-
Twitter

नियुक्तियों एवं पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर शीर्ष न्यायालय के एक फैसले को लेकर विपक्ष के आरोपों के बीच सरकार ने संसद में सोमवार को स्पष्ट किया कि वह एससी, एसटी के लिए आरक्षण को प्रतिबद्ध है और इस फैसले को लेकर उच्च स्तर पर विचार के बाद समुचित कदम उठायेगी।

संसद के दोनों सदनों में विपक्षी दलों ने उच्चतम न्यायालय के उस फैसले को लेकर सरकार को घेरने का प्रयास किया जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा है कि पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और राज्य आरक्षण देने के लिये बाध्य नहीं है।

विपक्ष ने सरकार पर दलित विरोधी बताया और इस मुद्दे पर समीक्षा याचिका दायर करने की मांग की। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने लोकसभा एवं राज्यसभा में इस मुद्दे पर अपने बयान में कहा, ''हमारी सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिये समर्पित और प्रतिबद्ध है। इस विषय पर उच्च स्तरीय विचार के बाद भारत सरकार समुचित कदम उठायेगी।''

उन्होंने कहा कि सात फरवरी 2020 को सिविल अपील संख्या 1226/2020 मुकेश कुमार एवं अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य में पदोन्नति में आरक्षण पर फैसला आया है। यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है। गहलोत ने कहा, ''इसको ध्यान में रखते सरकार इस पर उच्च स्तरीय विचार कर रही है। इस मामले में न तो भारत सरकार को पक्षकार बनाया गया और न ही भारत सरकार से शपथ पत्र मांगा गया।''

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उक्त मामला/एलएलपी उत्तराखंड सरकार द्वारा दिनांक 5 सितंबर 2012 में लिये गए निर्णय के कारण उत्पन्न हुआ जिससे उत्तराखंड में पदोन्नति में आरक्षण नहीं लागू करने का निर्णय लिया था। गहलोत ने कहा कि यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि 2012 में उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी।

संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दलों ने सरकार के बयान से असंतोष व्यक्त करते हुए सदन से वाकआउट किया। इस मुद्दे पर दोनों सदनों में विपक्षी दलों ने भारी शोर शराबा किया। इस मुद्दे पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में कहा कि यह अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है और कांग्रेस का ऐसे मुद्दे पर राजनीति करना ठीक नहीं है।

-
Twitter

सिंह ने कहा, ''मैं कहना चाहता हूं कि 2012 में उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी। इतने संवेदनशील मुद्दे पर कांग्रेस जिस तरह से राजनीति कर रही है, वह ठीक नहीं है।''

सदन में लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल यूनाइटेड और अपना दल जैसे, केंद्र में सत्तारूढ़ राजग के घटक दलों ने विपक्ष के आरोपों को खारिज किया और साथ ही शीर्ष अदालत के फैसले से असहमति व्यक्त करते हुए सरकार से आरक्षण के विषय को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने की मांग की।

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सरकार इस मुद्दे की गंभीरता को नहीं समझ रही है। उन्होंने कहा कि विपक्ष को उम्मीद थी कि सरकार इस फैसले को निष्प्रभावी करने के लिये संसद से कानून पारित करने की घोषणा करेगी।

सपा के रामगोपाल यादव ने सरकार से इस मामले में तत्काल पुनरीक्षण याचिका दायर कर मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर न्यायपालिका में भी आरक्षण लागू करने का फैसला करे।

बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि मौजूदा भाजपा सरकार ने भी पिछले फैसले को पलटने के बजाय इसे स्वीकार कर लिया। उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या इस मामले में केन्द्र सरकार उच्चतम न्यायालय में पक्षकार बनेगी?

भाकपा के विनय विश्वम ने सरकार से पूछा कि क्या सरकार इस फैसले पर उच्चतम न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर करेगी। द्रमुक के तिरुचि शिवा ने भी सरकार से उच्चतम न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर करने की मांग की।

लोकसभा में कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने यह मुद्दा उठाते हुए आरोप लगाया कि उत्तराखंड सरकार की ओर से न्यायालय में कहा गया कि आरक्षण को हटा दिया जाए और इसके बाद ही यह फैसला आया कि भर्ती या पदोन्नति मौलिक अधिकार नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि सदियों से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की अनदेखी हुई और संविधान में इन्हें आरक्षण का अधिकार दिया गया। कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार के समय इन वंचित वर्गो के लिये योजनाएं बनाई गईं और सुरक्षा के लिये कानून लाया गया। लेकिन वर्तमान सरकार एससी, एसटी से यह अधिकार छीनना चाहती है।

इस पर संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से भारत सरकार का कोई लेनादेना नहीं है और 2012 में उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी। उन्होंने मांग की कि इस संबंध में भारत सरकार के बारे में जो कुछ कहा गया है, उसे कार्यवाही से हटाया जाना चाहिए।

लोजपा के चिराग पासवान ने कहा कि आरक्षण कोई खैरात नहीं है बल्कि यह संवैधानिक अधिकार है। इस विषय पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से वह असहमति व्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा ''इस मामले में सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए। आरक्षण से जुड़े सभी विषयों को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाल दिया जाए ताकि इस विषय पर बहस समाप्त हो जाए।''

द्रमुक के ए राजा ने कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए। जदयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा कि आरक्षण के मुद्दे पर न्यायालय का जो फैसला आया है, उसको लेकर पूरा सदन एकमत है। जब पूरा सदन इस विषय पर एकमत है तब इसका राजनीतिकरण ठीक नहीं है।

बसपा के रितेश पांडे ने सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि संविधान में आरक्षण का अधिकार दिया गया है और न्यायालय के फैसले से वह असहमत हैं।

अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने कहा कि आरक्षण पर न्यायालय के फैसले से वह असहमत हैं। उन्होंने कहा, ''मैं कहना चाहती हूं कि एससी, एसटी और ओबीसी को संविधान प्रदत्त अधिकार के खिलाफ यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है। यह वंचित वर्गो पर कुठाराघात है।''

राकांपा की सुप्रिया सुले ने कहा ''सत्ता पक्ष ने कहा है कि वह इस विषय पर कुछ कर रहे हैं, मेरा आग्रह है कि इस विषय पर जल्द ही कदम उठाया जाए।''

माकपा के ए एम आरिफ ने इस विषय पर समीक्षा याचिका दायर करने और कानून लाने की मांग की। आईयूएमएल के ई टी मोहम्मद बशीर ने कहा कि यदि अदालत के फैसले पर अमल होता है तब यह सामाजिक न्याय के बुनियादी सिद्धांत पर आघात होगा।

इससे पहले, सुबह सदन की कार्यवाही आरंभ होने पर कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और पार्टी के अन्य सदस्यों ने इस मुद्दे को उठाना चाहा। द्रमुक, माकपा और बसपा सदस्यों ने भी अपने स्थान पर खड़े होकर इस मुद्दे पर अपनी बात रखने का प्रयास किया।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रश्नकाल को आगे बढ़ाया, लेकिन विपक्षी सदस्यों का शोर-शराबा जारी रहा। इस पर बिरला ने कहा कि सदस्य इस विषय को शून्यकाल में उठाएं क्योंकि सदन ने ही प्रश्नकाल को सुचारू रूप से चलने देने की व्यवस्था तय की है।

लोकसभा में विपक्षी सदस्यों ने इस मुद्दे पर प्रश्नकाल और शून्यकाल में सरकार पर निशाना साधा । गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.