आप कितनी तेजी से पढ़ सकते हैं? नए शोध कहते हैं की डबल स्पेसिंग के साथ तेजी से -पढ़ना आसान हो जाता है - सांकेतिक तस्वीर
आप कितनी तेजी से पढ़ सकते हैं? नए शोध कहते हैं की डबल स्पेसिंग के साथ तेजी से -पढ़ना आसान हो जाता है - सांकेतिक तस्वीररायटर्स

हर वाक्य के अंत में डबल स्पेस छोड़ना उसे पढ़ने में अधिक आसान बना देता है बनिस्बत सिंगल स्पेस देने के. यह प्रक्रिया उस दौर में इस्तेमाल की जाती थी जब टाइपराइटर दस्तावेजों को मुद्रित करने का सबसे तेज तरीका हुआ करते थे.

अब वैज्ञानिकों का मानना है जब वाक्यों के बीच डबल स्पेसिंग होती है तो लिखे हुए को समझने की प्रक्रिया और अधिक आसान हो जाती है. मेडिकलएक्स्प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार स्किडमोर काॅलेज के तीन शोधकर्ताओं ने यह खोज की है. रिपोर्ट में बताया गया है कि टाइपराइटरों के जमाने में वाक्यों के बीच डबल स्पेस देना आवश्यक होता था क्योंकि उनमें मोनोस्पेस्ड फाँट्स का इस्तेमाल होता था और अगर वाक्यों के मध्य डबल स्पेस न दिया जाता तो किसी भी पैराग्राफ में यह जानना काफी मुश्किल हो जाता कि उसमें चिन्ह का प्रयोग कहां किया गया है.

रिपोर्ट आगे कहती है कि हालांकि जब लोगों ने कंप्यूटर आधारित वर्ड प्रोसेसिंग का इस्तेमाल करना प्रारंभ किया तो भी कई उपयोगकर्ताओं ने डबल स्पेसिंग का प्रयोग करना जारी रखा जिसके चलते इस बात को लेकर बहस जारी रही, विशेषकर ऐसा करने पर लिखा कैसा दिखता है इस बात को लेकर. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि डबल स्पेसिंग अनैतिक है लेकिन दूसरा पक्ष हमेशा यह कहता रहा कि ऐसा करने से पढ़ना बेहद आसान हो जाता है. इसके अलावा डबल स्पेसिंग इस्तेमाल करने का मूल कारण तो नेपथ्य में चला ही गया क्योंकि डिजिटल वल्र्ड प्रोसेसर आनुपातिक फांट का इस्तेमाल करते हैं और ऐसे में डबल स्पेसिंग का कोई औचित्य ही नहीं रहता.

रिपोर्ट का कहना है कि इसी बहस को आधार बनाकर शोधकर्ताओं ने अपना अध्ययन प्रारंभ किया था.

रिपोर्ट का कहना है कि इस अध्ययन के लिये 60 स्वयंसेवक पाठकों को चुना गया था. उनमें से प्रत्येक को एक-एक पृष्ठ टाइप करने के लिये दिया गया ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे सिंगल स्पेस देने वाले हैं या डबल. इसके बाद उन सबको विभिन्न प्रकार के टेक्स्ट पढ़ने का काम सौंपा गया. उन्हें पढ़ने के लिये दिया या टैक्स्ट तीन प्रकार का था - एक में सिर्फ फुल स्टाॅप के बाद डबल स्पेसिंग थी, एक में फुल स्टाॅप और काॅमा के बाद और एक में कोई भी अतिरिक्त स्पेसिंग नहीं थी. जैसे ही उन लोगों ने पढ़ना प्रारंभ किया, शोधकर्ताओं ने आई-ट्रेकिंग का प्रयोग करते हुए यह देखा कि उन्हें पढ़ने में कितना प्रयास करना पड़ रहा है. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें एक समझबूझ परीक्षण से भी गुजारा गया.

इस अध्ययन के नतीजों से साबित हुआ कि अतिरिक्त स्पेसिंग ने तेजी से पढ़ने में मदद की और वास्तव में अतिरिक्त स्पेसिंग ने पढ़ने की गति को धीमा नहीं होने दिया. इसके बाद होने वाले समझबूझ परीक्षणों में भी कोई उल्लेखनीय अंतर देखने को नहीं मिला.

यह शोध पहली बार जर्नल अटेंशन, परसेप्शन और साईकोफिजिक्स में प्रकाशित किया गया.