देवेन्द्र फडणवीस
देवेन्द्र फडणवीसIANS

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से ठीक पहने मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को मंगलवार को उस समय झटका लगा जब उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 2014 के चुनाव में दो लंबित आपराधिक मामलों की हलफनामे पर जानकारी नहीं देने के कारण दायर शिकायत पर अदालत नये सिरे से विचार करे। हालांकि, शीर्ष अदालत का यह निर्णय देवेन्द्र फडणवीस के विधान सभा चुनाव लड़ने में बाधक नहीं बनेगा।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने इस मामले में देवेन्द्र फडणवीस को क्लीन चिट देने संबंधी बंबई उच्च न्यायालय का तीन मई, 2018 का फैसला निरस्त कर दिया। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि इस कथित अपराध के लिये भाजपा नेता पर जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत मुकदमा चलाने की जरूरत नहीं है।

पीठ ने फडणवीस के खिलाफ दायर शिकायत में किये गये इस दावे का संज्ञान लिया कि उन्हें ''अपने खिलाफ लंबित दो मामलों की जानकारी थी'' जिनका उल्लेख उन्होंने नामांकन पत्रों के साथ दायर हलफनामे में नहीं किया था।

पीठ ने कहा, ''हम नि:संकोच इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि निचली अदालत का आदेश, जिसे उच्च न्यायालय ने तीन मई, 2018 के फैसले में बरकरार रखा है, कानूनी दृष्टि से टिकाऊ नही है और इसे निरस्त किया जाना चाहिए जो हम कर रहे हैं।''

शीर्ष अदालत ने अधिवक्ता सतीश उकी की अपील पर यह फैसला सुनाया। सतीश ने ही सात सितंबर, 2015 को नागपुर में मजिस्ट्रेट की अदालत में फडणवीस के खिलाफ आपराधिक शिकायत दायर करके जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 125ए के तहत मामला दर्ज करने का अनुरोध किया था। लेकिन मजिस्ट्रेट की अदालत ने इसे खारिज कर दिया था।

पीठ ने अपने 28 पेज के फैसले में कहा कि अपीलकर्ता (उकी) की शिकायत पर निचली अदालत उस स्थान से आगे सुनवाई करेगी जिसके आधार पर उसने 30 मई, 2016 का आदेश दिया था।

जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 125ए 'गलत हलफनामा' दाखिल करने की सजा के बारे में है और इसमें कहा गया है कि अगर कोई प्रत्याशी या उसका प्रस्तावक किसी लंबित आपराधिक मामले के बारे में नामांकन पत्र में कोई भी जानकारी उपलब्ध कराने में विफल रहता है या इसे छुपाता है या गलत जानकारी देता है तो ऐेसे व्यक्ति को छह महीने तक की कैद या जुर्माना या दोनों ही सजा हो सकती है।

उकी ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि फडणवीस ने जानकारी होने के बावजूद इन लंबित आपराधिक मामलों का उल्लेख अपने हलफनामे में नहीं किया था। ये दोनों आपराधिक मामले कथित कपट और जालसाजी के हैं जो फड़णवीस के खिलाफ 1996 और 1998 में दायर हुये थे लेकिन इनमे अभी तक आरोप निर्धारित नहीं किये गये थे।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।