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ANI

जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों पर कार्रवाई के संकेतों के बीच शुक्रवार रात जेकेएलएफ (जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) प्रमुख यासीन मलिक को हिरासत में ले लिया गया। अधिकारियों ने बताया कि पुलिस एवं अर्द्धसैनिक बलों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। हालांकि अभी किसी और के हिरासत में लिये जाने की पुष्टि नहीं की गई है।

बताया जा रहा है कि अनुच्छेद 35-ए पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होनी है। ऐसे में सुरक्षाबलों ने एहतियात के तौर पर यह कार्रवाई की है। पुलवामा जिले में सीआरपीएफ के काफिले पर भीषण आतंकवादी हमले के आठ दिन बाद यह कार्रवाई सामने आई है। इस हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे।

सरकार ने वापस ले ली थी यासीन की सुरक्षा
इससे पहले जम्मू-कश्मीर सरकार ने पुलवामा हमले के बाद सख्त कदम उठाते हुए घाटी के 18 हुर्रियत नेताओं और 160 राजनीतिज्ञों को दी गई सुरक्षा वापस ले ली थी। इनमें एसएएस गिलानी, अगा सैयद मौसवी, मौलवी अब्बास अंसारी, यासीन मलिक, सलीम गिलानी, शाहिद उल इस्लाम, जफर अकबर भट, नईम अहमद खान, फारुख अहमद किचलू, मसरूर अब्बास अंसारी, अगा सैयद अब्दुल हुसैन, अब्दुल गनी शाह, मोहम्मद मुसादिक भट और मुख्तार अहमद वजा शामिल थे। इन अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में सौ से ज्यादा गाड़ियां लगी थीं। इसके अलावा 1000 पुलिसकर्मी इन नेताओं की सुरक्षा में लगे थे।

उमर अब्दुल्ला ने सुरक्षा वापसी को बताया था 'घटिया कदम'
अलगाववादियों की सुरक्षा वापस लेने को 'घटिया' कदम करार देते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि इससे राज्य में राजनैतिक गतिविधियों पर असर पड़ेगा। अब्दुल्ला ने यह भी कहा था कि मुख्यधारा के राजनीतिक कार्यकर्ताओं एवं कार्यालय पदाधिकारियों से सुरक्षा वापस लेना एक घटिया कदम है। उन्होंने राज्यपाल से इस फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था। साथ ही चेतावनी भी दी थी कि वह इस मामले में कोर्ट भी जा सकते हैं। वहीं सुरक्षा वापसी को अलगाववादी नेताओं ने हास्यास्पद करार दिया था। उन्होंने कहा कि उन्हें सरकार की ओर से कोई सुरक्षा नहीं मिली थी।

यासीन मलिक ने इस बाबत कहा था कि पिछले 30 साल से उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिली है। ऐसे में जब सुरक्षा मिली ही नहीं तो वे किस वापसी की बात कर रहे हैं। यह सरकार की तरफ से बिल्कुल बेईमानी है। वहीं गिलानी ने भी इस खबर को हास्यास्पद बताया था।