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लंदन से प्रकाशित होने वाली मशहूर साप्ताहिक अंग्रेजी पत्रिका 'द इकोनॉमिस्ट' के ताजा अंक में मोदी सरकार की नीतियों को लेकर आलोचनात्मक टिप्पणी करते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा गया है और कहा गया है कि वो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को खतरे में डाल रहे हैं।

25-31 जनवरी के लिए लॉन्च किये गए पत्रिका के ताजा संस्करण के कवर पेज पर कंटीली तारों के बीच बीजेपी का चुनाव चिन्ह 'कमल का फूल' नजर आ रहा है। इसके ऊपर शीर्षक लिखा है, 'असहिष्णु भारत। कैसे मोदी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को जोखिम में डाल रहे हैं।'

'द इकोनॉमिस्ट' ने गुरुवार को कवर पेज ट्वीट करते हुए लिखा, 'कैसे भारत के प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को खतरे में डाल रहे हैं।'

'द इकोनॉमिस्ट' मैगजीन में मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना के लिए तीन शीर्षक से आर्टिकल छापे गए हैं। पहला मुद्दा, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को मोदी सरकार कैसे संभाल रही है, दूसरा, सुधार लाने में असमर्थ सरकार और तीसरा, आर्थिक मंदी पर आधारित है।

इस एडिशन का सबसे लंबा आर्टिकल 'लीडर' अधिक घातक और चर्चा वाला है। इसमें लिखा है, "भारत के 20 करोड़ मुस्लिम डरे हुए हैं क्योंकि प्रधानमंत्री हिंदू राष्ट्र के निर्माण में जुटे हैं।" इस आर्टिकल में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को उस स्कीम के तौर पर दिखाया गया है जो लोगों को भड़काने के लिए बीजेपी की पिछले एक दशक की सबसे महत्त्वाकांक्षी कदम है, जिसकी शुरुआत 80 के दशक में राम मंदिर के लिए आंदोलन के साथ हुई थी।

इकोनोमिस्ट में चर्चा की गई है, 'बीजेपी के लिए जो चुनावी अमृत है वो भारत के लिए एक राजनीतिक ज़हर है। भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना की अनदेखी करते हुए मिस्टर मोदी ने भारत का जो नुकसान किया है वो दशकों तक चलने वाला अंतहीन मुद्दा है।'

इकोनोमिस्ट ने आगे लिखा, "मोदी ने मुस्लिम समुदाय के उन लोगों का भी 'हिसाब-किताब' लगाया है जो अल्पसंख्यकों के लिए बीजेपी के स्टैंड से सहानुभूति रखते हैं, और 'यह कारण' उन लोगों को बीजेपी ऑफिस में जगह देने के लिए काफी है।"

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरReuters

'द इकोनोमिस्ट' ने अर्थव्यवस्था पर लिखे लेख में रेलवे टिकट, मोबाइल टैरिफ और खाने के आइटम्स में महंगाई का हवाला देते हुए भारत को गंभीर अर्थव्यवस्था की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि देश में बढ़ती महंगाई, अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों को विफल कर रहा है। मैगजीन में आने वाले बजट को लेकर कई लुभावने घोषणा का अनुमान भी लगाया गया है।

वहीं तीसरा आर्टिकल जिसका शीर्षक 'भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र को नष्ट करने वाला नरेंद्र मोदी का संप्रदायवाद' है। इस आर्टिकल में मोदी के राजनीतिक रणनीति पर चर्चा की गई है। इसमें चर्चा इस बात पर है कि 2019 लोकसभा चुनाव के बाद कैसे मोदी सरकार ने 'हिंदुत्व सोशल एजेंडा' आगे बढ़ाने के लिए कैसे दोनों हाथ खोल दिए हैं।

15 अगस्त, 2018 को नई दिल्ली में 72 वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
15 अगस्त, 2018 को नई दिल्ली में 72 वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।IANS

लेख के मुताबिक, मोदी सरकार पर देश के संविधान के साथ खिलवाड़ करने का भी आरोप लगाया गया है। ये भी कहा गया है कि मोदी सरकार देश के संविधान के सिद्धांतों को कमजोर कर रही है और इसका असर दशकों तक देश पर देखने को मिलेगा है। द इकोनॉमिस्ट का कहना है कि सरकार के इस तरह के कदम से देश में हिंसा भी भड़क सकती है लेकिन धर्म और राष्ट्रीय पहचान के आधार पर अलगाव पैदा करने से बीजेपी सरकार को फायदा मिल सकता है।

द इकोनॉमिस्ट के लेख में आरोप लगाया गया है कि लोगों के मनों में डर और खौफ बैठकर मोदी सरकार सत्ता में बने रहना चाहती है। वहीं महात्मा गांधी के सिंद्धातों का जिक्र करते हुए लेख में लिखा गया है कि पीएम मोदी गांधी जी के सिद्धातों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।

बताते चलें कि 'द इकोनॉमिस्ट' ग्रुप की इकोनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट ने ही इसी हफ्ते 'ग्लोबल डेमोक्रेसी इंडेक्स' की लिस्ट जारी की थी। इस लिस्ट में भारत 10 स्थान गिरकर 51वीं पोजिशन पर आ गया है। सूची के मुताबिक, 2018 में भारत के अंक 7.23 थे, जो 2019 में घटकर 6.90 रह गए हैं।

(विभिन्न वायर्स के इनपुट के साथ)