व्यापार के नरमी से बहार आने के संभावित संकेत हैं। इसका अगले वित्त वर्ष में वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन द्वारा तैयार किया गया सर्वेक्षण, पिछले 12 महीनों में अर्थव्यवस्था के विकास की समीक्षा करने के साथ अगले वित्तीय वर्ष के लिए एक दृष्टिकोण भी पेश करता है।
इसमें कहा गया है कि सरकार का सस्ता मकान, मेक इन इंडिया, कंपनी कर में कटौती और कारोबार सुगमता में सुधार जैसे कदमों के अलावा अन्य कारकों से आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने में मदद मिलेगी। हालांकि समीक्षा में आगाह करते हुए कहा गया है कि वैश्विक व्यापार में निरंतर समस्या, अमेरिका-ईरान के बीच भू-राजनीतिक तनाव और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कमजोर आर्थिक पुनरूद्धार जैसे कुछ जोखिम हैं जिससे वृद्धि नीचे जा सकती है।
समीक्षा में कहा गया है, ''शुद्ध रूप से ऐसा लगता है कि मजबूत जानदेश वाली सरकार के पास सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाने की क्षमता को देखते हुए वृद्धि के ऊपर जाने की संभावना है।''
इसमें कहा गया है, ''वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि में तेजी आनी चाहिए। इसका एक कारण 2019-20 में 5 प्रतिशत वृद्धि का तुलनात्मक आधार कमजोर होना है।''
समीक्षा के अनुसार जोखिमों को देखते हुए देश की जीडीपी वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष में 6 से 6.5 प्रतिशत रह सकती है। चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि के अनुमान के बारे में कहा गया है कि 5 प्रतिशत वृद्धि दूसरी छमाही में तेजी आने का संकेत देती है। समीक्षा के अनुसार जीडीपी वृद्धि में कमी को वृद्धि के धीमे चक्र की रूपरेखा से समझा जा सकता है।
वित्तीय क्षेत्र का इस पर प्रभाव पड़ा है। इसमें कहा गया है कि 2019-20 की दूसरी छमाही में तेजी में 10 क्षेत्रों का प्रमुख योगदान रहा है। ये प्रमुख क्षेत्र इस साल पहली बार निफ्टी इंडिया कंजप्शन इंडेक्स में तेजी, शेयर बाजार में मजबूती, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह में बेहतर होना, वस्तुओं की मांग बढ़ना, ग्रामीण क्षेत्रों में खपत का अनुकूल माहौल, औद्योगिक गतिविधियों में फिर से तेजी आना, विनिर्माण में निरंतर सुधार होना, वाणिज्यिक या वस्तुओं का निर्यात बढ़ना, विदेशी मुद्रा भंडार में और अधिक वृद्धि होना और जीएसटी राजस्व के संग्रह में उल्लेखनीय वृद्धि शामिल हैं।
समीक्षा में यह भी कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय से विलय वाली इकाइयां मजबूत होंगी, जोखिम कम होगा और परिणामस्वरूप ब्याज दर में कमी आएगी।
इसके अनुसार जीएसटी क्रियान्वयन में बाधाओं में के दूर होने, घरेलू बाजार एकीकरण से व्यापार लागत कम होगी और नया निवेश का रास्ता बनेगा। पुन: भूमि और श्रम बाजार में सुधारों से व्यापार लागत कम होगी।
लोकसभा में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा 2019-20 की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
- आर्थिक वृद्धि चालू वित्त वर्ष में कम से कम पांच प्रतिशत रहेगी। अगले वित्त वर्ष में बढ कर 6 से 6.5 प्रतिशत तक रहने का अनुमान।
- आर्थिक वृद्धि को गति देने के वास्ते चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में देनी पड़ सकती है ढील।
- चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि के गति पकड़ने का अनुमान। यह उम्मीद विदेशी निवेश प्रवाह बढ़ने, मांग बेहतर होने तथा जीएसटी संग्रह में वृद्धि समेत 10 कारकों पर आधारित।
- समीक्षा में आर्थिक सुधार तेज करने पर बल।
- वर्ष 2025 तक भारत को पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में नैतिक तरीके से संपत्ति सृजन महत्वपूर्ण।
- नियमित क्षेत्र का विस्तार। संगठित/नियमित क्षेत्र के रोजगार का हिस्सा 2011-12 के 17.9 प्रतिशत से बढ़कर 2017-18 में 22.8 प्रतिशत पर पहुंचा।
- समीक्षा में संपत्ति सृजन, कारोबार के अनुकूल नीतियों को बढ़ावा, अर्थव्यवस्था में भरोसा मजबूत करने पर जोर।
- वित्त वर्ष 2024-25 तक पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये इस दौरान बुनियादी संरचना पर 1,400 अरब डॉलर खर्च करने की जरूरत।
- नियमित वेतन पाने वाले कर्मचारियों के हिसाब से 2011-12 से 2017-18 के दौरान शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के 2.62 करोड़ नये अवसरों का हुआ सृजन।
- वित्त वर्ष 2011-12 से 2017-18 के बीच नियमित रोजगार में महिला श्रमिकों की संख्या आठ प्रतिशत बढ़ीं।
- बाजार में सरकार के अधिक दखल से आर्थिक स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
- कर्जमाफी से बिगड़ती है ऋण संस्कृति, वहीं किसानों के औपचारिक ऋण वितरण पर पड़ता है असर।
- सरकार को उन क्षेत्रों की बाकायदा पहचान करनी चाहिए जहां सरकारी दखल अनावश्यक है और उससे व्यवधान होता है।
- सरकारी बैंकों में बेहतर कंपनी संचालन, भरोसा तैयार करने के लिये अधिक खुलासों पर ध्यान देने की वकालत।
- नया कारोबार शुरू करना, संपत्ति का पंजीयन, कर का भुगतान, करार करने आदि को सुगम बनाने पर ध्यान देने पर जोर।
- कच्चा तेल की कीमतें कम होने से चालू खाता घाटे में आयी कमी। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में निर्यात की तुलना में आयात में अधिक तेजी से आई गिरावट का भी योगदान।
- मुद्रास्फीति के अप्रैल 2019 के 3.2 प्रतिशम से गिरकर दिसंबर 2019 में 3.2 प्रतिशत पर आना मांग में नरमी का संकेत।
- चालू वित्त वर्ष में नवंबर माह तक केंद्रीय माल एवं सेवा कर के संग्रह में हुई 4.1 प्रतिशत की वृद्धि।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.