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राफेल जेट विमानों की खरीद पर संसद और संसद के बाहर लगातार जारी राजनीतिक घमासान के बीच बीच खबर है कि भारत ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 59,000 करोड़ रुपये की कुल कीमत में से आधे से अधिक का भुगतान कर दिया है। ये विमान 2019 नवंबर से 2022 अप्रैल के बीच भारत को डिलिवर किए जाएंगे। राफेल सौदे में अनियमितता का आरोप लगाकर विपक्षी दल सरकार को चुनावी मौसम में घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।

36 लड़ाकू विमानों के लिए इस सौदे पर 2016 में हस्ताक्षर हुए थे। जिनकी डिलिवरी नवंबर 2019 से अप्रैल 2022 तक हो जाएगी। हालांकि भारतीय आवश्यकतानुसार बदलाव तथा उन्नयन वाले विमान सितंबर-अक्तूबर 2022 तक पूरी तरह ऑपरेशनल (संचालन युक्त) हो जाएंगे क्योंकि उन्हें भारत आने के बाद सॉफ्टवेयर सर्टिफिकेशन के लिए 6 महीने का समय और लगेगा।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि इस सौदे में 34,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। वहीं इस साल 13,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाएगा। 15 प्रतिशत की पहली किस्त का भुगतान सौदे पर हस्ताक्षर होने के बाद सितंबर 2016 में की गई थी। उस समय भारतीय वायुसेना ने परियोजना प्रबंधन और अग्रिम प्रशिक्षण टीमों को फ्रांस में तैनात किया था। तब क्रिटिकल डिजायन रिव्यू और डॉक्यूमेंटेशन के लिए भुगतान किया गया था।

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Reuters

सूत्र ने कहा कि अंतिम किश्त का भुगतान 2022 में किया जाएगा जब सभी विमान भारत आ जाएंगे। वायुसेना को फ्रांस से इस साल सितंबर में चार लड़ाकू विमान मिल जाएंगे। जिसके बाद लगभग 10 पायलटों, 10 उड़ान इंजीनियरों और 40 तकनीशियनों की मुख्य टीम को इसका प्रशिक्षण दिया जाएगा। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार यह विमान हरियाणा के अंबाला एयरबेस में मई 2020 तक पहुंच जाएंगे।

वायुसेना की योजना है कि राफेल के एक स्कवाड्रन (18 विमान) को अंबाला और हासिमरा में तैनात किया जाए। जिससे कि पाकिस्तान और चीन पर नजर रखी जा सके। इन दोनों एयरबेस के ढांचे पर लगभग 450 करोड़ रुपये की लागत आएगी। दोनों में राफेल के दो-दो स्कवाड्रन तैनात किए जा सकेंगे। इस समय 13 आईएसई के विमान की फ्रांस में फ्लाइट टेस्टिंग हो रही है, जिसे कि माना जा रहा है अप्रैल 2022 तक सर्टिफिकेट मिल जाएगा।

भारत की जरूरतों के अनुसार पूरी तरह से उपकरणों से लैस 13 विमान सितंबर-अक्टूबर 2022 में ही पूरी तरह से प्रयोग करने लायक हो सकेंगे। भारत पहुंचने के बाद भी विमानों को तत्काल प्रयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि अगले छह महीनों तक इन्हें विभिन्न सॉफ्टवेयर सर्टिफिकेशन से गुजरना होगा। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने बताया, 'लगभग 34,000 करोड़ की रकम माइलस्टोन लिंक्ड इंस्टॉलमेंट (पूर्व निर्धारित शर्तों के आधार पर सिलसिलेवार तरीके से) के तौर पर दी जा चुकी है।'