दारुल उलूम देवबंद ने कहा है कि मुसलमानों को अपनी कार्यस्थलों और घरों पर सीसीटीवी कैमरे नहीं इस्तेमाल करने चाहियें क्योंकि ये ''गैर-इस्लामिक'' हैं.
दारुल उलूम देवबंद ने कहा है कि मुसलमानों को अपनी कार्यस्थलों और घरों पर सीसीटीवी कैमरे नहीं इस्तेमाल करने चाहियें क्योंकि ये ''गैर-इस्लामिक'' हैं.रायटर्स

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद में स्थित इस्लामिक स्कूल दारुल उलूम समय-समय पर विभिन्न कारणों से सुर्खियों में बना रहता है और उसके द्वारा दिये जाने वाले फतवे उसका एक बड़ा कारण होते हैं. यह इस्लामी मकतब एक बार फिर अपने एक फतवे के चलते खबरों की सुर्खियों में है जिसमें कहा गया है कि मुसलमानों को अपनी कार्यस्थलों और घरों पर सीसीटीवी कैमरे नहीं इस्तेमाल करने चाहियें क्योंकि ये ''गैर-इस्लामिक'' हैं.

महाराष्ट्र के एक व्यवसाई अब्दुल्ला मजीद द्वारा मकतब से पूछा गया था कि क्या दुकानो और भीड़भाड़ वाले अन्य स्थानों पर सीसीटीवी लगाने की अनुमति है या नहीं, जिसके जवाब में कहा गया है कि ऐसा करना इस्लाम में हराम है.

टाईम्स आॅफ इंडिया के अनुसार इसके अलावा मकतब के फतवा विभाग ने जवाब में जोड़ा, ''अपने घर या कार्यक्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के और भी कई दूसरे तरीके हैं. शरीयत में तस्वीर खींचने को हराम माना गया है. ऐसे में सीसीटीवी भी पूरी तरह से गैर-इस्लामिक हैं.''

इसके अलावा दुरुल उलूम देवबंद पहले यह भी कह चुका है कि मुसलमानों को खुद या फिर अपने रिश्तेदारों की तस्वीरों को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर साझा नहीं करना चाहिये क्योंकि ऐसा करना धर्म के खिलाफ है.

आश्चर्यजनक बात यह है कि इस मकतब के खुद कई सोशल मीडिया पेज बने हुए है और लोग अपनी पोस्ट्स को उनके साथ साझा भी करते हैं जिनमें अधिकांश सेल्फी ही होती हैं.

दारुल उलूम देवबंद द्वारा पूर्व में भी कई बार ऐसे फतवे जारी किये गए हैं जिनके चलते कई लोगों की भृकुटियां तन गई हैं. अब जब भौहों की बात चली है तो याद दिला दें कि अक्टूबर 2017 में इन्होंने फतवा दिया था कि इस्लाम में महिलाओं के लिये भौहों को खींचना, बनवाना या ट्रिम करवाना हराम है और इन्होंने ऐसा करने पर पाबंदी लगा दी थी.

इतना ही नहीं इनका तो यह भी कहना था कि महिलाओं को अपना बाल भी नहीं कटवाने चाहियें और यहां तक कि उन्हें ब्यूटी पार्लर्स से दूर रहने की सलाह भी दी थी. मकतब के फतवा जारी करने वाले संकाय दारुल इफ्ता ने सहारनपुर के रहने वाले एक मुसलमान व्यक्ति द्वारा पूछे गए इस्लामी कानून में महिलाओं को भौहों को बनवाने या बाल काटने की आजादी संबंधित सवाल के जवाब में यह फतवा जारी किया था.

डीएनए ने दारुल इफ्ता के प्रमुख मौलाना एन सादिक कासमी के हवाले से लिखा था, ''मुस्लिम महिलाओं को ब्यूटी पार्लर्स से दूर रहना चाहिये क्योंकि इस्लाम उन्हें अन्य पुरुषों को आकर्षित करने के लिये श्रृंगार करने की इजाजत नहीं देता है. जैसे इस्लाम में मुसमान पुरुषों के लिये दाढ़ी बनवाना हराम माना गया है वैसे ही भौहें बनवाना, बाल कटवाना और लिपिस्टिक इत्यादि लगाने जैसे श्रृंगार करना भी मना है.''

इससे पूर्व 2018 के प्रारंभ में दारुल उलूम देवबंद ने फतवा तारी करते हुए मुसलमान महिलाओ और पुरुषों से गुजारिश की थी कि वे बैंक में नौकरी करने वालों से निकाह न करें क्योंकि ब्याज से कामया हुआ पैसा इस्लाम में हराम माना गया है. मकतब का कहना था, ''ऐसे परिवार में निकाह करना बेहतर नहीं है.''

इसके अलाव देवबंद के उलेमाओं ने महिलाओं को डिजाइनर और शारीरिक बनावट का प्रदर्शन करने वाले बुर्के को भी हराम बताते हुए उन्हें पहनने से भी मना किया था.

मकतब के बयान में कहा गया था, ''पर्दा और बुर्का महिलाओं को घूरती नजरों से बचाने के लिये हैं. ऐसे में डिजाइनर बुर्के को पहनना या फिर बिल्कुल टाइट बुर्का पहनने की इस्लाम में बिल्कुल भी इजाजत नहीं है''

हालांकि दारुल उलूम देवबंद ही फतवा जारी करने वाला इकलौता मकतब नहीं है. जनवरी 2018 में हैदराबाद के एक इस्लामी मकतब ने यह कहते हुए सनसनी फैला दी थी कि मुसलमानों को झींगा नहीं खाना चाहिये. यह फतवा एक समख्यात विश्वविद्यालय, जामिया निजामिया के प्रमुख मुफ्ती मोहम्मद अजीमुद्दीन द्वारा जारी किया गया था.

फतवे के अनुसार झींगा मछली नहीं है बल्कि यह संधिपाद के रूप में वर्गीकृत है. इसी वजह से मुफ्ती ने इसे ''मकरूह तहरीम'' (बेहद घृणित) कहते हुए मुसलमानों से इसका उपभोग न करने की अपील की.

हालांकि विभिन्न धार्मिक विद्वानों ने इस फतवे का विरोध किया जिन्होंने कहा कि झींगा वास्तव में हलाल माना गया है.