सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरDibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images

इस साल होने वाले आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्तासीन होने संभावनाओं को लेकर बढ़ती अनिश्चितताओं के बीच अर्थव्यस्था में जल्द तेजी आने की उम्मीदों को जोरदार झटका लगा है. दिसंबर में समाप्त हुई तिमाही में नया निवेश 14 सालों के निचले स्तर पर पहुंच गया. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के प्रॉजेक्ट-ट्रैकिंग डेटाबेस के ताजा आंकड़ों से यह जानकारी सामने आई है.

भारतीय कंपनियों ने दिसंबर तिमाही में एक लाख करोड़ रुपये के प्रॉजेक्ट की घोषणा की है, जो सितंबर तिमाही की तुलना में 53 फीसदी कम और पिछले साल की समान तिमाही की तुलना में 55 फीसदी कम है.

नई परियोजनाओं में यह गिरावट निजी क्षेत्र द्वारा प्रॉजेक्ट की घोषणाओं में कमी के कारण सामने आई है. सितंबर तिमाही की तुलना में दिसंबर तिमाही में निजी क्षेत्र की परियोजनाओं में 62 फीसदी की गिरावट आई है, जबकि वित्त वर्ष 2017-18 की तुलना में इसमें 64 फीसदी की गिरावट आई है.

चालू वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही की तुलना में दिसंबर तिमाही में नई सरकारी परियोजनाओं में भी गिरावट देखने को मिली है. दिसंबर तिमाही में ताजा निवेश में पिछली तिमाही की तुलना में 37 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि पिछले साल की समान तिमाही की तुलना में 41 फीसदी की गिरावट देखी गई है, जो दिसंबर 2004 के बाद अपने निचले स्तर पर है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र में भी नई परियोजनाओं की शुरुआत धीमी रही है. सार्वजनिक क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2019 में पिछले साल की तुलना में 50,604 करोड़ रुपया कम निवेश हुआ है. वित्तीय वर्ष 2019 की सितंबर तिमाही की तुलना में दिसंबर तिमाही में 37 फीसदी की कमी आई है. पिछले वित्तीय वर्ष 2018 में इसी तिमाही की तुलना में यह 41 फीसदी कम है.

हालांकि पिछले कई साल से मंदी में चल रहे विनिर्माण सेक्टर में मामूली सुधार आया है. जानकारों के मुताबिक बैंको की माली हालत, लोकसभा चुनाव को लेकर नीतिगत बदलावों की आशंका और पुरानी परियोजनाओं की प्रगति की धीमी रफ्तार ने निवेश को प्रभावित किया है.

सीएमआईई की ओर से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि दिसंबर तिमाही में चालू परियोजनाओं की लागत बढ़ने के बावजूद काम में तेजी नहीं आ पाई है.
प्राइवेट सेक्टर में 24 फीसदी परियोजनाएं पूरी नहीं हो पाईं हैं. सार्वजनिक क्षेत्रों की परियोजनाओं में हुई प्रगति की वजह से सुधार आया है. यह करीब 11 फीसदी है.

ऊर्जा और निर्माण सेक्टर की परियोजनाएं अब भी धीमी रफ्तार से जूझ रही हैं. ऊर्जा सेक्टर की 35.4 फीसदी परियोजनाएं अधूरी हैं. वहीं, निर्माण सेक्टर की 29.2 फीसदी परियोजनाओं का काम पूरा नहीं हो पाया है.

फंड और ईंधन की कमी, कच्चे माल का अभाव और बाजार की माली हालत की वजह से ज्यादातर परियोजनाएं पूरी नहीं हो पाई है. बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों की माली हालत की वजह से ज्यादातर परियोजनाओं को फंड नहीं मिल पा रहा है.

जानकार मानते हैं कि ठप पड़ी परियोजनाएं भारत की अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकती हैं. केन्द्र की मोदी सरकार विकास को गति देने के वादे के साथ सत्ता में आई थी. वह पूरा होता नहीं दिख रहा है. लोन माफी जैसी योजनाओं की वजह से सरकार पहले से दबाव में है और टिकाऊ बदलाव की मंशा और हालात दोनों से दूर दिखती है.