सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरPRAKASH SINGH/AFP/Getty Images

मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर रोक लगाने के उद्देश्य से लाये गए 'मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक' को लोकसभा की मंजूरी मिल गई .विधेयक में सजा के प्रावधान का कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया और इसे संयुक्त प्रवर समिति में भेजने की मांग की.

सत्ताधारी पार्टी ने अपने विरोधी से मुस्लिम महिलाओं के प्रति 'दशकों तक अन्याय' को लेकर माफी की मांग की है वहीं विपक्षी दलों का आरोप है कि यह विधेयक 2019 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए जल्दबाजी में पारित किया गया. सरकार ने उन दावों को खारिज किया कि इसका उद्देश्य एक खास समुदाय को निशाना बनाना है.

सदन ने एन के प्रेमचंद्रन के सांविधिक संकल्प एवं कुछ सदस्यों के संशोधनों को नामंजूर करते हुए महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2018 को मंजूरी दे दी. विधेयक पर मत विभाजन के दौरान इसके पक्ष में 245 वोट और विपक्ष में 11 मत पड़े.

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के विधेयक पर चर्चा के जवाब के बाद कांग्रेस,एसपी, राजद, एनसीपी, टीएमसी, टीडीपी, अन्नाद्रमुक, टीआरएस, एआईयूडीएफ ने सदन से वाकआउट किया. प्रेमचंद्रन के सांविधिक संकल्प में 19 दिसंबर 2018 को प्रख्यापित मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अध्यादेश 2018 का निरनुमोदन करने की बात कही गई है.

विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इसे राजनीति के तराजू पर तौलने की बजाय इंसाफ के तराजू पर तौलते की जरूरत है. उनकी सरकार के लिये महिलाओं का सशक्तिकरण वोट बैंक का विषय नहीं है. उन्होंने कहा कि हम मानते हैं कि महिलाओं का सम्मान होना चाहिए .

प्रसाद ने विधेयक को संयुक्त प्रवर समिति को भेजने की विपक्ष मांग को खारिज किया . उन्होंने कहा कि इसे प्रवर समिति को भेजे जाने की मांग के पीछे एक ही कारण है कि इसे आपराधिक क्यों बनाया गया .उन्होंने कहा कि संसद ने 12 वर्ष से कम उम्र की बालिका से बलात्कार के मामले में फांसी की सजा संबंधी कानून बनाया. क्या किसी ने पूछा कि उसके परिवार को कौन देखेगा. दहेज प्रथा के खिलाफ कानून में पति, सास आदि को गिरफ्तार करने का प्रावधान है. जो दहेज ले रहे हैं, उन्हें पांच साल की सजा और जो इसे प्रात्साहित करते हैं, उनके लिये भी सजा है . इतने कानून बने, इन पर तो सवाल नहीं उठाया गया .

विधि मंत्री ने कहा कि तीन तलाक के मामले में सवाल उठाया जा रहा है, उसके पीछे वोट बैंक की राजनीति है. यह मसला वास्तव में वोट बैंक से जुड़ा है. कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि शाह बानो मामले में जब संसद में बहस हुई तब डेढ़ दिनों तक कांग्रेस उच्चतम न्यायालय के फैसले के साथ थी लेकिन बाद में वह बदल गई .

कांग्रेस समेत विपक्षी दल विधेयक को संयुक्त प्रवर समिति को भेजे जाने की मांग कर रहे थे. सरकार द्वारा उनकी मांग खारिज किये जाने के बाद विपक्षी दलों ने वॉकआउट किया.

लोकसभा में तीन तलाक विधेयक पारित होने को मुस्लिम महिलाओं की समानता और गरिमा सुनिश्चित करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम करार देते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने गुरुवार को मांग की है कि कांग्रेस दशकों तक अन्याय के लिये माफी मांगे. शाह ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को लोकसभा में सफलतापूर्वक तीन तलाक विधेयक पारित होने के लिये बधाई दी और कहा कि यह 'मुस्लिम महिलाओं की समानता और गरिमा सुनिश्चित करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है.'

उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाओं के साथ दशकों तक अन्याय के लिये कांग्रेस और अन्य दलों को निश्चित रूप से माफी मांगनी चाहिए. विधेयक को संविधान और मौलिक अधकारों के खिलाफ करार देते हुए कांग्रेस ने कहा कि सरकार ने 2019 के आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए हड़बड़ी में इसे लोकसभा में पारित कराया.

लोकसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने दावा किया कि आने वाले चुनावों में राजनीतिक लाभ लेने के मकसद से भाजपा लोकसभा में इस विधेयक को पारित कराने के लिये बेकरार थी. उन्होंने यह भी कहा कि दीवानी अपराध के अपराधीकरण जैसे कड़े प्रावधान दूसरे धर्मों में लागू होने वाले किसी दूसरे कानून में नहीं हैं जैसा कि तीन तलाक विधेयक में हैं. लोकसभा में विधेयक पारित होने के बाद उन्होंने कहा, ''तीन तलाक विधेयक संविधान के खिलाफ है. यह मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है. लोकसभा चुनाव आ रहे हैं इसलिये उन्होंने हड़बड़ी में लोकसभा में इस विधेयक को पारित कराया.''

खड़गे ने कहा कि यह विधेयक सरकार द्वारा पहले लाए गए विधेयक जैसा ही है. सरकार ने कांग्रेस की प्रस्तावित विधेयक को दोनों सदनों की संयुक्त प्रवर समिति के समक्ष भेजने की मांग की थी जिसे सरकार ने नहीं माना. विधेयक के पारित होने पर एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया कि यह मुस्लिम महिलाओं के प्रति अन्याय का एक स्रोत बनेगा.

माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात ने कहा कि उनकी पार्टी ने विधेयक का विरोध किया है क्योंकि यह अनिवार्य रूप से दीवानी मामले का अपराधीकरण करेगा. उन्होंने कहा, ''किसी दूसरे समुदाय के कानून में पत्नी को छोड़ना गिरफ्तारी का आधार नहीं है. यह विधेयक मोदी सरकार का वास्तविकता छुपाने का एक बहाना है कि उसका एजेंडा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण नहीं बल्कि अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों को बढ़ावा देना है.''

आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने आरोप लगाया कि भाजपा खुद को मुस्लिम महिलाओं की हिमायती के तौर पर पेश कर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है. राज्यसभा के सदस्य सिंह ने कहा कि यह समझ से परे है कि भाजपा तीन तलाक पर दंडात्मक प्रावधान के लिये क्यों तुली हुई है, जब उच्चतम न्यायालय इस प्रावधान को पहले ही अवैध बता चुका है.

सिंह ने बताया, ''भाजपा इस विधेयक के जरिये खुद को मुस्लिम महिलाओं के हिमायती के तौर पर पेश कर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है. उन हिंदू महिलाओं का क्या जो देश भर में दुष्कर्म, हत्या और दहेज हत्या का सामना करती हैं.'' विधेयक पारित होने पर मुस्लिम संगठनों से भी मिलीजुली प्रतिक्रिया सामने आई है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की कार्य समिति के सदस्य एस क्यू आर इलियास ने कहा कि इस विधेयक की कोई जरूरत नहीं थी और इसे आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर लाया गया है. उन्होंने कहा, ''यह बेहद खतरनाक विधेयक है जो दीवानी मामले को फौजदारी अपराध बना देगा. एक बार पति जेल चला जाएगा तो पत्नियों और बच्चों की देखभाल कौन करेगा.''

अखिल भारतीय उलेमा काउंसिल के महासचिव मौलाना महमूद दरयाबादी ने कहा कि जब सरकार ने तीन तलाक को रद्द कर दिया तब इस पर यहां चर्चा क्यों की जा रही है. उन्होंने कहा, ''सरकार को मुस्लिम महिलाओं और बच्चों के लिये कोष पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिनके पास अपने पति के जेल जाने के बाद आय का कोई स्रोत नहीं रहेगा.'' भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सदस्य जाकिया सोमन ने हालांकि विधेयक का स्वागत किया और हिंदू विवाह अधिनियम की तर्ज पर मुस्लिम विवाह अधिनियम की मांग की जो बहुविवाह और बच्चों के संरक्षण जैसे मुद्दों से निपटेगा.

राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने भी तीन तलाक विधेयक पारित होने का स्वागत किया. एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा, ''हम इस कदम का स्वागत करते हैं. इस विधेयक के अभाव में हमने मुस्लिम महिलाओं की पीड़ा देखी है और काफी समय से इसे पारित किये जाने की वकालत करते रहे हैं.''

इससे पहले विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस विधेयक को चर्चा एवं पारित कराने के लिए लोकसभा में रखा . इस पर कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, वाम दलों, तृणमूल कांग्रेस, राजद, एनसीपी, एसपी जैसे दलों ने विधेयक पर व्यापक चर्चा के लिये इसे संसद की संयुक्त प्रवर समिति के समक्ष भेजने की मांग की .

प्रसाद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा तीन तलाक असंवैधानिक घोषित करने की पृष्ठभूमि में यह विधेयक लाया गया है. जनवरी 2017 के बाद से तीन तलाक के 417 वाकये सामने आए हैं . उन्होंने कहा कि पत्नी ने काली रोटी बना दी, पत्नी मोटी हो.. ऐसे मामलों में भी तीन तलाक दिये गए हैं . प्रसाद ने कहा कि 20 से अधिक इस्लामी मुल्कों में तीन तलाक नहीं है . हमने पिछले विधेयक में सुधार किया है और अब मजिस्ट्रेट जमानत दे सकता है.

मंत्री ने कहा कि संसद ने दहेज के खिलाफ कानून बनाया, घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून बनाया, महिलाओं पर अत्याचार रोकने के लिये कानून बनाया . तब यह संसद तीन तलाक के खिलाफ एक स्वर में क्यों नहीं बोल सकती ? रविशंकर प्रसाद ने कहा , 'इस पूरे मामले को सियासत की तराजू पर नहीं तौलना चाहिए, इस विषय को इंसाफ के तराजू पर तौलना चाहिए .'

उन्होंने कहा कि इस बारे में कोई सुझाव है तो बताए... लेकिन सवाल यह है कि क्या राजनीतिक कारणों से तील तलाक पीड़ित महिलाओं को न्याय नहीं मिलेगा .' उन्होंने कहा कि यह नारी सम्मान एवं न्याय से जुड़ा है और संसद को एक स्वर में इसे पारित करना चाहिए.

विपक्षी सदस्यों द्वारा इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजने की मांग पर स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कहा कि यह महत्वपूर्ण विधेयक है और सदन को इस पर चर्चा करनी चाहिए . उल्लेखनीय है कि मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक पहले लोकसभा में पारित हो गया था लेकिन राज्यसभा में यह पारित नहीं हो सका .

विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय ने शायरा बानो बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले तथा अन्य संबद्ध मामलों में 22 अगस्त 2017 को 3 : 2 के बहुमत से तलाक ए बिद्दत :एक साथ और एक समय तलाक की तीन घोषणाएं: की प्रथा को समाप्त कर दिया था जिसे कतिपय मुस्लिम पतियों द्वारा अपनी पत्नियों से विवाह विच्छेद के लिये अपनाया जा रहा था .

इसमें कहा गया है कि इस निर्णय से कुछ मुस्लिम पुरूषों द्वारा विवाह विच्छेद की पीढ़ियों से चली आ रही स्वेच्छाचारी पद्धति से भारतीय मुस्लिम महिलाओं को स्वतंत्र करने में बढ़ावा मिला है .

यह अनुभव किया गया कि उच्चतम न्यायालय के आदेश को प्रभावी करने के लिये और अवैध विवाह विच्छेद की पीड़ित महिलाओं की शिकायतों को दूर करने के लिये राज्य कार्रवाई अवश्यक है . ऐसे में तलाक ए बिद्दत के कारण असहाय विवाहित महिलाओं को लगातार उत्पीड़न से निवारण के लिये समुचित विधान जरूरी था . लिहाजा मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 को दिसंबर 2017 को लोकसभा में पुन: स्थापित किया गया और उसे पारित किया गया था .

संसद में और संसद से बाहर लंबित विधेयक के उपबंधों के विषय में चिंता व्यक्त की गई थी. इन चिंताओं को देखते हुए अगर कोई विवाहित मुस्लिम महिला या बेहद सगा (ब्लड रिलेशन) व्यक्ति तीन तलाक के संबंध में पुलिस थाने के प्रभारी को अपराध के बारे में सूचना देता है तो इस अपराध को संज्ञेय बनाने का निर्णय किया गया है .

मजिस्ट्रेट की अनुमति से ऐसे निबंधनों की शर्त पर इस अपराध को गैर जमानती एवं संज्ञेय भी बनाया गया है . इसमें कहा गया कि ऐसे में जब विधेयक राज्यसभा में लंबित था और तीन तलाक द्वारा विवाह विच्छेद की प्रथा जारी थी, तब विधि में कठोर उपबंध करके ऐसी प्रथा को रोकने के लिये तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत थी . उस समय संसद के दोनों सदन सत्र में नहीं थे. ऐसे में 19 सितंबर 2018 को मुस्लिम विवाह अधिकार संरक्षण अध्यादेश 2018 लागू किया गया .