उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालयREUTERS/Anindito Mukherjee

दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी को सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बड़ा झटका देते हुए साफतौर पर कहा कि दिल्ली की स्थिति अलग है और ऐसे में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा मुमकिन नहीं है. उपराज्यपाल वहीं पर स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं, जहां उन्हें संविधान ये अधिकार देता है.

इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि एलजी दिल्ली सरकार के हर फैसले को अटका नहीं सकते और न ही वे हर फैसला राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं. साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी जोड़ा है कि नौ न्यायाधीशों के पुराने फैसले को देखते हुए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देना संभव नहीं है.

इससे पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार मिल-जुलकर काम करें और केंद्र और राज्य के बीच संबंध बेहतर होने चाहियें. साथ ही यह भी कहा कि संविधान का पालन करना सबकी जिम्मेदारी है. वहीं, संविधान पीठ के एक अन्य जज चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनी हुई सरकार की जवाबदेही ज्यादा है.

इस फैसले के आने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करते हुए इसे दिल्ली के साथ लोकतंत्र की भी बड़ी जीत बताया.

दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच विवाद जगजाहिर है. हर मामले में दिल्ली सरकार उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार पर हमला करती रही है.

अरविंद केजरीवाल
अरविंद केजरीवालTwitter/Aam Aadmi Party official handle

हाईकोर्ट ने अगस्त 2016 में दिए अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया था कि दिल्ली देश की राजधानी है और केंद्र शासित होने के चलते उपराज्यपाल ही दिल्ली के बॉस हैं और सभी मामलों में उनकी अनुमति जरूरी है. इस फैसले के बाद अधिकांश मामले में दिल्ली सरकार के पर कट गए और उपराज्यपाल व दिल्ली सरकार के बीच विवाद बढ़ता गया.

दिल्ली सरकार ने फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी और सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने विस्तृत सुनवाई के बाद 6 दिसंबर 2017 को फैसला सुरक्षित रख लिया था.

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एमएम खानविल्कर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से पेश दिग्गज वकीलों की चार सप्ताह तक दलीलें सुनने के बाद गत छह दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम, पी. चिदंबरम, राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह और शेखर नाफड़े ने बहस की थी जबकि केन्द्र सरकार का पक्ष एडीशनल सालिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने रखा था.