सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने आदेश दिया है कि अब सेवानिवृत्त जनरल ''सहायकों'' की सेवाएं नहीं ले पाएंगे
सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने आदेश दिया है कि अब सेवानिवृत्त जनरल ''सहायकों'' की सेवाएं नहीं ले पाएंगेआईएएनएस

अगर आप रक्षा परिवार से ताल्लुक रखते हैं या फिर किसी ऐसे परिवार को नजदीक से जानते हैं तो आपको जरूर मालूम होगा कि उनके जीवन में ''सहायक'' की क्या भूमिका होती है. हालांकि जल्द ही यह बात इतिहास में दर्ज एक सुनहरी स्मृति बनकर रह जाएगी क्योंकि सेना प्रमृख जनरल बिपिन रावत ने एक आदेश जारी किया है जिसके बाद सेवानिवृत्त जनरल इस सहायकों की सेवा नहीं ले पाएंगे.

इस फैसले से बेहद करीब से जुड़े सूत्रों ने हिंदुस्तान टाईम्स को बताया कि यह फैसला रावत की उस धारणा का हिस्सा है कि सैनिक युद्ध करने और सीमा पर आगे रहने के लिये होते हैं न कि सेवानिवृत्त जनरलों के घरों पर - कैंटीन और अन्य घरेलू कामों के लिये - सहायकों के रूप में सेवा करने को.

नाम न छापने की शर्त सूत्र ने दैनिक को बताया कि रावत का पूरा जोर इस तथ्य पर है कि सैनिकों को हमेशा युद्ध के मोर्चे के लिये तैयार रहना चाहिये और वे ऐसा तबसे मानते हैं जब वर्ष 1978 में उन्हें गोरखा राईफल्स की पांचवी बटालियन के लिये कमीशन किया गया था.

कहा जा रह है कि इस आदेश ने पूर्व-सैन्य अधिकारियों के बीच खलबली मचा दी है और उन्होंने अब इस मामले को रक्षा मंत्रालय के समक्ष भी उठाया है. हालांकि इस आदेश के रद्द होने की कोई संभावना नहीं है. वास्तव में सेना मुख्यालय ने चेतावनी भी दी है कि अगर कोई सैनिक किसी सेवानिवृत्त सैन्य-अधिकारी के घर सहायक के रूप में काम करते हुए पाया जाता है तो उस सैनिक के कमांडिंग अधिकारी को नियमों को पालन न करने का जिम्मेदार माना जाएगा.

रावत लगातार भारतीय सेना की नीतियों में बदलाव लाने के प्रयासों में हैं और इस दिशा में कई सकारात्मक सुझाव भी दे चुके हैं. बदलाव के इसी हिस्से के रूप में, रावत ने यह भी कहा था कि सैनिकों को अब उनके कार्यकाल से अधिक अवधि के लिये विशेष स्थानों और बड़े शहरों में रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

कहा जा रहा है कि आगे आकर मिसाल पेश करते हुए रावत ने अपने निती वाहन चालकों को दूसरे स्थानों पर स्थानातरित करते हुए नए चालकों को रखा है. कहा जा रहा है कि उनके पुराने वाहन चालक नई दिल्ली में पिछले छः वर्षो से तैनात थे और राजधानी के हर गली-कूचे से वाकिफ थे, जो वास्तव में काफी फायदेमद था. हालांकि रावत बदलाव के हिमायती थे और कर्मियों के नए समूह को मौका देना चाहते थे.

इस बीच यह बदलाव सिर्फ सैनिकों और जूनियरों तक ही सीमित नहीं है बल्कि वरिष्ठ कर्मियों को भी इनका पालन करना होगा.

सिर्फ कर्मी ही नहीं बल्कि भारतीय सेना भी यह सुनिश्चित कर रही है कि जब हथियारों और गोला-बारूद की बात आए तो देश युद्ध के लिये बिल्कुल तैयार हो. देश भर की महत्वपूर्ण इकाईयों को अपने उपकरण की स्थिति को जांचते हुए उसकी विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया है. सैनिकोें को भी किसी भी समय युद्ध के लिये तैयार रहने को कहा गया है क्योंकि जम्मू-कश्मीर में सीमा पार किया गया सर्जिकल स्ट्राइक और 73 दिन का डोकलाम विवाद इस बात की गारंटी नहीं दे पाया है कि देश युद्ध की स्थिति में नही जाएगा.