सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरReuters

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार, 10 अप्रैल को राफेल लड़ाकू जेट सौदे में सबूत के तौर पर रक्षा मंत्रालय से "चुराए" गए दस्तावेजों को लेकर सरकार द्वारा उठाई गई तमाम प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज कर दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राफेल मामले में रिव्यू पिटिशन पर नए दस्तावेज के आधार पर सुनवाई का फैसला किया है। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय बेंच ने एक मत से दिए फैसले में कहा कि जो नए दस्तावेज डोमेन में आए हैं, उन आधारों पर मामले में रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई होगी। बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस एस. के. कौल और जस्टिस के. एम. जोसेफ शामिल रहे।

राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि इससे संबंधित डिफेंस के जो दस्तावेज लीक हुए हैं, उस आधार पर रिव्यू पिटिशन की सुनवाई की जाएगी या नहीं।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लीक दस्तावेजों के आधार पर रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई का विरोध किया था और कहा था कि ये दस्तावेज प्रिविलेज्ड (विशेषाधिकार वाला गोपनीय) दस्तावेज है और इस कारण रिव्यू पिटिशन खारिज किया जाना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस के. एम. जोसेफ ने कहा था कि आरटीआई ऐक्ट 2005 में आया है और ये एक क्रांतिकारी कदम था ऐसे में हम पीछे नहीं जा सकते।

सरकार ने कहा था कि जो दस्तावेज प्रशांत भूषण ने रिव्यू पिटिशन के साथ पेश किए हैं वह प्रिविलेज्ड दस्तावेज है और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है ये दस्तावेज गोपनीय है और आरटीआई के अपवाद में है साथ ही एविडेंस ऐक्ट के तहत गोपनीय दस्तावेज है। इंडियन एविडेंस ऐक्ट के तहत गोपनीय दस्तावेज पेश नहीं किया जा सकता। जो दस्तावेज राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो, दो देशों के संंबंध पर असर डालता हो उन्हें गोपनीय दस्तावेज माना गया है। अनुच्छेद-19 (2) के तहत अभिव्यक्ति के अधिकार पर वाजिब रोक की बात है। जहां देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला होगा वह रोक के दायरे में आएगा। आरटीआई के तहत भी देश की संप्रभुता से जुड़े मामले को अपवाद माना गया है। सरकारी गोपनीयता कानून की धारा-3 और 5 में भी रोक है।

इस दौरान याचिकाकर्ता वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि ये तमाम दस्तावेज पब्लिक डोमेन में है। जो दस्तावेज पहले से लोगों के सामने है उस पर कोर्ट विचार न करें क्योंकि ये प्रिविलेज्ड दस्तावेज है, यह बेकार की दलील है। एविडेंस ऐक्ट के तहत जो दस्तावेज पब्लिक डोमेन में लाने से रोका गया है, वे वैसे दस्तावेज हैं जो पहले से गोपनीय हैं और प्रकाशित नहीं हुए हैं लेकिन इस मामले में डिफेंस के दस्तोवज पहले से लोगों के सामने है। केंद्र सरकार ने अभी तक मामले में केस दर्ज नहीं किया। पहली बार 18 नवंबर को ये रिपोर्ट वेबसाइट पर छपी।

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सीएजी रिपोर्ट सरकार ने पेश किया है। उसमें डिफेंस डील से संबंधित जानकारी है। भूषण की दलील थी कि सरकार ने खुद सीएजी रिपोर्ट को कोर्ट में पेश किया।ऐसे में उनकी ओर से पेश दस्तावेज को प्रिविलेज्ड दस्तावेज कैसे कह सकते हैं। उधर प्रेस काउंसिल कहता है कि मीडिया कर्मी सोर्स बताने के लिए बाध्य नहीं है। एसपी गुप्ता से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दे रखी है कि कोई दस्तावेज गोपनीय है या नहीं और देश की सुरक्षा से जुड़ा है, इस बात को पब्लिक इंट्रेस्ट में परखा जाएगा। इस मामले में दस्तावेज पहले से पब्लिक में है। सरकार खुद की अपने लोगों को इस तरह की जानकारी लीक करती रही है। रक्षा मंत्री की फाइल नोटिंग भी इसी तरह लीक की गई। 2 जी मामले और कोल ब्लॉक मामले में भी दस्तावेज पब्लिक डोमेन में आए थे और सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विसल ब्लोअर का नाम बाहर लाने की जरूरत नहीं है। अगर दस्तावेज केस के लिए जरूरी है तो यह बात औचित्यहीन है कि उसे कहां से और कैसे लाया गया है।

भूषण ने कहा कि वियतनाम वॉर से संबंधित पेंंटागन के दस्तावेज पब्लिक डोमेन में आए या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था और यूएस सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा के कारण दस्तावेज गोपनीय रखने की दलील खारिज कर दी गई थी। सरकार की दलील पूर्वाग्रह वाला है और टिकने वाला नहीं है क्योंकि यहां दस्तावेज को विशेषाधिकार वाले दायरे में नहीं रखा जा सकता क्योंकि ये पहले ही प्रकाशित है। अगर दस्तावेज करप्शन के केस के लिए औचित्यपूर्ण है तो इस बात का मतलब नहीं रह जाता कि ये कहां से लाया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने राफेल मामले में जांच की गुहार से संबंधित अर्जी को 14 दिसंबर 2018 को खारिज कर दिया था, जिसके बाद रिव्यू पिटिशन दाखिल की गई है जिस पर ओपन कोर्ट में सुनवाई हुई थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने मामले की सुनवाई हुई थी। 14 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के उस ऐतराज पर ऑर्डर रिजर्व कर लिया था कि क्या प्रिविलेज्ड दस्तावेज पर विचार करते हुए रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई हो या नहीं।