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विपक्ष की मांग के अनुरूप राफेल डील मामले की जांच की जाए या नहीं, इस पर आज सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने अपना फैसला सुना दिया. देश की सबसे बड़ी अदालत ने फ्रांस के साथ हुए 36 लड़ाकू राफेल विमान खरीदने को लेकर अपनाई गई प्रक्रिया को सही ठहराया और कहा कि कीमत तय करना उसका काम नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे राफेल डील में कोई अनियमितता नजर नहीं आई है. सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील को देश की जरूरत बताते हुए इसके खिलाफ दर्ज सारी याचिकाओं को खारिज कर दिया है.

शुक्रवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने देश में पिछले दिनों राजनीतिक तूफान की वजह बने राफेल डील पर अपना फैसला सुनाया. शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार को राफेल डील पर घेरने का मन बनाए बैठी कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक झटके के रूप में सामने आया है.

गौरतलब है कि कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि उन्होंने यूपीए की तुलना में तीन गुना अधिक कीमत देकर राफेल विमान का सौदा किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत पर निर्णय लेना अदालत का काम नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आता है.

राफेल डील को लेकर कांग्रेस और विपक्ष का यह भी आरोप था कि यूपीए के दौरान 126 फाइटर जेट खरीदने का सौदा रहा था. कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि अब मोदी सरकार केवल 36 फाइटर जेट खरीद रही है. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सरकार को 126 या 36 विमान खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि सरकार का फैसला विवेकपूर्ण और देशहित में है. कीमत से भारत को व्यवसायिक लाभ हुआ है. ऑफसेट पार्टनर के चयन में सरकार की भूमिका का प्रमाण नहीं मिला है. शीर्ष अदालत ने माना कि भारतीय वायुसेना में राफेल की तरह के चौथी और पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को शामिल करने की जरूरत है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'लड़ाकू विमानों की जरूरत है और देश लड़ाकू विमानों के बगैर नहीं रह सकता है.' सर्वोच्च अदालत ने इस बिंदु का भी उल्लेख किया कि सितंबर 2016 में जब राफेल सौदे को अंतिम रूप दिया गया था, उस वक्त किसी ने खरीदी पर सवाल नहीं उठाया था.

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि राफेल सौदे पर सवाल उस वक्त उठे जब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने बयान दिया, यह न्यायिक समीक्षा का आधार नहीं हो सकता है. कोर्ट ने कहा कि राफेल सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने का कोई अवसर नहीं है.

राफेल डील को चुनौती देते हुए वकील एम एल शर्मा, विनीत ढांडा, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, वकील प्रशांत भूषण और आप सांसद संजय सिंह ने याचिकाएं दाखिल की थी. सबने विमान सौदे में कमियां गिनाईं, तय प्रक्रिया का पालन न करने, पारदर्शिता की कमी, ज़्यादा कीमत देकर कम विमान लेने जैसे सवाल उठाए और भ्रष्टाचार का भी अंदेशा जताया.

खास तौर पर भारत में फ्रेंच कंपनी दसॉल्ट का ऑफसेट पार्टनर रिलायंस को बनाए जाने पर सवाल उठाए गए. कहा गया कि सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को दरकिनार कर रिलायंस को फायदा पहुंचाने के लिए पहले से चल रही डील को रद्द कर नया समझौता किया गया.

पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने देशहित का हवाला दिया था. उन्होंने कहा था कि सौदे के सभी पहलुओं पर चर्चा नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि सभी याचिकाएं मीडिया की रिपोर्टिंग के आधार पर दाखिल कर दी गई हैं. इनमें बार-बार कीमत को लेकर सवाल उठाए गए हैं. इन सवालों के जवाब दिए गए तो इससे भारत के शत्रु देश विमान की बारीकियों के बारे में जान जाएंगे.