सांकेतिक तस्वीर
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लोकसभा से पास होने के कुछ दिनों बाद ट्रिपल तलाक को प्रतिबंधित करने वाले ऐतिहासिक बिल, मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 मंगलवार, 30 जुलाई को राज्यसभा में पारित हो गया। अब मौखिक, लिखित या किसी भी अन्य माध्यम से तीन तलाक देना कानूनन अपराध होगा। सरकार के पास राज्यसभा में पूर्ण बहुमत न होने के बावजूद विपक्षी दलों के बिखराव और मित्र दलों की सहायता से यह बिल पास हुआ।

उच्च सदन में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक के पक्ष में 99 वोट पड़े, जबकि 84 सांसदों ने इसके विरोध में मतदान किया। बीएसपी, पीडीपी, टीआरएस, जेडीयू, एआईएडीएमके और टीडीपी जैसे कई दलों के वोटिंग में हिस्सा न लेने के चलते सरकार को यह बिल पास कराने में आसानी हुई। राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद यह विधेयक तीन तलाक को लेकर 21 फरवरी को जारी किए गए मौजूदा अध्यादेश की जगह ले लेगा।

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बिल पेश करने के दौरान कहा था कि तील तलाक 20 से ज्यादा देशों में प्रतिबंधित है, इस कानून को राजनीति के चश्मे से न देखें। अब तीन तलाक देने पर आरोपी को तीन साल की जेल होगी।

इससे पहले कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तीन तलाक पर बहस का जवाब देते हुए कहा कि हजारों साल पहले पैगंबर ने भी इस पर सख्ती से पाबंदी लगाई थी और उनके जिस बंदे ने ऐसा किया, उससे कहा कि वह अपनी पत्नी को वापस ले। यहां भी लोग कह रहे हैं कि तीन तलाक गलत है, लेकिन...। आखिर यह लेकिन क्या है, इसका मतलब यह है कि तीन तलाक गलत है, लेकिन सब कुछ ऐसे ही चलने दो।

रविशंकर प्रसाद ने हिंदू मैरिज ऐक्ट समेत कई कानूनों का जिक्र करते हुए कहा कि 1955 में जब बना तो यह रखा गया कि पति की उम्र 21 साल और पत्नी की 18 वर्ष होनी चाहिए। इसके उल्लंघन पर दो साल की सजा का प्रावधान किया गया। यदि पत्नी के रहते हुए पति ने दूसरी शादी की या फिर पत्नी ने दूसरा पति कर लिया तो 7 साल की सजा होगी। 55 साल पहले कांग्रेस ने यह किया था और हम इस अच्छे काम के साथ हैं।

रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने 1961 में दहेज के खिलाफ कानून लाने का काम किया था। दहेज लेने पर 5 साल की सजा है और मांगने पर 2 साल की सजा है। 1986 में इसे गैरजमानती अपराध करार दिया गया। उसमें तो नहीं सोचा कि परिवार कैसे चलेगा। यह कानून धर्म की सीमाओं से परे है और सभी पर लागू होता है। यही नहीं, उन्होंने कहा कि आईपीसी में आप 498A लाए, जिसमें पति की क्रूरता पर तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया। यह कानून 1983 में लाया गाया। इन सभी के लिए आपका अभिनंदन है। इतने प्रगतिशील काम करने वाली आपकी सरकार के कदम 1986 में शाहबानो केस में क्यों हिलने लगे। यह बड़ा सवाल है।

शाहबानो से सायराबानो तक वहीं खड़ी कांग्रेस शाहबानो प्रकरण की याद दिलाते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा कि 1986 में दो दिन तक आरिफ मोहम्मद खान का भाषण हुआ था। इतनी हिम्मती कांग्रेस सरकार आखिर दहेज उत्पीड़न के अपराध को गैरजमानती बनाती है और शाहबानो पर पीछे हट गई। 1986 में शाहबानो से लेकर 2019 में सायराबानो तक कांग्रेस आज जस की तस खड़ी है। रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि 1986 में आपकी 400 सीटें आई थीं, उसके बाद 9 लोकसभा चुनाव हुए, लेकिन आप तबसे गिरते ही चले गए। 1986 में शाहबाने के बाद से कांग्रेस गिरती ही चली गई, यह आपके लिए सोचने की बात है।

इससे पहले बिल को सेलेक्ट कमिटी के पास भेजने का प्रस्ताव भी 100 के मुकाबले 84 वोटों से गिर गया। नए सांसदों को सीट अलॉट न होने कारण पर्ची से वोटिंग की गई। हालांकि, यह प्रस्ताव 100-84 के अंतर से गिर गया। इसके पक्ष में 84 वोट पड़े तो न भेजे जाने के पक्ष में 100 सांसदों ने वोट किया। वोटिंग के दौरान कई सांसदों का नदारद रहना भी इसके पक्ष में गया। जदयू, अन्नाद्रमुक, टीआरएस और बसपा जैसे दल सदन में मौजूद ही नहीं थे।

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बिल का विरोध करने वाले जेडीयू, टीआरएस, बीएसपी और पीडीपी जैसे कई दलों ने मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया। राज्यसभा में यह बिल पास होना सरकार के लिए बड़ी कामयाबी माना जा रहा है क्योंकि उच्च सदन में अल्पमत में होने के चलते उसके लिए इस बिल को पास कराना मुश्किल था। इससे पहले भी एक बार उच्च सदन से यह विधेयक गिर गया था।

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 2017 में तीन तलाक को निरस्त किया था। दो जजों ने इसे असंवैधानिक कहा था, एक जज ने इसे पाप बताया था। इसके बाद दो जजों ने इस पर संसद को कानून बनाने को कहा था। संसद में यह बिल लोकसभा से तो दो बार पास हुआ, लेकिन राज्यसभा में अटक गया। इसके बाद इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए सरकार ने अध्यादेश का रास्ता चुना। छह महीने के अंदर इस पर संसद की मुहर लगनी जरूरी थी।

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद इसका इस्तेमाल होने पर सरकार सितंबर 2018 में अध्यादेश लाई। तीन तलाक देने पर पति को तीन साल की सजा का प्रावधान रखा गया। हालांकि, किसी संभावित दुरुपयोग को देखते हुए विधेयक में अगस्त 2018 में संशोधन कर दिए गए थे।

जनवरी 2019 में इस अध्यादेश की अवधि पूरी होने से पहले दिसंबर 2018 में एक बार फिर सरकार बिल को लोकसभा में नए सिरे से पेश करने पहुंची थी। 17 दिसंबर 2018 को लोकसभा में बिल पेश किया गया। हालांकि, एक बार फिर विपक्ष ने राज्यसभा में इसे पेश नहीं होने दिया और बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग की जाने लगी। एक बार फिर बिल अटक गया।

बता दें कि सायरा बानो केस पर फैसला सुनाते हुए साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। अलग-अलग धर्मों वाले 5 जजों की बेंच ने 3-2 से फैसला सुनाते हुए सरकार से तीन तलाक पर छह महीने के अंदर कानून लाने को कहा था।

तीन तलाक को कई मुस्लिम देशों ने बैन कर रखा है। इन देशों का जिक्र सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक पर बने पैनल ने भी किया था। पैनल ने ताहिर महमूद और सैफ महमूद की किताब मुस्लिम लॉ इन इंडिया का जिक्र किया। इसमें अरब के देशों में तीन तलाक को समाप्त किए जाने की बात कही है।

अल्जीरिया, मिस्र, इराक, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, लीबिया, मोरक्को, सूडान, सीरिया, ट्यूनीशिया, संयुक्त अरब अमीरात और यमन जैसै देशों में तीन तलाक पर प्रतिबंध है। इसके अलावा इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपींस जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देश तलाक के लिए सख्त कानून रखते हैं।