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भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने सोमवार को लोकसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में सियाचिन और लद्दाख जैसे दुर्गम स्थानों में तैनात भारतीय सैनिकों के लिए उचित भोजन और गियर की कमी पर प्रकाश डाला। कैग ऑडिट में पता चला कि इन क्षेत्रों में तैनात सैनिकों को पुराने और रीसायकल किये हुए बर्फीले इलाकों में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों का उपयोग करने के लिए मजबूर किया गया था, जिसमें बर्फ के चश्मे और जूते भी शामिल थे।

रिपोर्ट में कैग ने खामियों की ओर इशारा करते हुए कहा है कि जवानों को चार सालों तक बर्फीले स्थानों पर पहने जाने वाले कपड़ों और दूसरे सामानों की तंगी झेलनी पड़ी है। आगे कहा गया है कि बर्फीले इलाके में तैनात सैनिकों को स्नो बूट न मिल पाने की वजह से सैनिकों को पुराने जूते रिसाइकल कर पहनना पड़ा है।

कैग रिपोर्ट 2015-16 से 2017-18 तक प्रावधान और खरीद के प्रदर्शन ऑडिट पर आधारित है। ऑडिट वॉचडॉग ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि इन ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के पास विशेष भी राशन नहीं था, जिससे उन्हें मिलने वाली कैलोरी की मात्रा 82 प्रतिशत तक प्रभावित हुई।

बर्फीले इलाकों में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों और उपकरणों की खरीद में चार साल तक की देरी हुई जिससे आवश्यक कपड़ों और उपकरणों की भारी कमी हो गई थी। कैग ने स्नो गॉगल्स की कमी का जिक्र करते हुए कहा कि इसकी कमी 62 से 98 फीसदी के बीच दर्ज की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि नवंबर 2015 से लेकर सितंबर 2016 तक जवानों को जूता नहीं दिया गया, इस वजह से जवानों को पुराने जूतों को ही रिसाइकल कर काम चलाना पड़ा।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "सामानों की खरीद में कमी, पुराने चीजों की सप्लाई या फिर पूरी तरह से सप्लाई बंद होने की वजह से ऊंचे स्थानों पर तैनात जवानों की सेहत और स्वास्थ्य प्रभावित हुए।"

कैग ने 9000 फीट ऊंचे स्थान पर रहने के लिए दिए जाने वाले विशेष राशन और आवास की व्यवस्था पर भी सवाल उठाया है। बता दें कि लेह लद्दाख और सियाचिन में रहने वाले जवानों को कैलरी की कमी पूरा करने के लिए विशेष खाना दिया जाता है। कैग के मुताबिक उन्हें इसके इस्तेमाल में भी कंजूसी करनी पड़ी।

कैग ने टिप्पणी की है कि विशेष खाने के बदले दिया जाने वाले सब्स्टीट्यूट की सप्लाई में कमी की वजह से जवानों को कई बार 82 परसेंट तक कम कैलोरी मिली। लेह की एक घटना का जिक्र करते हुए कैग ने कहा है कि यहां से स्पेशल राशन को सैनिकों के लिए जारी हुआ दिखा दिया गया, लेकिन उन्हें हकीकत में ये सामान मिला ही नहीं था।

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सीएजी ऑडिट में हुए चौंकाने वाले खुलासे

रिपोर्ट में 1999 में कारगिल समीक्षा समिति द्वारा अनुशंसित किये गए भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय की स्थापना में हुई "अपर्याप्त देरी" पर भी नाराजगी दिखाई गई। सीएजी के मुताबिक इस परियोजना की लागत 395 करोड़ रु की तुलना में 914 फीसदी छलांग लगाते हुए 4007.22 करोड़ हो चुकी है, लेकिन इसका धरती पर उतरना अब भी बाकी है।

सीएजी ने कुछ चुनिंदा खरीद में कई अनियमितताओं को उजागर किया है, जिसमे रक्षा भूमि के लिए लीज नवीकरण में देरी के कारण 25.48 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

कैग की ऑडिट रिपोर्ट में कुछ चौंकाने वाले निष्कर्ष सामने आए हैं, जिसमें पाकिस्तान और चीन की सीमा पर 16,000 से 22,000 फीट तक के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सैनिकों के लिए की गई व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया है:

  • सैनिकों को नए स्टॉक की अनुपलब्धता के कारण -55 डिग्री सेल्सियस में पैरों की रक्षा के लिए रीसायकल किये हुए बहुउद्देश्यीय जूते का उपयोग करना पड़ा
  • विशेष वस्त्र और पर्वतारोहण उपकरण (SCME) जैसे सिर की टोपी, मोजे, स्लीपिंग बैग और फेस मास्क सहित 18 वस्तुओं में 15 से 98 प्रतिशत तक की कमी थी।
  • सैनिकों को भारी मात्रा में भेजी गई जीवन रक्षक दवाओं और आवश्यक सामानों की समय-सीमा समाप्त हो गई थी
  • आयुध निर्माणी देहरादून से खराब आपूर्ति के कारण 750 स्नो गॉगल की कमी हो गई
  • "घटिया" रूक्सैक के चयन में कथित अनियमितताएं जो बाद के चरण में गुणवत्ता की जांच में भी विफल रहीं
  • फेस मास्क और स्लीपिंग बैग जैसी वस्तुओं की खरीद पुराने विनिर्देशों पर की गई
  • अपर्याप्त विशेष राशन ने सैनिकों के कैलोरी सेवन को 82 प्रतिशत तक प्रभावित किया
  • ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सैनिकों की आवास की स्थिति में सुधार करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट सफल नहीं था

दूसरी तरफ सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने कैग रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए इसे पुराना बताया है। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट वर्ष 2015-16 की है न कि मौजूदा समय की। यह थोड़ी सी पुरानी है। सेना प्रमुख ने आगे कहा, 'मैं आपको सुनिश्चित करना चाहता हूं कि वर्तमान में हम पूरी तरह से तैयार हैं। हम इस पूरी तरह से सुनिश्चित कर रहे हैं कि जवानों की सभी जरूरतें पूरी हों।'