सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरReuters file

अमेरिका में भारतीय मूल के तीन कंसल्टेंट को वीजा फ्रॉड के मामले में आरोपी बनाया गया है। उनपर आरोप हैं कि उन्होंने लोकप्रिय एच-1बी वीजा के लिए नकली दस्तावेज पेश किए ताकि प्रतिद्वंद्वी फर्म के मुकाबले बढ़त पाया जा सके। न्याय विभाग ने बयान जारी कर कहा कि संघीय ग्रैंड जूरी में पिछले महीने चलाए गए मुकदमे के दौरान सांता क्लारा के किशोर दत्तापुरम, ऑस्टिन के कुमार अस्वपति और सैन जोस के संतोष गिरि को वीजा फ्रॉड और वीजा फ्रॉड के लिए साजिश रचने का दोषी पाया गया।

भारत के टेक प्रफेशनल्स के बीच एच-1बी वीजा प्रोग्राम खासा लोकप्रिय है, जिसके जरिये विदेशी नागरिकों को अमेरिका में अस्थायी तौर पर रहने और काम करने की इजाजत मिलती है। एच-1बी वीजा के लिए नियोक्ता या स्पॉन्सर को यूनाइटेड स्टेट्स सिटिजनशिप ऐंड इमिग्रेशन सर्विसेंज में आई-129 पिटीशन दाखिल करना होता है। पिटीशन और संबंधित दस्तावेज में नौकरी और उसकी अवधि की पुष्टि करता हुआ होना चाहिए, इसमें सैलरी और पद का भी ब्योरा होना चाहिए।

कोर्ट के 8 पेज के दस्तावेज में कहा गया है कि दत्तापुरम (49), अस्वपति (49) और गिरि (42) सांता क्लारा में नैनोसिमैंटिक्स नाम की कंसल्टिंग फर्म चला रहे थे जिसका काम विदेशी नागरिकों को कैलिफॉर्निया के बे एरिया स्थिति आईटी कंपनियों में नौकरी दिलाना था। कोर्ट के दस्तावेज में कहा गया है कि तीनों ने प्रतिद्वंद्वी कंपनी से आगे बढ़ने के लिए विदेशी कामगारों की तरफ से वीजा से संबंधित फर्जी आवेदनों का इस्तेमाल किया। बचाव पक्ष ने नैनोसिमैंटिक्स का इस्तेमाल करते हुए फर्जी आई-129 पिटीशन दाखिल की और कामगारों के लिए एच-1बी वीजा प्राप्त किया और फिर उन्हें स्थानीय कंपनियों में प्लेसमेंट दिला दी।

इस मामले में अगली सुनवाई 13 मई को होगी। अगर वे मामले में दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें अधिकतम 10 साल की सजा दी जाएगी और 2,50,000 डॉलर जुर्माना चुकाना होगा। उन्हें आगे वापस भारत भी भेजा जा सकता है।