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भीषण चक्रवाती तूफान फोनी के प्रकोप का सामना करने वाले ओडिशा ने दुनिया को एक बड़ी सीख दी है। राज्य प्रशासन ने अपनी बेहतर प्लानिंग से जनहानि को कई गुना कम करके एक मिसाल पेश की है। ओडिशा ने पूरी दुनिया को बता दिया है कि विनाशकारी चक्रवाती तूफानों से कैसे निपटा जाए। शुक्रवार को आया तूफान फोनी भी दुनियाभर में भारी नुकसान करने वाले चक्रवाती तूफानों जैसा ही था, मगर बेहतर प्लानिंग की वजह से सिर्फ 6 लोगों की मौत हुई, जो तूफान से पहले से पीड़ित देशों और क्षेत्रों के लिए हैरानी भरा है। फोनी तूफान की गंभीरता को देखते हुए यह आंकड़ा बहुत कम है, क्योंकि इससे पहले आए ऐसे ही भीषण तूफान में राज्य में 10 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी।

ओडिशा सरकार ने लोगों को सचेत करने में और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में अपनी पूरी मशीनरी झोंक दी। तूफान से पहले करीब 26 लाख टेक्स्ट मैसेज भेजे गए, 43 हजार वॉलंटियर्स, 1000 आपातकालीन कर्मी, टीवी पर विज्ञापन, तटीय इलाकों में लगे साइरन, बसें, पुलिस अधिकारी और सार्वजनिक घोषणा जैसे तमाम उपाय राज्य सरकार ने किए और यह काम भी कर गया।

शुक्रवार को ओडिशा के तटीय इलाकों से टकराया तूफान फोनी के दौरान 220 किमी/घंटा की रफ्तार से हवाएं चल रही थीं। बस, कार, क्रेन, पेड़ कुछ भी तूफान के आगे नहीं टिक पाया। तूफान के बाद तबाही के मंजर की तस्वीरें देखकर दिल दहल जाए, लेकिन जिस तरह की तबाही थी उस तरह की जनहानि नहीं हो पाई और यहीं ओडिशा ने दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की है।

तूफान से जो सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते थे, उन्हें समय रहते ही वहां से निकाल लिया गया। एक्सपर्ट की मानें तो यह एक अद्भुत उपलब्धि है। खासतौर पर भारत के लिए उस राज्य के लिए जिसकी गिनती पिछड़े राज्यों में होती है। पूर्व नौसेना अधिकारी और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के मैरिटाइम पॉलिसी इनिशिएटिव हेड अभिजीत सिंह ने कहा, 'बहुत ही कम लोगों ने सरकारी मशीनरी से इस तरह की गंभीरता की उम्मीद की थी। यह एक बहुत बड़ी सफलता है।'

ये हालात 20 साल पहले के इसी इलाके में आए चक्रवाती तूफान से बहुत अलग हैं। उस वक्त आए चक्रवाती तूफान ने हजारों लोगों की जान ले ली थी। कई लोग अपने घरों के मलबे में दबे मिले, कई लोगों की लाशें उनके घर से मीलों दूर मिलीं। इसके बाद से ओडिशा में कई छोटे-बड़े तूफान आए, मगर इस तरह की त्रासदी दोबारा नहीं हुई। फोनी जैसे भीषण तूफान में इतनी कम जनहानि ने तो नए आयाम स्थापित कर दिए हैं।

राज्य के विशेष राहत आयुक्त विष्णुपद सेठी ने कहा, 'हम इसको लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं कि तूफानों में एक भी आदमी की जान नहीं जानी चाहिए। यह एक दिन या एक महीने भर का काम नहीं है, बल्कि इसमें हमने पिछले 20 साल खपाए हैं।'

1999 में आए तूफान के बाद जो सबसे बड़ी चीज हुई, वह थी तूफान से बचने के लिए शेल्टरों का निर्माण। समुद्र तटीय इलाकों से कुछ किमी की दूरी पर बने ये शेल्टर तूफान के दौरान लोगों को बचाने का सबसे बड़ा जरिया होते हैं। ये देखने में आकर्षक नही लगते हैं। एक पुरानी सी दिखने वाली दो मंजिला इमारत यूं तो भले ही रहने लायक ना लगे, लेकिन आईआईटी खड़गपुर के विशेषज्ञों द्वारा डिजाइन की गई ये इमारतें चक्रवाती तूफानों को झेलने में सक्षम हैं।

फोनी तूफान आने से पहले ओडिशा में स्थानीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और एनडीआरएफ की टीमें सक्रिय हो गई थीं। एनडीआरएफ ने तूफान से निपटने की लिए 65 टीमें उतारी थीं, जो इसकी किसी क्षेत्र में अभी तक की सबसे बड़ी तैनाती है। एक टीम में 45 लोग शामिल थे। पिछले तीन दिनों में ओडिशा, आंध्र प्रदेश और सड़कें दुरुस्त करने, कानून-व्यवस्था और भोजन की व्यवस्था के लिए अतिरिक्त टीमें लगाई गईं। फोनी से निपटने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी थी। पुरी के गोपालपुर में सेना की तीन टुकड़ियां स्टैंडबाय पर थीं और पनागर में इंजिनियरिंग टास्क फोर्स थी। नौसेना ने राहत कार्यों के लिए 6 जहाजों को तैनात किया, जबकि मेडिकल और डाइविंग टीम अलर्ट पर थीं। इसके अलावा भारतीय वायुसेना ने दो सी -17, दो सी-130 और चार एएन-32 को स्टैंडबाय पर रखा था।

फोनी के पहले भारत में आए चक्रवाती तूफानों में सैकड़ों की मौतें हुई थीं। 1988 में 04B नाम के बेहद खतरनाक चक्रवाती तूफान ने 29 नवंबर को पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सीमा पर टकराया था। इस तूफान में 6,240 लोगों की मौत हो गई थी। 1990 में आंध्र प्रदेश में सुपर साइक्लोन 9 मई को तट से टकराया था। इसमें 967 लोगों की मौत हो गई थी। 4 दिसंबर 1993 में पुड्डुचेरी के तट से BOB 02 तूफान टकराया था इसमें 70 लोगों की मौत हो गई थी। 2000 में 29 नंवबर को BOB 05 नामक बेहद खतरनाक तूफान ने तमिलनाडु के तट पर दस्तक दिया था। इस तूफान में 12 लोग मारे गए थे। 2013 में 12 अक्टूबर को फालिन नाम तूफान ने दस्तक दी थी। इसमें 30 लोगों की मौत हो गई थी। 2014 में अक्टूबर में आए बेहद खतरनाक तूफान हुदहुद ने विशाखापत्तनम को पार किया था। हालांकि बेहतर तैयारियों के कारण इस तूफान में भी किसी की जान नहीं गई थी।