12 वर्ष पुराने इस मामले में कई उच्च प्रोफ़ाइल अधिकारी, राजनेता, नौकरशाह और यहां तक कि कुछ आतंकवादी भी शामिल थे. (सांकेतिक तस्वीर)
12 वर्ष पुराने इस मामले में कई उच्च प्रोफ़ाइल अधिकारी, राजनेता, नौकरशाह और यहां तक कि कुछ आतंकवादी भी शामिल थे. (सांकेतिक तस्वीर)Flickr

12 वर्ष पुराने मामले को उसके अंजाम तक पहुंचाते हुए सीबीआई अदालत ने बुधवार, 30 मई को 2006 के बहुचर्चित जम्मू-कश्मीर सेक्स स्कैंडल मामले में अपना फैसला सुनाते हुए पूर्व डीआईजी और डीएसपी सहित पांच लोगों को दोषी करार दिया है. इन सभी को सजा का ऐलान 4 जून को किया जाएगा.

सीबीआई अदालत द्वारा दोषी पाए गए लोगों में पूर्व पुलिस अधीक्षक मोहम्मद अशरफ मीर और बीएसएफ के पूर्व डीआईजी केसी पांधी और तीन स्थानीय निवासी - शब्बीर अहमद, मसूद अहमद और सबीर अहमद लहंगू शामिल हैं.

ट्रिब्यून की खबर के मुताबिक, दो अन्य आरोपियों, मेहराजुद्दीन मलिक और अनिल सेठी को अदालत द्वारा ''संदेह का लाभ'' देते हुए बरी कर दिया गया क्योंकि पीड़ि़तों ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया था और अभियोजन भी उनके खिलाफ अपने आरोप साबित करने में असफल रहा.

2006 का यह मामला था क्या?
उत्तर भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर को हिला देने वाला 12 वर्ष पुराने इस मामले में कई उच्च पदों पर बैठे अधिकारी, राजनेता, नौकरशाह और यहां तक कि आतंकवादियों पर भी नाबालिगों के यौन उत्पीड़न करने और उन्हें देह व्यापार में धकेलने के आरोप लगे थे. बताया जाता है कि इस काम के लिये इन नाबालिगों को 250 से 500 रुपये तक दिये जाते थे.

यह मामला नाबालिगों के यौन उत्पीड़न को प्रदर्शित करने वाली दो वीडियो के सार्वजनिक होने के चलते हुआ. बाद में पुलिस द्वारा इस मामले में आरोपपत्र दायर किया गया जिसमें श्रीनगर में वेश्यावृत्ति के काम मे शामिल सबीना को मुख्य आरोपी बनाया गया. जांच के दौरान सबीना और दोनों नाबालिगों ने कुल 56 लोगों के नाम लिये.

इस मामले के जांच के दौरान राज्य के उस समय के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का नाम भी उछला था जिसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी. हालांकि राज्यपाल ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया था.

मुकदमे की सुनवाई
इस मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य आरोपी सबीना और उसके पति अब्दुल हामिद बुल्ला की मौत हो गई.

इस मामले में नाबालिगों के शामिल होने के चलते इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए सीबीआई ने गोपनीयता को बनाते हुए पीड़ितों की सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा. पूरी सुनवाई आॅन-कैमरा हुई और पहचान न खुलने पाए इसलिये सीबीआई ने कई मौकों पर कोड शब्दों का भी प्रयोग किया. हालांकि बचे हुए तीन लोग बाद में पक्षद्रोही हो गए और चैथे को सुरक्षात्मक हिरासत में रखा गया.

टाईम्स आॅफ इंडिया के अनुसार, सुनवाई के दौरान, बचाव पक्ष द्वारा यह तर्क दिया गया कि इन नामजद लोगों में से कोइ भी इस मामले में शामिल नहीं है और इन्हें सिर्फ राज्य का जाना-माना नाम होने के चलते जानबूझकर फंसाया जा रहा है. उन्होंने यहां तक कहा कि विपक्ष ने उनके खिलाफ मामला सिर्फ इसलिये बनाया है क्योंकि वे राज्य में लोकतंत्र को पनपते नहीं देख सकते और अपनी तानाशाही को जारी रखना चाहते हैं.

हालांकि सीबीआई के अभियोजक ने कहा कि आरोपियों का उत्पीड़न नहीं किया गया है और वे राज्य का चेहरा भी नहीं हैं. और यहां तक कि अगर वे होते तो भी ''हमें भारत के लिये ऐसे चेहरे की कोई आवश्यकता नहीं है.''