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डिप्लोमैट्स का मानना है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के जवाब में तेहरान द्वारा अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने के बावजूद यूरोपीय संघ (EU) ईरान परमाणु संधि का बचाव करेगा। हालांकि यूरोपीय ताकतों को उम्मीद है कि चीन या भारत को ईरानी तेल बेचने के करार के बिना यह संधि खत्म हो जाएगी।

ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने अमेरिका, चीन और रूस के साथ 2015 मसौदे पर हस्ताक्षर किए थे और वह यह दिखाने के लिए दृढ़संकल्प हैं कि वे पिछले साल संधि से अमेरिका के निकलने के बावजूद हर्जाना दे सकते हैं, ट्रेड को बचा सकते हैं और अब भी तेहरान को परमाणु बम बनाने से रोक सकते हैं।

हालांकि यूएस डॉलर में कारोबार करने वाली ईरान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह क्रूड एक्सपोर्ट्स पर निर्भर है। अमेरिकी प्रतिबंधों को बायपास करने वाले यूरोपीय ट्रेड चैनल जटिल साबित हुए हैं, लेकिन यह अब भी ऑपरेशनल नहीं हैं और शायद कभी भी ऑइल की बिक्री को हैंडल करने में सक्षम न हों।

एक सीनियर यूरोपीय डिप्लोमैट ने कहा, 'यह स्थिति अब जोखिम भरी है, लेकिन यह स्टेप बाय स्टेप आगे बढ़ेगी और एक बार में ही नहीं ढहेगी।' एक फ्रेंच डिप्लोमैट ने 'नकारात्मक स्पाइरल' की बात की जिसमें फूड और दवाइयों का ट्रेड ही पर्याप्त नहीं था, हालांकि एक और यूरोपीय प्रतिनिधि ने भी ईरान के डील से एग्जिट करने पर बात की।

मई, 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा पॉलिसी से बाहर होने और ईरान पर यूएस प्रतिबंध लगाने तक ईरान संधि, पश्चिम की सबसे बड़ी विदेशी नीति उपलब्धियों में से एक थी।

ईरान ने अपनी शर्तों को पूरा किया है लेकिन ट्रंप ने परमाणु समझौता इसलिए तोड़ दिया क्योंकि उनका मानना है कि वह तेहरान को बलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम या फिर सीरिया में चल रहे सिविल वॉर में ईरान का इन्वॉल्वमेंट नहीं रोक सकते।

ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लगाने के साथ अमेरिका का कहना है कि इसका उद्देश्य ईरान के क्लेरिकल शासकों को कमजोर करना और तेहरान पर एक बड़े हथियार नियंत्रण करार के लिए दोबारा दबाव बनाना है।

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरReuters

यूरोपीय संघ का कहना है कि परमाणु समझौता तोड़े बिना भी ऐसा किया जा सकता है। ईरानी प्रेजिडेंट हसन रूहानी ने बुधवार को चेतावनी दी थी कि अगर यूरोपीय ताकतें, चीन और रूस ट्रेड को बढ़ावा देने के लिए बैंकिंग और एनर्जी पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने के लिए कुछ नहीं करती हैं तो तेहरान एक बार फिर बड़े स्तर पर संवर्धन शुरू कर सकता है।

यूरोपीय डिप्लोमैट्स और अधिकारियों ने किसी भी तरह के अल्टीमेटम से इनकार कर दिया और कुछ का मानना है कि उनके पास परमाणु समझौते को बचाने के लिए अब भी कुछ समय है। यूरोपीय संघ के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि अभी ईरान के गैर-अनुपालन की स्थिति में यूरोपीय प्रतिबंधों के बारे में कहना जल्दबाजी होगा। ईयू के अधिकारी ने कहा, 'ईरान की घोषणा कोई उल्लंघन या फिर परमाणु समझौते को तोड़ना नहीं है। यह इंटरनैशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी है जो ईरान के अनुपालन को असेस करेगी... अगर ईरान समझौते का उल्लंघन करता है, तब हम प्रतिक्रिया करेंगे।' दूसरों का रवैया इसे लेकर निराशावादी है।

कभी यूरोप के सबसे बड़े सप्लायर रहे ईरान ने प्रतिबंधों के बाद यूरोपीय खरीदारों से निर्यात में कमी को झेला है। इसकी शुरुआत पिछले साल नवंबर में हुई थी और 2 मई को वॉशिंगटन ने इटली और ग्रीस के लिए प्रतिबंधों में छूट खत्म कर दी। चीन, भारत और तुर्की भी उन देशों में शामिल है जिनके लिए हाल में ही इस छूट को खत्म किया गया।

यूरोपीय संघ के अधिकारियों का अनुमान है कि ईरान को अपनी अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चालू रखने के लिए हर दिन 1.5 मिलियन बैरल तेल बेचने की जरूरत है, लेकिन अब यह आंकड़ा 1 मिलियन प्रति दिन पर आ गया है और ईरानियों के लिए यह मुश्किल और संभावित आर्थिक संकट के संकेत हैं।

यूरोपीय संघ के स्पेशल ट्रेड चैनल को Instex (इंस्टेक्स) के नाम से जाना जाता है। इसे रूस ने यूरोपीय सामान के बदले ईरानी तेल लेने के लिए एक वस्तु-विनिमय सिस्टम के तौर पर पेश किया था, लेकिन यह जून के आखिर से पहले चालू नहीं हो सकता और इसकी क्षमता भी सीमित है।

एक दूसरे यूरोपीय डिप्लोमैट ने कहा, 'इंस्टेक्स कोई हल नहीं है क्योंकि यह सिर्फ खाना और दवाइयों की जरूरत पूरी करेगा न कि तेल की। बहरहाल, अभी यह ढांचा पूरा नहीं हुआ है।'

एक जर्मन बैंकर के नेतृत्व वाला इंस्टेक्स मिरर कंपनी बनाने के लिए ईरान पर निर्भर है जिसे इंटरनैशनल ऐंटी-फ्रॉड जरूरतों पर खरा उतरना पड़ेगा। अधिकारियों और डिप्लोमैट्स का कहना है कि प्रगति धीमी हो रही है।

ड्राफ्ट कानून अभी भी पेंडिंग हैं, जबकि ईरान के वित्तीय सिस्टम में पारदर्शिता की कमी भी एक समस्या है। इसके अलावा ईरान रिवॉलूशनरी गार्ड (IRGC)(जो ईरान की अर्थव्यवस्था को नियंत्रण करते हैं) पर अमेरिकी प्रतिबंध का फैसला भी एक दूसरी जटिलता है।

यूरोपीय डिप्लोमैट ने कहा, 'ईरान के एक पार्टनर के तौर पर जो इंस्टेक्स इस्तेमाल करते हैं उन्हें बहुत ज्यादा पारदर्शी होना पड़ेगा ताकि ऑपरेशन के आखिर में यह IRGC जैसी संस्थाओं को फायदा न पहुंचाए।' ईरानी तेल खरीदने के लिए यूरोप का प्लान B चीन या भारत हैं।

अप्रैल में ज्यादा ईरानी क्रूड ऑइल खरीदने वाले चीन का कहना है कि वह ईरान के खिलाफ लगे एकतरफा अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ है और वह इसकी कंपनियों के अधिकारों की रक्षा करेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि ईरान डील पूरी और प्रभावी तरीके से लागू होनी चाहिए, चाहे यह स्पष्ट हो कि चीन इसका समर्थन करेगा या नहीं।

भारत, चीन के बाद ईरान का सबसे बड़ा तेल खरीदार है। नवंबर के बाद भारत ने ईरान से खूब तेल खरीदा। अभी तक भारत के अधिकारियों ने कहा है कि वह दूसरे ऑइल सप्लायर्स से तेल खरीदेने के बारे में सोचेंगे।

यूरोपीय संघ के अधिकारियों का कहना है कि भारत ने ईरान का तेल खरीदने के लिए इंस्टेक्स जॉइन करने में रूचि दिखाई है, लेकिन अभी इस बारे में कोई बातचीत शुरू नहीं हुई है और अभी इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।

मिडिल ईस्ट नॉर्थ अफ्रीका प्रोग्राम में एक सीनियर रिसर्च फैलो सनम वकील ने कहा, 'चीन और भारत को शामिल करने की कोशिश दिखाती है कि यूरोप कितना लाचार है। मैं इस बारे में निश्चित नहीं हूं कि यूरोपीय इस बारे में कितना बड़ा सोच रहे हैं। यह बिल्कुल साफ है कि उनके पास कोई अर्थपूर्ण विकल्प नहीं है जो वह ईरान को ऑफर कर सकें।'

यूरोपीय संघ के 3 अधिकारियों ने कहा कि ईयू फॉरेन पॉलिसी की चीफ फेडरिका मॉगेरिनी ने अप्रैल में ब्रसेल्स में चीनी स्टेट काउंसलर वैंग ई से चीन-ईयू समिट के बारे में बात की थी और इस बारे में बात की थी कि चीन ईरानी तेल खरीद सकता है या नहीं।

चीन अभी भी तेल खरीद सकता है लेकिन इसके लिए यूएस प्रतिबंधों को तोड़ना होगा। पेइचिंग ने इस मुद्दे पर वॉशिंगटन के साथ भी बात की है। अधिकारियों ने कहा कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस बारे में कोई बात आगे बढ़ी है या नहीं।