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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मंगलवार को एक केस की सुनवाई के दौरान कहा कि न्यायधिकरण में आने वाले करीब 50 फ़ीसदी मामले ब्लैकमेलरों द्वारा फाइल किए जा रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण के नाम पर जितनी भी अर्जी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में लगाई जा रही हैं, उनमें से आधी ऐसे लोगों की हैं जो कोर्ट में केस लगा कर बाहर समझौते के नाम पर लोगों को ब्लैकमेल करते हैं.

जस्टिस एके गोयल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि पहले संस्था इस तरह के मामलों में नोटिस भेजा करती थे, लेकिन अब वह इन्हें खारिज कर रही है. एनजीटी ने कहा कि अब पर्यावरण और पारिस्थितिकी से संबंधित मामलों की ही सुनवाई की जाएगी.

एनजीटी ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश के मथुरा में बन रहे इस्कॉन मंदिर के निर्माण पर सवाल उठाती एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की. इस याचिका में कहा गया था कि प्रस्तावित इमारत यमुना नदी के किनारे स्थित होने से पर्यावरण को नुकसान होगा. लेकिन एनजीटी ने पाया कि इस्कॉन ने इस संबंध में जरूरी अनुमतियां हासिल कर ली हैं. इसके बाद उसने याचिकाकर्ता से कहा कि उसे अगर कोई आपत्ति है तो वह संबंधित स्थानीय संस्थाओं के पास शिकायत करे.

दरअसल, इस मामले में इस्कॉन की तरफ से पेश वकील ने कोर्ट को कहा कि ज्यादातर याचिकाएं उन लोगों की तरफ से लगाई जा रही है. जो कोर्ट में अर्जी लगाने के बाद पक्षकारों को ब्लैकमेल करते हैं.

कोर्ट ने इस पर अपनी सहमति जताते हुए कहा, 'हमें पता है कि यहां लगने वाली करीब 50 फ़ीसदी याचिकाएं ब्लैकमेल के लिए हैं. कोर्ट ने कहा कि इसीलिए अब हम सभी याचिकाओं पर नोटिस नहीं करते हैं. बल्कि जिन याचिकाओं में हमें पर्यावरण से जुड़ी गंभीर समस्याएं नजर आती हैं हम उन्हीं पर आगे सुनवाई करते हैं.'

एनजीटी पिछले 3 हफ्तों के दौरान करीब 80 याचिकाओं का निपटारा कर चुका है. ज्यादातर याचिकाओं को इन निर्देशों के साथ निपटा दिया गया है कि संबंधित विभागों और सरकारों को निर्देश दिया गया जाता है कि वह समस्या के निपटारे के लिए काम करें. उस पर अपनी पैनी नजर रखें. हालांकि कोर्ट ने मंदिर से जुड़े इस मामले को आगे भी सुनने के लिए अगले महीने के लिए तारीख दे दी है.