-
Twitter / @ANI

अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में कुछ पक्षों ने मध्यस्थता पर सहमति नहीं जताने के चलते जस्टिस एफएमआई कलीफुल्लाह की अध्यक्षता में बनी कमिटी से भी मध्यस्थता के जरिये कोई नतीजा नहीं निकल सका। अब सुप्रीम कोर्ट में 6 अगस्त से अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई होगी। पांच जजों के संविधान पीठ का यह फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले की सुनवाई तब तक चलेगी, जब तक कोई नतीजा नहीं निकल जाता है।

मालूम हो कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 जुलाई को तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति को कहा था कि मध्यस्थता कार्यवाही के परिणामों के बारे में 31 जुलाई या एक अगस्त तक अदालत को सूचित करें ताकि वह मामले में आगे बढ़ सके।

इसके बाद गुरुवार को मध्यस्थता समिति ने सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में फाइनल रिपोर्ट पेश की थी। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कहा था कि अगर आपसी सहमति से कोई हल नहीं निकलता है तो रोजाना सुनवाई होगी। यह फैसला चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ ने किया। इस बेंच में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले में मध्यस्थता की कोशिश सफल नहीं हुई है। समिति के अंदर और बाहर पक्षकारों के रुख में कोई बदलाव नहीं दिखा। कोर्ट ने अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में गठित मध्यस्थता कमिटी भंग करते हुए कहा कि 6 अगस्त से अब मामले की रोज सुनवाई होगी। यह सुनवाई हफ्ते में तीन दिन मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को होगी।

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरSANJAY KANOJIA/AFP/Getty Images

सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को पूर्व जज जस्टिस एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की समिति गठित की थी। कोर्ट का कहना था कि समिति आपसी समझौते से सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश करे। इस समिति में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू शामिल थे। समिति ने बंद कमरे में संबंधित पक्षों से बात की लेकिन हिंदू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने निराशा व्यक्त करते हुए लगातार सुनवाई की गुहार लगाई। 155 दिन के विचार विमर्श के बाद मध्यस्थता समिति ने रिपोर्ट पेश की और कहा कि वह सहमति बनाने में सफल नहीं रही है। हिंदू पक्ष ने मध्यस्थता का कड़ा विरोध किया वहीं मुसलमान पक्ष का कहना है कि समिति को उनका समर्थन था।

इलाहाबाद कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर की गईं। अपेक्स कोर्ट ने मई 2011 में हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के साथ विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। अब इन 14 अपीलों पर लगातार सुनवाई होनी है।